Saturday, 27 October 2012

...और खूंखार हुआ रणथंभौर का बाघ


सवाई माधोपुर. शुक्रवार शाम अचानक बाघ टी 24 के स्वभाव में बदलाव देखा गया। विवेकानंदपुरम कॉलोनी के सामने से होटल झूमर बावड़ी तक के रोड पर इस बाघ ने दो वाहनों की ओर झपटने एवं एक पर्यटक वाहनों के पीछे दौड़कर हमला करने का प्रयास किया। रणथंभौर रोड पर एक शिक्षक की मोटरसाइकिल के पीछे भी दौड़ लगाने की बात सामने आई है।

रणथंभौर में मुंबई के एक पर्यटक को वन भ्रमण कराने के बाद वापस होटल झूमर बावड़ी जाते समय टी 24 ने जिप्सी के पीछे 20 मीटर से भी अधिक दूरी तक तेजी से दौड़ लगाई। जिप्सी चालक निसार अली ने बताया कि वह जिप्सी को झूमर बावड़ी रोड पर लेकर आगे जा रहा था। इसी दौरान ओबेराय होटल के आखिरी कोने के पास अचानक टी 24 उनकी गाड़ी की तरफ लपका। गाड़ी के पीछे 20 मीटर से भी अधिक दूरी तक तेजी से दौड़ा।

इसी प्रकार होटल झूमर बावड़ी पर ठहरे गुडग़ांव निवासी एक पर्यटक आर.के. गुप्ता ने होटल मैनेजमेंट को बताया कि वे स्कार्पियों से होटल से शहर की तरफ जा रहे थे। इसी दौरान बाघ ने उनकी गाड़ी की तरफ झपट्टा मारा। वे घबरा कर तेजी से वापस होटल आ गए। सवाई माधोपुर निवासी शिक्षक गुड्डू सोनी ने बताया कि रात साढ़े सात बजे के करीब आईओसी प्लांट के पास आईस फैक्ट्री में उनके मित्र से मिलने गए थे। वे फैक्ट्री के गेट पर चौकीदार को आवाज लगा रहे थे। तभी 20 फुट की दूरी पर बाघ फैक्ट्री की दीवार पर दिखाई दिया। 20 मिनट तक बाघ के घुर्राने की आवाज आती रही।

रेंज अधिकारी अरुण शर्मा का कहना है कि हमें इस प्रकार की घटना की सूचना मिली थी। सूचना के बाद से हम सर्च लाइटों से लगातार इस रोड पर बाघ को खोज रहे हैं। हमें अभी कहीं भी बाघ दिखाई नहीं दे रहा है। सड़क के पास सांभर एवं चीतल बैठे दिखाई दे रहे हैं। अगर बाघ इस जगह पर होता तो दूसरे जानवर यहां बैठे नहीं रह सकते। शाम को बाघ इस इलाके में था, लेकिन यह बाघ फायरिंग बट आलनपुर के आसपास था।

सबसे अलग स्वभाव

बाघ परियोजना के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के अनुसार टी 24 के बारे में मिल रही जानकारी के अनुसार यह बाघ अन्य बाघों की तुलना में कई प्रकार से अलग है। यह एक साथ कई किमी चलता है। एक ही रात में 40 से 50 किमी तक चलने की इसकी क्षमता काफी दुर्लभ है। इसी प्रकार दूसरे बाघों के इलाके में बिना किसी भय के इसका घूमना भी बाघों के स्वभाव के विपरीत है। सामान्य रूप से किसी इंसान को अकेला या झुंड में पैदल आता देख बाघ रास्ता छोड़ कर भाग जाते हैं, लेकिन यह बाघ ढीठ होकर सामने आने का प्रयास करता है।

यात्रियों को खतरा 

टी 24 का विचरण क्षेत्र 90 किमी से भी अधिक है। इस इलाके में रणथंभौर दुर्ग से गणेशधाम तक जंगल के बीच सड़क भी है। गणेशधाम से पूरा रणथंभौर रोड होते हुए आईओसी प्लांट एवं आलनपुर तक के सड़क मार्ग एवं इसके बाहरी आबादी वाले इलाके पर भी इसका राज है। ऐसे में हजारों लोग रोजाना गणेशधाम से रणथंभौर दुर्ग तक यात्रियों का आना-जाना गत दिवस की घटना के बाद यात्रियों की सुरक्षा एवं बाघ टी 24 द्वारा कोई अनहोनी करने का डर बढ़ गया है। माधोसिंहपुरा, आलनपुर, शहर, विवेकानंदपुरम एवं आसपास की ढाणियों के लोगों की भी चिंता बढ़ गई है।

Friday, 26 October 2012

रणथंभौर का यह खूंखार बाघ ले सकता है आपकी भी जान


रणथंभौर अभयारण्य में 25 अक्‍टूबर को को बाघ टी-24 ने सहायक वनपाल घीसू सिंह (58) को अपना शिकार बना लिया। वे जंगल में चल रहे कच्चे मार्ग के रिपेयरिंग को देखने के लिए गए थे। बाघ ने उनकी गर्दन व सिर पर हमला किया, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। घटनास्थल पर पहुंचे वन अधिकारियों व कर्मचारियों की टीम ने पटाखे चलाकर बाघ को भगाया और शव को उसके शिकंजे से छुड़ाया। घटना से वन विभाग सहमा हुआ है। घीसू सिंह के परिजनों को 3.20 लाख रु. की आर्थिक सहायता दिए जाने की घोषणा की गई है। 

प्रत्यक्षदर्शी फोरेस्टर सुदर्शन शर्मा ने बताया कि गुरुवार सुबह दस बजे वे जयपुर की चौमूं तहसील के अमरपुरा गांव निवासी सहायक वनपाल घीसू सिंह के साथ राजबाग वननाके से मोटरसाइकिल पर जंगल के लिए रवाना हुए थे। साढ़े दस बजे वे सोनकच्छ आंतरी नामक स्थान पर पहुंचे। यहां दो जगह पर्यटक वाहनों के लिए बने कच्चे रास्तों को ठीक करने का काम किया जा रहा था। शर्मा ने बताया कि वे पहले काम कर रहे श्रमिकों के पास रुक गए और घीसू सिंह 200 मीटर आगे काम देखने चले गए। वे काम देखकर पैदल वापस आ रहे थे तभी बाघ ने घीसू सिंह को बाघ ने दबोच लिया और खींचकर झाडिय़ों में ले गया। मजूदर व अन्य वनकर्मियों ने शोर मचाया और पत्थर फेंके, लेकिन वहां कुछ भी दिखाई नहीं दिया। सूचना मिलने के बाद उपवन संरक्षक एवं अन्य वन अधिकारी मौके पर पहुंचे। अधिकारियों ने झाडिय़ों में अपना वाहन घुसाया तो बाघ ने झपट्टा मारा। इसके बाद पटाखे चलाकर शव को मुक्त कराया गया। 

टी 24 का तीसरा इंसानी शिकार 

रणथंभौर अभयारण्य के सबसे बड़े इलाके में विचरण करने वाले खूंखार बाघ टी-24 ने अब तक तीन लोगों को शिकार बनाया है। इनमें एक खिरनी निवासी घमंडी माली, दूसरा शहर जुलाहा मोहल्ला निवासी अशफाक एवं तीसरा वनकर्मी घीसू सिंह है। हालांकि, इससे पहले भी इस बाघ द्वारा दो अन्य लोगों को भी शिकार बनाए जाने की आशंका है, लेकिन इनकी पुष्टि नहीं हुई। रणथंभौर के इतिहास में यह पहली घटना है जब किसी जानवर के हमले से वन विभाग के किसी कर्मचारी की मौत हुई है। 

सबसे खतरनाक बाघ

रणथंभौर से जुड़े लोगों के अनुसार इस समय इस जंगल में बाघ टी 24 का आतंक है। दिखने एवं स्वभाव में यह बाघ बहुत अधिक खूंखार है। यह पहला बाघ है जो अपने इलाके के अलावा दूसरे बाघों के इलाके में भी बे खोफ घूमता है। इसके विचरण का दायरा 90 वर्ग किमी से भी अधिक होने के कारण रणथंभौर के सबसे बड़े इलाके पर इसका राज है। यह बाघ बचपन से ही पर्यटक एवं वाहनों के पीछे दौडऩे का आदी रहा है।

बाघ परियोजना के दो जोन बंद

बाघ परियोजना में मानद वन्यजीव प्रतिपालक बालेंदूसिंह ने बताया कि इस घटना से रणथंभौर से जुड़े लोगही नहीं आम आदमी भी दुखी है। इस घटना को हम उसी प्रकार देखते हैं जिस प्रकार एक जवान देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की बाजी लगाता है। सिंह ने बताया कि घटना के बाद उप वन संरक्षक वाई.के. साहू ने अधिकारियों को निर्देश देते हुए इस बाघ के विचरण वाले जोन नं. 1 एवं 3 पर अगले आदेश तक के लिए पर्यटक वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी है। साथ ही इस बाघ पर निगरानी के लिए एक टीम का भी गठन कर दिया है। इसके इलाके में अतिरिक्त कैमरा लगाने के आदेश जारी कर दिए हैं।

Wednesday, 3 October 2012

रणथंभौर में हो रहा है बाघों का नामकरण


रणथंभौर अभयारण्य के बाघ अब नंबर की जगह नाम से जाने जाएंगे। वन विभाग पहली बार इन्हें नाम देने में जुटा है। हुस्नारा, सुंदरी, कृष्णा, रोमियो, जालिम और सुल्तान ऐसे कुछ नाम हैं, जो बाघों को दिए गए हैं। वन विभाग पहली बार इन नामों की स्थायी लिस्ट तैयार कर रिकॉर्ड में शामिल करने जा रहा है। इससे पहले बाघों को टी-1, टी-5 व टी-19 जैसे नंबरों से जाना जाता था। बाघों का नामकरण किए जाने के पीछे प्रमुख उद्देश्य पर्यटकों का उनसे भावनात्मक लगाव बढ़ाना और नर-मादा की पहचान साफ करना है।

विभाग का कहना है कि नंबरों से बाघ के मेल या फीमेल होने को लेकर भी टूरिस्ट भ्रमित रहते थे। इससे पर्यटकों के समक्ष बाघों के परिवार की जानकारी देने में भी आसानी होगी। अभयारण्य के डीएफओ वाईके साहू ने बताया कि कुछ बाघों को पहले ही नाम से जाना जाता था। अब सभी का पहली बार नामकरण हो रहा है। हालांकि नंबर भी रहेंगे।

बाघों को नाम उनके स्वभाव, शारीरिक लक्षण तथा अन्य रोचक बातों के आधार पर दिए जाएंगे। मानद वन्यजीव प्रतिपालक बालेंदु सिंह बताते हैं कि टी-6 बाघ अक्सर बाघिन टी-16 या टी-41 बाघिन लैला के साथ नजर आता है। कई बार तो यह बाघ टी-16 से मार भी खा चुका, लेकिन फिर उसके साथ हो लेता है। इस कारण इसका नाम रोमियो रखा गया है।

> टी-25 बाघ गुस्सैल है। वह टूरिस्ट की गाडिय़ों खासकर वनकर्मियों की मोटरसाइकिल को देखकर ज्यादा गुर्राता है, उसे स्टाफ ने ही जालिम नाम दे दिया।

> टी-3 बाघ ने बड़े भाई झुमरू को उसकी टेरेटरी से खदेड़कर बहादुरी दिखाई तो उसका नाम बहादुर रखा।

> टी-39 के शावक को चाल-ढाल के आधार पर 'सुल्तान' नाम मिला। टी-19 के तीन शावक आपस में अठखेलियां करते हैं उन्हें 'चंदा', 'सूरज' 'आकाश' नाम दिया।

अगर कोई हमें सिर्फ नंबर से पहचाने तो? बाघों के प्रति भावनात्मक रिश्ते बनाने के लिए नाम को स्थायी पहचान दी जा रही है। नाम के साथ नंबरिंग की व्यवस्था भी जस की तस रहेगी। -बीना काक, वन एवं पर्यटन मंत्री 

पहली बार बाघों के नाम की लिस्ट तैयार हो रही है। कुछ बाघों के पहले से ही प्रचलित नाम हैं। अन्य को उनके करेक्टर के हिसाब से नाम दे रहे हैं। -वाई के साहू, डीएफओ, रणथम्भौर नेशनल पार्क 

महेश शर्मा, दैनिक भास्‍कर के लिए 

भोपाल में बाघों पर संकट, शिफ्टिंग की तैयारी


भोपाल फॉरेस्ट सर्किल के कठोतिया रेंज में दो बाघों की मौत के बाद अब वन विभाग ने कलियासोत-केरवा में सक्रिय बाघों की सुरक्षा को लेकर अपनी असमर्थता जता दी है। वन विभाग ने यहां घूम रहे तीन बाघों को सतपुड़ा नेशनल पार्क में शिफ्ट करने का निर्णय लिया है।

विभाग के अफसरों ने स्वीकार किया है कि राजधानी के नजदीक बाघों की सुरक्षा करने में वे सक्षम नहीं हैं, इसलिए विभाग के अफसर, भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम), सेवानिवृत्त वाइल्ड लाइफ चीफ और कान्हा नेशनल पार्क से शिफ्टिंग की तैयारियों के बारे में सलाह ले रहे हैं। वन विभाग ने बाघों की शिफ्टिंग के बारे में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण(एनटीसीए) से अनुमति नहीं ली है। हालांकि नियमानुसार वन विभाग को शेड्यूल्ड-1 के प्राणी की शिफ्टिंग के लिए एनटीसीए से अनुमति लेना जरूरी है।

इससे पहले वन विहार नेशनल पार्क ने चीतलों को सतपुड़ा नेशनल पार्क में शिफ्ट करने के लिए एनटीसीए से अनुमति मांगी थी, लेकिन सतपुड़ा नेशनल पार्क के वन्य प्राणियों की सुरक्षा और उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उसने अनुमति नहीं दी थी। यही वजह है कि वन विभाग अब एनटीसीए से अनुमति लेने से कतरा रहा है। इधर, वन विभाग का कहना है कि इसमें अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

बाघों को पकडऩे के लिए वन विभाग ने सबसे पहले चार पिंजरे लगाए, लेकिन बाघ इसके झांसे में नहीं आए। इसके बाद बाघों को केरवा-कलियासोत क्षेत्र में आने से रोकने के लिए 50 लाख रुपए खर्च करके चैनलिंग फैंसिंग लगाई गई। चैनल फैंसिंग को तोड़कर एक बाघ केरवा क्षेत्र में आ गया। ये प्रयास सफल नहीं होने पर विभाग ने अब बाघों को बेहोश करके पकडऩे का निर्णय लिया है। इसके लिए हाथियों का हाका लगाया जाएगा। कान्हा नेशनल पार्क और बांधवगढ़ नेशनल पार्क से एक्सपर्ट हाथी और महावत बुलाए जाएंगे।

लगाया जाएगा रेडियो कॉलर 

वन विभाग ने कलियासोत, केरवा और कठोतिया के जंगल में घूमने वाले बाघों को पकडऩे के बाद उनमें रेडियो कॉलर लगने का निर्णय लिया है। विभाग का कहना है कि इससे उन पर नजर रखी जा सकेगी।

जोखिम नहीं ले सकते 

भोपाल के आसपास का जंगल बाघों के लिए उपयुक्त नहीं है। उनकी सुरक्षा को खतरा है। बाघ को लेकर हम कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। यही वजह है कि इन्हें शिफ्ट करने का निर्णय लिया गया है। बाघों को नेशनल पार्क में शिफ्ट कर दिया जाएगा। - पीके शुक्ला, पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ 

वंदना श्रोती, दैनिक भास्‍कर

Thursday, 27 September 2012

केंद्र ने टाइगर रिजर्व के 20 % क्षेत्र में पर्यटन की अनुमति मांगी


केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से बाघ संरक्षित अभयारण्यों के कम से कम 20 फीसदी कोर क्षेत्र में पर्यटन की अनुमति मांगी है। केंद्र सरकार ने शीर्ष कोर्ट के सामने नए दिशानिर्देश पेश किए। सुप्रीम कोर्ट जस्टिस एके पटनायक और स्वतंत्र कुमार की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। अदालत में पर्यावरणविद् अजय दुबे ने याचिका लगाई है। इस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 24 जुलाई को बाघ संरक्षित क्षेत्रों के कोर एरिया में पर्यटन पर रोक लगा दी थी। पिछले महीने की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से इस संबंध में नई गाइड लाइन बनाने को कहा था। 

बाघों की मौत के बाद अब अमले को दे रहे ट्रेनिंग


भोपाल। वन मंडल भोपाल के कठोतिया गांव में दो बाघों की मौत के बाद वन विभाग सतर्क हो गया है। विभाग ने अब समरधा, कठोतिया और रातापानी डिवीजन के मैदानी अमले को प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया है। कान्हा नेशनल पार्क से आई एक्सपर्ट टीम मैदानी अमले को प्रशिक्षण दे रही है। टीम रेंजों में घूम रहे तीन बाघों की सतत निगरानी कर यह पता लगा रही है कि बाघ कहां घूम रहे हंै। वहीं, पांच जून को शिकार हुए बाघ के शिकार के लिए बनाई गई जांच कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी है। भोपाल से महज 20 किमी की दूरी पर घूम रहे तीन बाघों की कड़ी सुरक्षा की व्यवस्था कर दी गई है। भोपाल, सिहोर और रायसेन वन मंडल में गश्ती दल बनाए गए हंै। इसमें एक डिवीजन में तीन-तीन गश्ती दल का गठन किया गया है। यह दल सुबह दोपहर और रात को अलग-अलग समय पर गश्त करेंगे। एक गश्ती दल में एक चार की गार्ड होगी। दल का नेतृत्व डिप्टी रेंज रेंक का अधिकारी करेगा। 

हर गश्ती दल को देना होगी रिपोर्ट: वन विभाग ने अब हर गश्ती दल की जिम्मेदारी तय कर दी है। हर दल को अपनी रिपोर्ट बनाकर डीएफओ को देना होगी। गश्ती दलों को एक रेंज से दूसरी रेंज में बाघ के आने-जाने की सूचना तुरंत एक-दूसरे को देनी होगी। इससे अब किसी भी रेंज के अधिकारी यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकेंगे कि बाघ का शिकार या हादसा उनके रेंज में नहीं हुआ है। 

पांच जून को कठोतिया रेंज में हुए बाघ के शिकार की जांच रिपोर्ट मंगलवार को शासन को सौंप दी गई है। जांच में वहीं बिंदु डाले गए है जो प्रारंभिक रिपोर्ट में दिए गए थे। जांच में बताया गया है कि बाघ की मौत करंट लगने से हुई है। यह एक हादसा है। इस हादसे को अंजाम देने वाले सभी आरोपी जेल में हैं। शासन को सौंपी गई जांच रिपोर्ट के बारे में प्रयत्न संस्था के सदस्य अजय दुबे, वन्य प्राणी प्रेमी संजय दुबे और प्रलय बागची ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन को पत्र लिखकर मामले की फिर से जांच करने की मांग की है। उनका कहना है कि जिस वन मंडल में बाघ का शिकार हुआ है, उन्हें ही जांच कमेटी का सदस्य बना दिया गया है। 

Tuesday, 25 September 2012

मप्र में कुत्‍तों की तरह दम तोड़ रहे हैं बाघ


मप्र में शिव के राज में बाघ और उसके परिवार के सदस्‍य कुत्‍तों की तरह दम तोड़ रहे हैं और सरकार खामोश है। हद है मुख्‍यमंत्री जी। वन मंडल भोपाल के कठोतिया रेंज में 19 सितंबर को गड्ढे में गंभीर रूप से घायल मिले बाघ शावक की सोमवार तड़के मौत हो गई। पोस्टमार्टम करने वाले डॉ. अतुल गुप्ता का कहना है कि शावक के शरीर के पिछले हिस्से में चोटें कैसे लगी, इसकी विस्तृत जांच के लिए विसरा जबलपुर, बरेली और देहरादून की फॉरेंसिक लैब भेज दिया गया है।

गौरतलब है कि कठोतिया के जंगल में ही पांच जून को एक बाघ का करंट लगाकर शिकार किया गया था। कहीं पकड़ न जाए इसलिए बाघ को दो भागों में काट दिया गया था। इस मामले को भी वन विभाग ने हादसा बताया था।

सरकारी रिपोर्ट में टोक्सिमिया वजह

पोस्टमार्टम से खुलासा हुआ है कि उसकी मौत टोक्सिमिया की वजह से हुई है। इसके साथ ही उसके शरीर के पिछले हिस्सों में लकवा लगने का कारण अंदरूनी चोटें हैं।

...लेकिन, आशंका शिकार की

वन विहार प्रबंधन और इलाज करने वाले डॉक्टर के अनुसार घायल शावक को जब गड्ढे से बाहर निकाला गया था तब उसके शरीर पर अंदरूनी चोटों के निशान भी थे। लंबी दूरी तक घिसटने के कारण उसके दोनों पैरों में गंभीर घाव भीहो गए थे। पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) पीके शुक्ला ने भी शावक की हालत को देखकर शिकार की आशंका जताई थी।

सवाल यह भी है

बाघ आठ दिन से घायल था तो गश्ती दल क्या कर रहा था? घायल अवस्था में शावक को वन विहार लाया गया तो राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण को सूचना क्यों नहीं दी गई? पोस्टमार्टम में फॉरेंसिक एक्सपर्ट एबी श्रीवास्तव और मेडिकोलीगल के विशेषज्ञ डॉ. सत्पथी को क्यों नहीं बुलाया गया?बाघ के संबंध में हादसे हर बार कठोतिया में ही क्यों हो रहे हैं?


दैनिक भास्‍कर के साभार से

Wednesday, 12 September 2012

अभयारण्य में जमीन, चार हजार युवा रह गए कुंवारे!


मप्र के शिवपुरी स्थित करैरा अभयारण्य के 32 गांवों की 36 हजार की आबादी अपनी ही जमीन पर मजदूरी करने को मजबूर है। जमीन गांवों के लोगों की है, लेकिन वे अपनी ही जमीन को न तो बेच सकते हैं और न ही इस पर सिंचाई के साधन लगवा सकते हैं। जब यह बात आसपास के गांव के लोगों को पता चली तो यहां रिश्ते आना ही बंद हो गए। इन गांवों के चार हजार से अधिक युवा कुंवारे हैं। 

हाजीनगर के जंडेल सिंह गुर्जर बताते हैं कि गांव के आधे से अधिक युवा तीस से अधिक की उम्र पार कर चुके हैं। मेरी उम्र भी 33 पार हो चुकी है। लेकिन शादी नहीं हुई। मेरे दो छोटे भाई भी हैं, उनके लिए भी रिश्ते नहीं आ रहे हैं। गांव में वैसे भी शादी की उम्र 18 से 25 के बीच ही मानी जाती है। इसलिए इस क्षेत्र के ज्यादातर युवा अपनी शादी की आस छोड़ चुके हैं। 

सरकार जमीन बता दे, जंगल हम तैयार कर देंगे : जून 2012 में सुप्रीम कोर्ट की एंपावर्ड कमेटी ने राज्य सरकार को पत्र भेजा कि करैरा अभयारण्य क्षेत्र में रजिस्ट्री पर लगी रोक हटाई जा सकती है। लेकिन इसमें एक शर्त जोड़ दी कि जितने क्षेत्र में अभयारण्य (दो सौ वर्ग किमी) है, उतने ही क्षेत्र में कहीं दूसरी जगह जंगल तैयार किया जाए। उधर लंगूरी गांव के लोगों का कहना है कि सरकार तो जमीन चिंहित कर दे, जंगल हम तैयार कर देंगे। 

ऐसे गिर रहा सामाजिक स्तर 

जमीन बेचने का अधिकार न होने से गांव के युवाओं की शादी नहीं हो पा रही है। 
युवाओं पर परिवार की जिम्मेदारी न होने से वे अपराध व अवैध धंधे करने लगे हैं। 

इसलिए नहीं हो रहीं शादियां 

किसानों की जमीन करैरा अभयारण्य में है। अभयारण्य की जमीन को किसान खरीद और बेच नहीं सकते। 
रिश्ते इसलिए नहीं आ रहे हैं, क्योंकि उन्हें यह जानकारी है कि सरकार जमीन मालिकों को कभी भी बेदखल कर अभयारण्य से बाहर कर सकती है। 

दूसरी ओर, मप्र के ही सोनचिरैया अभयारण्य के कारण घाटीगांव क्षेत्र के 27 गांवों के लोगों को होने वाली परेशानी का मामला गुरुवार को भाजपा सांसद यशोधरा राजे सिंधिया ने लोकसभा में उठाया। उन्होंने मांग की कि अभयारण्य की सीमा का डी-नोटिफिकेशन (अधिसूचना) रद्द की जाए। अब तो इसमें सोनचिरैया भी नहीं है। अभयारण्य के कारण आसपास के गांवों का विकास रुक गया है। क्षेत्र के किसान अपनी जमीन के मालिक तो हैं लेकिन जरूरत पडऩे पर इसे न बेच सकते हैं और न ही खरीद सकते हैं। किसान गरीबी में जीने को मजबूर हैं। सांसद सिंधिया की मांग पर अब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जवाब देंगे। 

सेमुअल दास  की रिपोर्ट 

Wednesday, 5 September 2012

बाघ क्यों करते हैं 'नाइट शिफ्ट'


एक ताज़ा शोध से पता चला है कि नेपाल में बाघ इंसानों से टकराव को टालने के लिए नाइट शिफ़्ट को तरजीह दे रहे हैं. यानी दिन में आराम और रात को काम. यहां काम से मतलब है शिकार करना. आमतौर पर बाघ दिन और रात का फ़र्क किए बैगर जंगलों में घूमते रहते हैं, मिलन करते हैं और शिकार करते हैं. साथ ही अपने इलाक़े की निगरानी भी करते हैं. लेकिन नेपाल के चितवन नेशनल पार्क में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि इंसानों से बचने के लिए बाघ अपने क्रियाकलापों को रात तक ही सीमित रख रहे हैं. अतंरराष्ट्रीय टीम का ये अध्ययन विज्ञान की एक पत्रिका ‘प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस जरनल’ में प्रकाशित हुआ है.   
  
परंपरागत सोच तो यही है कि बाघों को इंसानों से दूर एक इलाक़ा चाहिए. इस सोच का मतलब है कि बाघ के इलाक़ों से लोगों का पुनर्वास करवाया जाए या फिर उस इलाक़े में मौजूद संसाधनों को बाघों के लिए त्यागा जाए. अमरीका की 'मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी' से आए और इस शोध के सह-लेखक नील कार्टर कहते हैं, “संसाधनों को लेकर ये एक बहुत मूलभूत टकराव है. बाघों को संसाधनों की ज़रूरत हैं और उन्हीं संसाधनों की ज़रूरत इंसानों को भी हैं. अगर हम परंपरागत सोच पर चलकर बाघों के लिए एक अलग जगह छोड़ने लगें तो बाघ और इंसानों में से एक ही बचा रह सकता हैं.” हिमालय की घाटी में बसा चितवन पार्क 121 बाघों का घर है और पार्क की सीमा सटे इलाक़े में मानव आबादी भी है. लेकिन ये लोग लकड़ी और घास के लिए पार्क पर निर्भर हैं शोधकर्ता नील कार्टर ने पार्क के अंदर और बाहर हलचल पहचानने वालें कैमरों की मदद से दो वर्षों तक अध्ययन किया.   
  
इस अध्ययन के दौरान ली गई हज़ारों तस्वीरों के विश्लेशण में कार्टर ने पाया कि इंसान और बाघ एक ही पगडंडी या रास्तों का इस्तेमाल कर रहे हैं. बस फर्क ये हैं कि अलग-अलग समय में, यानी बाघों की गतिविधि रात को दिखाई देती है. इंसान आमतौर पर रात को जंगल में नहीं जाते और ये बाघों के लिए एक संकेत का काम करता है कि रात को बाघ जंगल में अपनी गतिविधियां कर सकते हैं. शोध से सामने आया कि नेपाल के चितवन पार्क में बाघों के हालात अच्छे हैं. उन्हें पेट भरने के लिए शिकार मिल जाता है. दुनिया भर में 20वीं सदी के दौरान जंगली बाघों की संख्या में 97 फ़ीसदी की कमी आई है और अब विश्व में लगभग तीन हज़ार बाघ ही बचे हैं.

Monday, 3 September 2012

रणथंभौर पर्यटन जगत में सन्नाटा


हर साल एक अक्टूबर से रणथंभौर अभयारण्य में पर्यटन शुरू हो जाता है। अगस्त के मध्य से ही यहां के होटलों एवं पर्यटन से जुड़े लोग नए सत्र के लिए तैयारियां शुरू कर देते हैं। इन तैयारियों के लिए बड़ी संख्या में लोग बाहर से आते हैं और यहां के श्रमिकों को साथ ले कर जरूरी काम को पूरा करते हैं, लेकिन इस बार न तो होटलों में तैयारियां दिखाई दे रही हैं और न ही देश विदेश के पर्यटकों के लिए वाहन एवं होटलों की एडवांस बुकिंग की जा रही है। इस बार रणथंभौर में पर्यटन होगा या नहीं, इस बारे में कोई नहीं जानता है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर निर्भर होने के कारण सभी मायूस हैं। जिस समय होटलों एवं पर्यटन से जुड़े लोगों की भाग दौड़ और तैयारियां तेज हो जाती थी उस समय यहां सन्नाटा दिखाई दे रहा है।

वापस लिया वाहनों का पैसा 

रणथंभौर में नेचर गाइड के रूप में वर्षों से सेवा दे रहे यादवेंद्र सिंह का कहना है कि इस बार हालात खराब है। लोगों ने नए सत्र के लिए पहले से ही वाहन बुक करवा दिए थे। इनमें लगभग 60 जिप्सी और 50 से अधिक केंटरों के लिए विभिन्न कंपनियों में पैसा जमा हो चुका था, लेकिन ज्यों ही सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई की तारीख 27 सितंबर तय की, लोगों ने वाहनों के लिए दिया एडवांस पैसा वापस ले लिया। लोगों को डर है कि अगर 27 सितंबर को भी पर्यटन की इजाजत नहीं मिली तो वे लाखों रुपए के नए वाहन खरीदने के कारण बर्बाद हो जाएंगे।

कैंसिल हो रही है एडवांस बुकिंग 

पर्यटन सत्र के लिए बुकिंग का काम महीनों से चल रहा था। अधिकांश होटल मालिक एवं ट्रेवल एजेंट अप्रैल 2013 तक की बुकिंग का काम पूरा कर चुके थे, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने एवं कोई सकारात्मक निर्णय नहीं आने का संदेश विदेशों में जाते ही पर्यटकों ने अपनी बुकिंग कैंसिल करवाना शुरू कर दी है। रणथंभौर एडवेंचर ट्यूर के अनुसार उनके द्वारा की गई बुकिंग में से अब तक 80 प्रतिशत से अधिक बुकिंग को निरस्त करने के आदेश मिल चुके हैं। अभी बुकिंग निरस्त होने का क्रम जारी है।

होटलों में खामोशी 

होटल मालिक कैलाश मीणा के अनुसार यहां के किसी भी होटल में तैयारी तो दूर साफ सफाई का भी काम शुरू नहीं हुआ है। अब से पहले सितंबर शुरू होते ही रंग रोगन एवं फर्नीचर को ठीक करने का काम शुरू हो जाता था। बाजार में पेंट के व्यापारी के अनुसार इस बार होटलों से रंग की मांग नहीं आने के कारण वे परेशान हैं। एक करोड़ का रंग बिक जाता था। इस बार स्टाक पड़ा हुआ है।

मॉडल कंडीशन का अड़ंगा 

रणथंभौर में चलने वाले वाहनों की माडल कंडीशन को लेकर हमेशा विवाद रहा है। कभी पांच साल तो कभी चार साल की माडल कंडीशन से यहां के सभी वाहन मालिक हमेशा परेशान रहे हैं। इस बार रणथंभौर में पर्यटन होगा या नहीं यह अभी कोई नहीं जातना है, लेकिन वन विभाग ने अडंग़ेबाजी अभी से शुरू कर दी है। वाहन मालिकों का कहना है कि गत वर्ष रणथंभौर में न्यायालय के आदेश से पांच साल की माडल कंडीशन रखी थी, लेकिन इस बार वन विभाग अपने टेंडर में वापस चार साल की मॉडल कंडीशन रख रहा है।

नेचर गाइडों पर भी लटकी तलवार 

वन विभाग कब क्या करेगा इस बारे में कोई नहीं जानता, जो भी अधिकारी आता है वह कुछ भी कर जाता है और उसका खामियाजा भुगतते है यहां के लोग। नेचर गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष यादवेंद्र सिंह के अनुसार पिछले कई दशकों से यहां पर्यटक वाहनों के साथ जाने वाले पर्यटक गाइडों पर वन विभाग ने नया अड़ंगा लगा दिया है।विभाग ने तय किया है कि सभी पर्यटक गाइडों की परीक्षा होगी और परीक्षा पास करने वाले गाइडों का साक्षात्कार लिया जाएगा। जो इसे पास करेगा वह रणथंभौर में पर्यटक वाहनों के साथ जा सकेगा। इससे लोगों में भय है।

प्रशिक्षण का विरोध 

रणथंभौर नेचर गाइड्स एसोसिएशन की बैठक रणथंभौर रोड स्थित अंकुर होटल में हुई। सचिव शकिर अली ने बताया कि दस सितंबर को होने वाली लिखित, मौखिक परीक्षा के बारे में चर्चा की गई। बैठक में सर्व सम्मति से सभी नेचर गाइड्स ने निर्णय लिया कि उक्त प्रक्रिया का बहिष्कार किया जाएगा। इस संबंध में एसोसिएशन अध्यक्ष शरद कुमार शर्मा ने बताया कि उक्त प्रक्रिया गाइड लाइन 2011-12 के अनुरूप नहीं है और न ही उक्त प्रक्रिया के बारे में नेचर गाइड्स से किसी प्रकार का विचार विमर्श किया गया।

Wednesday, 29 August 2012

वन विहार में सांप के काटने से मादा सिंह की मौत


भोपाल के वन विहार नेशनल पार्क में मादा सिंह लिली की मौत सांप के काटने से हो गई। इस बात का खुलासा शार्ट पीएम रिपोर्ट से हुआ है। वन विहार प्रबंधन इसे सामान्य मौत मान रहा है। प्रबंधन का कहना है कि लिली ने औसत आयु पूरी कर ली थी। वहीं, वन्य प्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदेश के किसी भी चिडिय़ाघर या नेशनल पार्क में सांप के काटने से किसी भी बाघ या सिंह की यह पहली मौत है।

वन विहार के सहायक संचालक डॉ. सुदेश बाघमारे के अनुसार मंगलवार सुबह वन विहार के कर्मचारी डिस्प्ले में बाड़े की ओर गए तो उन्हें लिली कहीं दिखाई नहीं दी। उन्होंने इनक्लोजर में देखा तो वह मृत अवस्था में मिली। लिली का पोस्टमार्टम किया गया तो उसकी शार्ट पीएम रिपोर्ट में मौत का कारण सर्प दंश बताया गया है। वहीं, वन्य प्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि वन्य प्राणी सांप के प्रति सजग होते हैं। यहां तक कि जहरीले प्राणियों के नजदीक होने पर वे वर्किंग अलर्ट भी देते हैं। इस तरह की घटना आज तक न तो नेशनल पार्कों और ना ही प्रदेश के किसी भी चिडिय़ा घर में सुनी गई। इस तरह की घटना अनोखी और प्रदेश की पहली घटना है।

विसरा भेजा गया फारेंसिक लैब 

बाघमारे ने बताया कि विस्तृत परीक्षण के लिये मादा सिंह के आंतरिक अंगों के सैम्पल आईवीआरआई इज्जत नगर, बरेली, सेंटर फॉर वाइल्ड लाइफ फॉरेंसिक एंड हेल्थ, जबलपुर एवं राज्य पशु रोग अन्वेषण प्रयोगशाला, जहांगीराबाद, भोपाल भेजे गए हैं। वहीं पोस्टमार्टम के बाद मादा सिंह का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

Thursday, 23 August 2012

टाइगर रिजर्व : कोर एरिया में पर्यटन पर रोक बरकरार


सुप्रीम कोर्ट ने टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में पर्यटन गतिविधियों पर लगाई गई रोक को हटाने से बुधवार को इनकार कर दिया। जस्टिस एके पटनायक और स्वतंत्र कुमार की बेंच ने बाघों की घटती संख्या पर कुछ सवाल भी उठाए। सरकार ने शीर्ष कोर्ट द्वारा 24 जुलाई को दिए रोक के आदेश पर पुनर्विचार की याचिका लगाई है। अगली सुनवाई 29 अगस्त को होगी। बेंच ने सरकारी वकील वसीम अहमद कादिरी से पूछा, 'आप बाघों को बचाने के लिए क्या करना चाहते हैं। पहले इनकी संख्या 13 हजार थी, अब 1200 रह गई है। आपको व्यावसायिक गतिविधियों की ज्यादा चिंता है।'

टाइगर रिजर्व में पर्यटन गतिविधियों पर रोक के आदेश के बाद दायर हलफनामे में सरकार ने बाघों के संरक्षण के मौजूदा दिशा निर्देशों की समीक्षा की अनुमति मांगी है। केंद्र ने इसमें राज्यों की चिंता का जिक्र किया है कि प्रतिबंध से स्थानीय लोगों की आजीविका प्रभावित होगी जो पर्यटन पर निर्भर हैं। ऐसी स्थिति में वन्य जीवों के लिए खतरा हो जाएगा।

पचमढ़ी संघर्ष समिति के सदस्य संजय लेडवाणी ने बताया कि पर्यटक पहले यहां हफ्तेभर तक रुकते थे, लेकिन अब एक-दो दिन में ही वापस लौट रहे हैं।

यहां प्रवेश बंद : धूपगढ़, रम्यकुंड, बीफॉल, डचेज फॉल, अप्सरा विहार और टाइनम पूल।

यहां चालू : महादेव, पांडव गुफा, जटाशंकर, राजेंद्र गिरि, अंबामाई मंदिर, माड़ादेव, चौरागढ़, हांडी खो, प्रियदर्शिनीं।

Tuesday, 21 August 2012

सरिस्‍का में 12 दिन बाद अकेली दिखाई दी बाघिन


सरिस्का अभयारण्य में शावकों को जन्म देने बाद बाघिन एसटी-2 दूसरी बार रविवार को दिखाई दी। इस बार बाघिन अकेली थी। सरिस्का प्रशासन की ओर से जंगल में लगाए गए कैमरों ने बाघिन एसटी-2 की तस्वीरों को कैद किया। शावकों को जन्म देने के बाद बाघिन ज्यादातर समय जंगल में छुपकर बिता रही है।

सरिस्का अभयारण्य के कोर एरिया में काली घाटी जंगल में शावकों को जन्म देने के बाद बाघिन एसटी-2 की निगरानी बढ़ा दी गई। बाघिन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए जंगल में जगह-जगह गुप्त कैमरे लगाए गए हैं। कैमरों द्वारा ली गई तस्वीरों की हर दिन जांच की जाती है। सोमवार को वनकर्मियों ने कैमरे के कार्ड की जांच की तो उसमें बाघिन एसटी-2 घूमती नजर आई। कैमरे ने यह फोटो रविवार शाम को ली । फोटो में बाघिन अकेली दिखाई दे रही है। इससे पहले 7 अगस्त की शाम को कैमरे ने ही बाघिन एसटी-2 व उसके एक शावक की फोटो कैद की थी। इस फोटो के जरिए ही सरिस्का में बाघिन के बच्चे देने की पुष्टि हुई थी। 7 अगस्त के बाद 19 अगस्त को बाघिन दिखाई दी है। इन 12 दिनों के दौरान बाघिन के पगमार्क तो मिल रहे थे लेकिन कैमरों में फोटो नहीं आ रही थी।

शावकों को शिकार की दे रही है ट्रेनिंग 

सरिस्का डीएफओ सेढूराम यादव का कहना है शावक होने के बाघिन काफी संवेदनशील हो जाती है। ज्यादातर समय शावकों को छुपाकर रखती है। बाघिन खुद भी सिर्फ शिकार के लिए ही बच्चों से अलग होती है। शिकार करने के बाद बच्चों को वह खाना खिलाने के लिए ही बाहर निकालती है।यही कारण है कि जन्म के कई महीनों तक शावकों को बारे में वनकर्मियों को पता नहीं लगता।

Friday, 10 August 2012

बाघिन एसटी-2 की बढ़ाई निगरानी



सरिस्का अभयारण्य में बाघिन एसटी-2 के शावकों को सुरक्षा देने के लिए वन विभाग ने क्षेत्र की निगरानी बढ़ा दी है। जंगल में इसके लिए जगह-जगह गुप्त कैमरे लगाए गए हैं। जिस क्षेत्र में बाघिन रह रही है वहां ग्रामीण व चरवाहों के जाने पर रोक लगा दी गई है।

सरिस्का अभयारण्य के काली घाटी क्षेत्र के स्लोपका जंगल में बाघिन एसटी-2 के साथ शावक का फोटो मिलने के बाद सरिस्का प्रशासन विशेष एहतियात बरत रहा है। बाघिन की दिन रात मॉनिटरिंग की जा रही है। स्लोपका जंगल में जगह-जगह गुप्त कैमरे लगाए गए हैं। ये कैमरे क्षेत्र की हर गतिविधि को कैद कर रहे हैं।

फोटोग्राफ का विश्लेषण हो रहा है। जिस जगह बाघिन ने बच्चे दिए हैं उसके आसपास वनकर्मियों को गश्त के निर्देश दिए हैं। इससे कोई ग्रामीण बाघिन के नजदीक नहीं पहुंच सके। वन अधिकारियों का कहना है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए बाघिन उग्र हो सकती है। ऐसे में यदि कोई ग्रामीण बच्चों के नजदीक पहुंचता है तो वह हमला कर सकती है।



Wednesday, 25 July 2012

बाघों के कोर जोन में पर्यटकों पर रोक


सुप्रीम कोर्ट ने बाघ संरक्षित क्षेत्र में पर्यटन पर रोक लगा दी है। हालांकि, यह रोक अभी अंतरिम आदेश के तौर पर है। प्रतिबंध सिर्फ 'कोर जोन' के लिए ही है। मंगलवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने राज्यों को बाघ अभयारण्यों के आसपास बफर जोन तय करने के लिए आखिरी मोहलत दी। तीन हफ्ते के भीतर आदेश तामील नहीं हुआ तो राज्यों पर अवमानना का केस चलेगा। साथ ही वन विभाग के प्रमुख सचिव पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। कोर्ट ने पिछला आदेश नहीं मानने के लिए आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र और झारखंड पर 10-10 हजार का जुर्माना भी लगाया। झारखंड और अरुणाचल प्रदेश के वकील ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि वह इस बार समय पर काम पूरा कर लेंगे।

जस्टिस स्वतंत्र कुमार और इब्राहीम खलीफुल्ला की बेंच पर्यावरणविद अजय दुबे की अर्जी पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने 4 अप्रैल और 10 जुलाई को भी राज्यों से बफर जोन का इलाका तय करने के निर्देश दिए थे। मामले की सुनवाई 22 अगस्त को होगी। इसमें सभी राज्य राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की गाइड लाइन पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराएंगे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट अंतिम फैसला देगा।

केंद्र ने किया फैसले का स्वागत 

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। साथ ही कहा कि वह मंत्रालय की ओर से भी राज्यों को फौरन कार्रवाई करने को कहेगी।

4 अप्रैल को निर्देश 

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र को तीन माह में बफर जोन अधिसूचित करने को कहा था।

10 जुलाई को सख्ती 

राजस्थान ने बफर जोन अधिसूचित करने की सूचना दी। कोर्ट ने बाकी राज्यों को दो हफ्ते का और वक्त दिया। लेकिन चेतावनी के साथ।

क्यों दिया आदेश 

वन्य जीव अधिनियम-1972 के तहत सभी राज्यों को अपने यहां टाइगर रिजर्व का कोर जोन और बफर जोन तय कर इसकी अधिसूचना जारी करना अनिवार्य है।

होटल-रिसोर्ट मालिकों की नजरें 22 अगस्त पर 

कान्हा लॉज एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष नीलेश अग्रवाल का कहना है कि बड़े पार्कों में वैसे भी कोर एरिया के 25 फीसदी हिस्से में टूरिस्ट जा पाता है। बाकी एरिया बंद रहता है। नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की गाइड लाइन में साफ लिखा है कि कोर एरिया को धीरे-धीरे पर्यटन से अलग करना है, लेकिन सुप्रीमकोर्ट के आदेश से पर्यटन गतिविधियां एकदम से बंद हो जाएंगी।

मप्र के टाइगर रिजर्व 16 अक्टूबर से पर्यटन के लिए खुलते हैं। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का फिलहाल कोई प्रभाव फिलहाल मप्र पर नहीं है। अगली सुनवाई में मप्र अपना पक्ष रखेगा। -जेएस चौहान, फील्ड डायरेक्टर, कान्हा टाईगर रिजर्व (सरकार की ओर से केस में ओआईसी) 


क्या है मामला

आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने याचिका में आरोप लगाया है कि कई राज्य टाइगर रिजर्व के भीतर होटल, लॉज और पर्यटन परियोजनाओं को मंजूरी दे रहे हैं। इससे वन्य जीवों को जिंदगी खतरे में है।

क्‍या है कोर जोन 

कोर जोन टाइगर रिजर्व का वह इलाका जिसमें बाघ घूमता-फिरता और शिकार करता है। बफर जोन इसके इर्द-गिर्द का वह इलाका है, जिसमें बाघों के भोजन के लिए इस्तेमाल होने वाले जानवर रहते हैं। कोर जोन के बाहर करीब 10 किमी तक का क्षेत्र बफर जोन हो सकता है।

मप्र में छह टाइगर रिजर्व, पांच का सीमांकन

कान्हा टाइगर रिजर्व : 60 रिसोर्ट, होटल
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व : 40 रिसोर्ट-लॉज
सतपुड़ा नेशनल पार्क : 200 होटल व रिसोर्ट
पन्ना नेशनल पार्क : ०4 होटल
संजय टाइगर रिजर्व : होटल नहीं
पेंच नेशनल पार्क : 30 होटल, रिसोर्ट

Friday, 20 July 2012

वापस पन्ना टाइगर रिजर्व पहुंचा तीसरा बाघ


छतरपुर/पन्ना। छतरपुर जिले के किशनगढ़ क्षेत्र में पहुंचा पन्ना टाइगर रिजर्व का बाघ वापस संरक्षित क्षेत्र में पहुंचा दिया गया है। बाघ को सुरक्षित तरीके से वापस पहुंचाने के बाद यहां के सभी बाघों की निगरानी तेज कर दी है। 

पन्ना टाइगर रिजर्व के तीन बाघ मंगलवार को रिजर्व क्षेत्र से बाहर आ गए थे। दो बाघों को बुधवार सुबह तक किए गए रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद वापस रिजर्व क्षेत्र में पहुंचा दिया गया, लेकिन तीसरा बाघ किशनगढ़ इलाके में आ गया था। इस इलाके में पन्ना नेशनल पार्क और छतरपुर वन विभाग की टीमों ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरु किया।

बुधवार देर रात तक चले प्रयासों के बाद हाथियों की मदद से बाघ को वापस रिजर्व क्षेत्र में पहुंचा दिया गया। पन्ना टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर विक्रम ङ्क्षसह परिहार के अनुसार अब क्षेत्र के सभी बाघों की निगरानी बढ़ा दी है। विभागीय अमले को इनके मूवमेंट पर कड़ी नजर रखने के लिए कहा गया है।

Friday, 22 June 2012

जंगल में नर बाघ की आवाज सुनाकर खोज रहे हैं बाघिन को

कोटा. सुल्तानपुर के जंगलों में 30 माह से भटक रही टी-35 बाघिन की तलाश में रोचक तरीके इस्तेमाल किए जा रहे है। पुराने समय में राजा-महाराजा बकरी बांधकर उसे लुभाते थे लेकिन अब देहरादून से आई वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट की टीम उसे नर बाघ की आवाज टेप बजाकर सुना रही है। 

टीम नर बाघ की यूरीन भी साथ लेकर आई है। रुई में लगाकर इसकी गंध (फेरोमोन) से बाघिन को आकर्षित करने का प्रयास हो रहा है। हालांकि इस टीम का यह तीसरा बड़ा अभियान भी निराशा की तरफ बढ़ चला है। दो दिन में टीम को केवल फुटप्रिंट ही मिले है। तय रणनीति के अनुसार शुक्रवार को अंतिम दिन तलाशी होगी। इसे बढ़ाया भी जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि रणथंभौर से भागकर आई टी-35 की तलाश में अब तक करीब 2 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके है। इस बाघिन को काबू में करने के लिए टीम दुनियाभर में इस्तेमाल किए जा रहे हर तरीके को इस्तेमाल कर रही है। पिछली बार की तरह चालाक बाघिन अंतिम समय में भाग न जाए इसलिए तलाशी में लगे वाहन पर जंगल के रंगों से मिलता-जुलता जाल भी लगाया गया है। इसी वाहन में टै्रंक्युलाइज करने वाली टीम छुपकर बैठी रहती है। 

जंगली बबूल बना मुसीबत

सरिस्का के फील्ड डायरेक्टर आरएस शेखावत ने बताया कि बाघिन की टेरिटरी में जूलीफ्लोरा (जंगली बबूल)की तादाद अधिक है। बाघिन को हमारा मूवमेंट आसानी से पता चल जाता है और वह गायब हो जाती है। यहां नालों में पानी भरा है और जगह-जगह कंदराएं होने से भी तलाशी मुसीबत बनी हुई है।

50 से ज्यादा लोगों की टीम

इस बार तलाशी में लगी टीम में 50 से ज्यादा सदस्य शामिल है। इनमें प्रमुख रूप से वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून के वेटनरी साइंस हैड डॉ. पी मलिक, डॉ. शंकर, सरिस्का के फील्ड डायरेक्टर आरएस शेखावत, एसीएफ रंगलाल चौधरी, कोटा वाइल्ड लाइफ डीएफओ बीपी पारीक, डॉ. एके पांडे शामिल है। गुरुवार को इस टीम ने करीब 10 किमी का जंगल नापा।

Tuesday, 19 June 2012

दुनिया का पहला बाघ, जो पाल रहा है शावकों का


रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में सालभर के दौरान जो घटा है, वह हैरतअंगेज है। बाघिन टी-5 की मौत के बाद उसके दो शावकों को उनका पिता पाल रहा है। ये प्रजाति की परंपरा के विरुद्ध है। यदि बाघ अपने इलाके में दूसरे बाघ को देख ले तो हमला कर देता है। बाघिन न हो तो अपने बच्चे को मार ही देता है। नेटजियो और डिस्कवरी के मशहूर वाइल्डलाइफ डॉक्यूमेंट्री मेकर अजय सूरी बयां कर रहे हैं ये दिलचस्प कहानी...

दुर्लभ दुलार...

14 मार्च 2011 : रणथंभौर की कचीदा चौकी के पास लगे वन विभाग के कैमरे से चौंकाने वाली तस्वीर मिली। दोनों शावकों के साथ एक बाघ भी था। आशंका जताई जाने लगी कि कहीं उसने शावकों को मार ही न दिया हो। लेकिन दोनों शावक अपने पिता के साथ थे। यहां के मानद वाइल्डलाइफ वार्डन बालेंदुसिंह बताते हैं कि विशेषज्ञ तो मानने को तैयार ही नहीं थे कि कोई बाघ बच्चे को पाल रहा है। रणथंभौर में पिता के साथ घूमते शावकों का दृश्य अब आम है। शुरुआत में यह बाघ अपने शावकों की 24 घंटे रखवाली करते देखा जाता था। यदि कोई शावक उद्दंड होता तो इस गंभीर पिता के पंजे की हलकी-सी थपकार  उसे शांत करा देती। डेढ़ साल के युवा शावकों को अब किसी का खौफ नहीं। वे पिता के साथ पंजे घिसते हुए अपने इलाके की हद तय करते देखे जा सकते हैं।


दुर्लभ दृश्य...

जंगल में हर दिन एक नया दिन होता है। एक शावक भटककर नदी के किनारे पहुंचा। वहां तीन सौ मीटर की दूरी पर खड़ी एक अन्य बाघिन टी-17 पहले से मौजूद थी। वह हमले के लिए दबे पांव शावक की ओर बढऩे लगी। लेकिन तभी झाडिय़ों के बीच से शावक का पिता सामने आ गया। ये जताते हुए कि कोई उसके बच्चे की तरफ बुरी नजर से न देखे। बाघिन के पैंतरा बदलने में भी कुछ सेकंड ही लगे। जहां वह पहले बेहद आक्रामक थी, फिर वह उलझन में नजर आई और जल्द ही समर्पण के भाव में। आमने-सामने आकर दोनों करीब दस सेकंड तक एक-दूसरे को घूरते रहे और फिर अपने-अपने इलाके  की ओर लौट गए। राजस्थान के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन एसी चौबे कहते हैं कि जंगली जीवों के बारे में बहुत कुछ ऐसा है, जो इंसान के लिए जानना बाकी है।

Saturday, 9 June 2012

पन्ना से गायब बाघों की नहीं होगी सीबीआई जांच


पन्ना नेशनल पार्क से पूरी तरह गायब हुए बाघों के मामलों की जांच अब पुलिस करेगी। इसके लिए सागर पुलिस महानिरीक्षक की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी। वन विभाग ने इस मामले में सीबीआई जांच कराने से इंकार कर दिया है।

मप्र वन विभाग ने पन्ना नेशनल पार्क से पूरी तरह गायब हो चुके बाघों की जांच सीबीआई से कराने से इंकार कर दिया है। अब वन विभाग इसकी जांच पुलिस से कराएगा। बाघों के गायब होने के कारणों की जांच के लिए पुलिस महानिरीक्षक सागर जोन की अध्यक्षता में समिति गठित करने के निर्देश जारी हो गए है। इधर, बाघों की सुरक्षा के लिए काम करने वाली स्वयं सेवी संस्थाओं का कहना है कि वन विभाग दोषी अधिकारियों को बचाने के लिए पुलिस से जांच रहा है, जबकि यह मामला बाघों की अंतरराष्ट्रीय तस्करी से जुड़ा है।

एनवायर एक्शन ग्रुप प्रयत्न के अध्यक्ष अजय दुबे का कहना है कि इस मामले में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने भी सीबीआई जांच करने की सिफारिश की थी लेकिन मप्र वन विभाग ने उनकी सिफारिश को मानने से इंकार कर दिया जबकि यह एक दो बाघ नहीं बल्कि 35 बाघों का मामला है। वहीं टाइगर, इनिशिएटिव ग्रुप रिवाइवल के सदस्य पुष्पेंद्र नाथ के सदस्य का कहना है कि मप्र वन विभाग दोषी अधिकारियों को बचाने के लिए ऐसा कर रहा है।

क्या था मामला 

वर्ष 2007 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने मप्र शासन को बाघों की संख्या कम होने पर सीबीआई जांच कराने की बात कही थी। उसके बाद 2009 में प्राधिकरण ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें बताया गया कि पन्ना पार्क से पूरी तरह बाघ गायब हो चुके है। वहीं राज्य शासन ने भी एक समिति गठित कर पन्ना से बाघ गायब होने की पुष्टि की। उसके बाद प्राधिकरण ने इसके कारण का पता लगाने की सीबीआई जांच करने की पुन: सिफारिश की। गृह विभाग ने वन मंत्री सरताज सिंह से पन्ना पार्क से गायब हुए बाघों के संबंध में सबूत मांगे ताकि सीबीआई जांच में वे सबूत काम आ सके। फरवरी 2012 में वन विभाग के पास सभी सबूत आ गए। सबूतों को देखने के बाद वन विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव एमएन राय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सीबीआई जांच की बात कही थी।

कान्हा में बाघिन ने त्यागा शावक


कान्हा नेशनल पार्क में एक बाघिन ने दस माह तक शावक को पालने के बाद उसे त्याग दिया है। कान्हा नेशनल पार्क प्रबंधन ने शावक को विशेष बाड़े में रखा है। यह मादा शावक है और इसकी हालत नाजुक है। कान्हा नेशनल पार्क के डायरेक्टर जेएस चौहान ने बताया कि पार्क के कर्मचारियों को गुरुवार को एक शावक लावारिस स्थिति में दिखाई दिया। उस पर लगातार नजर रखने के बाद कर्मचारियों ने पाया कि बाघिन शावक के पास नहीं जा रही है। कर्मचारियों ने इसकी सूचना प्रबंधन को दी । शावक के शरीर पर घाव के निशान थे। कई दिनों से भूखा होने की वजह से वह बहुत कमजोर हो गया था। शावक की हालत देखने के बाद उसे बेहोश करके पकड़ा गया। उसे विशेष बाड़े में रखा गया है। पार्क के डाक्टर उसके स्वास्थ्य पर पूरी तरह नजर रखे हुए है। 

बाघिन और शावकों की बढ़ाई जाए सुरक्षा


भोपाल फॉरेस्ट सर्कल में बाघ के शिकार के बाद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण अब बाघिन और उसके शावकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। प्राधिकरण ने शुक्रवार को बाघिन और उसके शावकों की हाई सिक्योरिटी के निर्देश जारी किए है।

प्राधिकरण द्वारा मप्र में बाघों को लेकर हाई अलर्ट जारी करने के बाद भी भोपाल फॉरेस्ट सर्कल के कठौतिया परिक्षेत्र में पांच वर्षीय बाघ का शिकार हो गया था। प्राधिकरण ने इसी क्षेत्र में मूवमेंट कर रही बाघिन और उसके शावकों की सुरक्षा के
लिए चौकसी बढ़ाने के निर्देश दिए हैं।

प्राधिकरण का कहना है कि पहले भी वन विभाग को इसके लिए सचेत किया था कि उनके क्षेत्र में बाघ का शिकार हो सकता है, लेकिन सूचना को तवज्जो नहीं दी गई। प्राधिकरण के डायरेक्टर राजेश गोपाल का कहना है कि इस संबंध में उन्होंने पीसीसीएफ पीके शुक्ला को निर्देश भेज दिए हैं।

Friday, 25 May 2012

कहां गुम हुआ जंगल का राजा?


जंगल का राजा
टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्य प्रदेश से अब यह सम्मान छिन चुका है. बाघों की गणना के गत मार्च में जारी आंकड़ों के मुताबिक देशभर में जहां बाघों की संख्या बढ़ी है वहीं प्रदेश में, खासतौर से, आदर्श माने जाने वाले कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में इनकी संख्या में उल्लेखनीय गिरावट आई है. जहां प्रदेश बाघों की संख्या घटने के दावे को मानने को तैयार नहीं है, वहीं हाल ही में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के दौरे पर आए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश ने स्पष्ट कहा है कि राज्य सरकार को बाघों के गायब होने की सीबीआइ जांच करवानी चाहिए.

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने 28 मार्च को देशभर में बाघों की गणना के वर्ष 2010 के आंकड़े जारी किए थे, जिनके मुताबिक देश में बाघों की संख्या अनुमानतः 1,706 है जबकि 2006 में यह आंकड़ा 1,411 था. हालांकि प्रदेश के छह टाइगर रिजर्वों में चार साल पहले बाघों की संख्या 300 थी जो घटकर 257 रह गई है. यानी इन चार साल में प्रदेश में 43 बाघ कम हो गए.

प्रदेश का वन विभाग इन आंकड़ों पर सवालिया निशान लगा रहा है. भारतीय वन्य प्राणी संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के प्रदेश में बाघों की संख्या घटने के दावे के बाद वन विभाग अपने स्तर पर 25 अप्रैल से बाघों की फिर से गिनती शुरू कर चुका है.
राष्ट्रव्यापी गणना की मानें तो बाघ सर्वाधिक तेजी से और सबसे ज्‍यादा संख्या में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में घटे हैं. चार साल पहले यहां 89 बाघ थे, जो अब 64 रह गए हैं. पन्ना टाइगर रिजर्व में कभी 24 बाघ हुआ करते थे लेकिन आज उनमें से एक भी यहां नहीं है और यही वजह है कि बाघों की उपस्थिति को बनाए रखने के लिए कुछ हफ्तों पहले ही एक बाघिन और उसके दो शावकों को यहां लाया गया है.

राज्‍य के अन्य चार टाइगर रिजर्वों बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा और संजय राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या में खास परिवर्तन नहीं हुआ है. इस सब के बीच एक दिलचस्प तथ्य सामने आया है वह यह कि गैरसंरक्षित जंगलों में भी बाघ देखे गए हैं. मसलन, इंदौर देवास इलाके में सात बाघों की मौजूदगी के निशान मिले हैं, रायसेन में 14 बाघों के तो श्योपुर के कूनोपालपुर में तीन बाघों की मौजूदगी के संकेत मिले हैं.

शिवपुरी के माधव राष्ट्रीय उद्यान में भी बाघ के आने की पुष्टि हुई है. प्रदेश के प्रमुख वन्य संरक्षक (पीसीसीएफ) डॉ. एच.एस. पाबला कहते हैं, ''कान्हा और उससे लगे छह वन रिजर्व क्षेत्रों में वन विभाग के कर्मचारियों ने जो नमूने एकत्र कर डब्ल्यूआइआइ को दिए थे, लगता है कि उनका विश्लेषण सही नहीं हो पाया.''

पाबला के मुताबिक डब्ल्यूआइआइ ने प्रदेश के 9,700 वर्ग किमी क्षेत्र का विश्लेषण किया है, जबकि प्रदेश में बाघों का विचरण करीब 12,700 वर्ग किमी में है, ऐसे में 3,000  वर्ग किमी का विश्लेषण रह गया है, जिनमें दमोह, सागर, नौरादेवी, खंडवा, बैतूल और छिंदवाड़ा के जंगल शामिल हैं.

लेकिन डब्ल्यूआइआइ के प्राणी विशेषज्ञ डॉ. वाइ.वी. झला कहते हैं, ''टाइगर रिजर्व में बाघों से जुड़े संपूर्ण डाटा को संबंधित राज्य का वन विभाग ही इकठ्ठा करता है, हमारे विशेषज्ञ तो उनका सिर्फ विश्लेषण करते है और उसी आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं. हो सकता है कि कुछेक स्थानों पर नमूने लेते समय बाघ की आवाजाही नहीं मिली हो.''

पाबला कहते हैं कि चार साल पहले कान्हा में 424 बीट्‌स थीं, जो अब बढ़ाकर 495 कर दी गई है ऐसे में बाघ कैसे कम हो सकते हैं. अपने विभाग की आंतरिक निगरानी प्रणाली के आधार पर वे दावा करते हैं कि पन्ना में कम से कम 89 बाघ तो होने ही चाहिए, संख्या इससे ज्यादा भी हो सकती है. लेकिन वन विभाग के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि पन्ना से बाघों के घटने का कारण सिर्फ और सिर्फ अवैध शिकार है.

हालांकि वन विभाग कान्हा से 25 बाघों के गायब होने के पीछे क्षेत्राधिकार के लिए होने वाली लड़ाई को कारण बताता है. जयराम रमेश के दौरे के एक दिन बाद ही पन्ना टाइगर रिजर्व के गंगऊ व बलगार क्षेत्र से नीलगाय, तेंदुआ, लकड़बग्घा, बारहसिंगा की खाल और कंकाल मिले और तेंदुए की खाल में गोली का निशान हैं, लेकिन टाइगर रिजर्व के अधिकारी अवैध शिकार की बात मानने को तैयार नहीं है. हाल ही में यहां से लल्लू रैकवार नाम का शिकारी भी गिरफ्त में आया है, जिसके पास से जानवरों के शिकार के काम आने वाले देसी बम मिले हैं. बीते चार साल में प्रदेश के छह टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण पर 139 करोड़ रु. खर्च हुए हैं.

पन्ना को छोड़ बाकी के पांच उद्यानों का बफर जोन बनाकर क्षेत्रफल भी बढ़ाया गया है लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है. पन्ना में बफर जोन की अधिसूचना जारी नहीं किए जाने का कारण स्थानीय लोगों द्वारा इसका विरोध करना बताया जा रहा है लेकिन भोपाल के आरटीआइ कार्यकर्ता अजय दुबे, जिनके प्रयासों के चलते ही पांच टाइगर रिजर्वों को बफर जोन घोषित करने के लिए सरकार को मजबूर होना पड़ा, इसके पीछे कुछ और ही कारण मानते हैं.वे कहते हैं, ''पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के आसपास उत्खनन की गतिविधियां जोरों पर हैं, जिनसे जुड़े रसूखदार राजनीतिक लोग नहीं चाहते कि यहां बफर जोन बने.''टाइगर स्टेट का दर्जा छिन जाने से देशभर में प्रदेश की जो किरकिरी हुई है उससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी खासे नाखुश हैं. लेकिन जब तक फिर से हो रही गणना के आंकड़े न आ जाएं, तब तक हो भी क्या सकता है.

बढ़ गए बाघ:

- 39 टाइगर रिजर्वों में हुई गणना कहती है कि देश में बाघों की संख्या अनुमानतः 1,706 है, जो 2006 में हुई गणना 1,411 से 295 ज्‍यादा है.
- मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में घटे बाघ. जबकि 280 बाघ संख्या के साथ कर्नाटक  ने मध्य प्रदेश से टाइगर स्टेट का दर्जा छीना.
- चार साल पहले मध्य प्रदेश में 300 बाघ थे जो घटकर 257 रह गए. सबसे ज्‍यादा 25 बाघ घटे कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में.

सौजन्‍य: इंडिया टुडे

कलियासोत के बाघों को शिकारियों से खतरा


भोपाल. वन विभाग ने बाघों की सुरक्षा को लेकर भले ही अलर्ट जारी कर दिया हो, लेकिन भोपाल वन मंडल इस पर गंभीर नहीं है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि समरधा रेंज में बाघ की मॉनिटरिंग के लिए केवल 20 कर्मचारी लगाए गए हैं। वो भी कहीं वन महोत्सव की तैयारियों में जुटे हैं तो कोई तेंदूपत्ता तुड़ाई में। कलियासोत-केरवा क्षेत्र में पर्यटक बेरोकटोक घूम रहे हैं।

गौरतलब है कि बाघ की सुरक्षा को लेकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने प्रदेश के सभी नेशनल पार्क और सेंक्चुरी में अलर्ट जारी किया है। कलियासोत और केरवा में सक्रिय बाघों की सुरक्षा के लिए 20 लोगों की टीम बनाई गई है, जो बाघों की निगरानी के लिए पर्याप्त नहीं है। वहीं समरधा रेंज की वन समिति और मुखबिर तंत्र भी निष्क्रिय है। संदिग्ध रूप से घूमने वालों को रोकने टोकने वाला भी कोई नहीं है। सूत्रों का कहना है कि बाघों की सुरक्षा के लिए लगे गश्ती दल के पास वाहन तक नहीं है।

भोपाल फॉरेस्ट सर्कल के सीसीएफ एसएस राजपूत का कहना है कि रातापानी अभयारण्य से माइग्रेट होकर आए बाघ-बाघिन और शावकों की सुरक्षा के लिए दूसरे रेंज के कर्मचारियों को लगाया गया है। उनका मानना है कि जिस तरह की सुरक्षा के संसाधन टाइगर रिजर्व और सेंक्चुरी में हैं, उतने समरधा रेंज में नहीं हैं। उन्होंने बताया कि इस संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी दे दी गई है। उनका कहना है कि अपर्याप्त संसाधन के बावजूद वन अमला बाघ व बाघिन और शावकों पर सतत निगरानी रखे हुए है।

ये होना चाहिए इंतजाम 

विशेषज्ञों का कहना है कि चार बाघों की सुरक्षा के लिए और उनके मूवमेंट पर निगरानी रखने के लिए कम से कम दस-दस वन कर्मचारियों की पांच टीम होनी चाहिए। यह टीम केवल टाइगर की मॉनिटरिंग का काम करे। गश्ती दल के मूवमेंट के लिए वाहन, कैमरे, नाइट विजन कैमरा, नाइट विजन दूरबीन सहित बजट होना जरूरी है।

Friday, 18 May 2012

गणना में 15 बाघों की मौजूदगी के साक्ष्य मिले


सतपुड़ा रिजर्व में गणना के पहले दिन 15 बाघों की मौजूदगी के साक्ष्य मिले हैं। 42 डिग्री सेल्सियस की तपन से भरे दिन में 400 वनकर्मियों के 123 दल बाघों को खोजने गुरुवार सुबह 6 बजे से ही निकल गए थे। अपरान्ह 4 बजे तक इन दलों को इन बाघों की मौजूदगी यह सुराग रास्ते में बाघों के पंजे, पेड़ों पर निशान और विस्टा के नमूनों से मिले हैं।

1560 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले रिजर्व में इन बाघों के साक्ष्य धाई, बोरी, भारभूड, चूरना, मढ़ई, ढाबा क्षेत्र में पाए गए। इस खोज के दौरान बीटों में तेंदुआ, रीछ, लकड़बग्गा, सोन कुत्ते की मौजूदगी के निशान भी पाए गए। अभी दो दिन और बाघों की खोज की जाएगी। वर्ष 2011 की गणना के अनुसार 43 बाघ हैं।

इन साक्ष्यों को खोजा 

बाघ व अन्य प्राणियों के पग मार्क, जमीन व पेड़ों पर बाघ के पंजे की खरोच, विस्टा व गंध मार्किंग, शिकार को मारने का तरीका, जमीन में लोट लगाने की स्थिति, आवाज, प्रत्यक्ष दर्शन के आधार पर क्षेत्र में बाघ होने के सबूत तलाशे।

आगे यह होगा 

पद मार्क के आधार पर जुटाए गए आंकड़ों को डब्ल्यूआईआई देहरादून भेज दिया जाएगा। विशेषज्ञ साक्ष्यों के आधार पर बाघों की सही संख्या का अनुमान निकालेंगे। इसमें तकरीबन आठ माह लगेंगे।

बाघ के जबड़े से पत्नी को जिंदा बचाया


उमरिया। यहां बांधवगढ़ के वन्य ग्राम रोहनिया के पास एक साहसी युवक ने खूंखार बाघ से निहत्थे 15 मिनट तक जंग लड़ी और अंतत: उसके जबड़े से अपनी पत्नी को जीवित बचा लिया। युवक तिलकराज की घायल पत्नी गीताबाई को उपचारार्थ उमरिया चिकित्सालय में भर्ती किया गया है जबकि तिलकराज खुद पूरी तरह सुरक्षित है। गीताबाई को उस समय बाघ ने अपने जबड़े में दबोच लिया था जब वह तेंदू पत्ता तोड़ रही थी। पास ही प ा तोड़ रहे तिलकराज ने जैसे ही अपनी पत्नी को बाघ से हमला होते देखा वह दौड़ लगाकर निहत्थे ही बाघ पर पिल पड़ा।

घटनाक्रम के बारे में  मिली जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ़ के ग्राम रोहनिया निवासी तिलकराज तथा उसकी पत्नी गीताबाई अन्य लोगों के साथ जंगल में तेंदूपत्ता तोड़ने गए थे। गुरुवार को सुबह करीब ९ बजे वह तेंदु पत्ता तोड़ते-तोड़ते गीताबाई साथियों से अलग दिशा की ओर चली गई। सामने एक बाघ झुरमुट में छिपा बैठा था। जिसे महिला देख नहीं पाई। बाघ ने अचानक छलांग लगाई और गीताबाई के गले में जबड़ा गड़ाकर उसे पंजों में दबोच लिया। 

निहत्थे भिड़ा बाघ से

अस्पताल में पत्नी का इलाज करा रहे तिलकराज ने बाघ से भिड़ने का जो हाल बताया वह कम रोमांचकारी नहीं था। उसने बताया कि जब बाघ ने छलांग लगाकर उसकी पत्नी को जबड़ों और पंजों में जकड़ा तो वह बिना कुछ सोचे-समझे बाघ से जा भिड़ा। इस वक्त उसके पास डण्डा तक नहीं था। उस समय उसके मन में यही था कि पत्नी को बचाना है। पहले तो उसने गीता का पैर पकड़कर खींचा, लेकिन बाघ की पकड़ काफी मजबूत थी। उसके बाद उसने बाघ के शरीर पर लात और घूंसों से वार करना शुरु कर दिया। 

18 मई 2012, दैनिक भास्कर, जबलपुर

Thursday, 17 May 2012

गणना : आज से खोजेंगे सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में बाघों के साक्ष्य


सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में साक्ष्यों के आधार पर मांसाहारी वन्यप्राणियों की गणना का काम 17 मई से शुरू होगा। रिजर्व के 500 वन्य कर्मचारी पहली बार दो ट्रांजेक्शन लाइनों पर 4-4 किमी वन्यप्राणियों के साक्ष्य खोजेंगे। दस साक्ष्यों के आधार पर वन्य कर्मी सुबह 6 बजे से वन्यप्राणियों के निशान तलाशने जाएंगे। गणना का काम 19 मई तक चलेगा।

गणना को पुख्ता बनाने के लिए दो ट्रांजेक्ट लाइनों के अलावा 6 दिन होने वाली गणना अब 9 दिन की होगी। पहले चरण में मांसाहारी वन्यप्राणियों की गणना का काम 3 दिन होगा। दूसरे चरण में शाकाहारी वन्यप्राणियों की गणना 6 दिन होगी। हालांकि शाकाहारी वन्यप्राणियों की गणना कब होगी यह तिथि निर्धारित नहीं हुई है। सूत्रों की मानें तो वन्यप्राणियों की गणना में प्रयुक्त होने वाले कम्पास और रेंज फाइंडर जैसे उपकरणों के उपलब्ध न होने से शाकाहारी वन्यप्राणियों की गणना में देरी हो रही है।

इन दस साक्ष्यों के आधार पर होगी गणना 

- वन्यप्राणी के पग मार्क खोजेंगे।
- जमीन व पेड़ों पर बाघ के पंजे की खरोच देखेंगे।
- बाघ की विस्टा व पेशाब का नमूना लेना।
- गंध मार्किंग के आधार पर।
- शिकार को मारने के आधार पर।
- जमीन में लोट लगाने से।
- आवाज के आधार पर।
- प्रत्यक्ष दर्शन के आधार पर क्षेत्र में बाघ होने के सबूत तलाशे जाएंगे।

मध्य प्रदेश के शिकारियों ने ली 25 बाघों को मारने की सुपारी!


मध्य प्रदेश के शिकारियों ने महाराष्ट्र के 25 बाघों को मारने की 40 लाख रुपये में सुपारी ली है। वन विभाग के अधिकारियों को मुखबिरों से मिली इस जानकारी के बाद चंद्रपुर के ताडोबा-अंधारी बाघ भ्रमण क्षेत्र में अलर्ट घोषित कर दिया गया है।

अपर प्रधान मुख्य वन-संरक्षक (पश्चिम महाराष्ट्र) ए.के. निगम का कहना है कि महाराष्ट्र के जंगलों में इस वक्त करीब 169 बाघ हैं। जिसमें से अधिकतर विदर्भ के टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हैं। उन्होंने बताया कि पिछले महीने 26अप्रैल को तडोबा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में शिकारी के ट्रैप (जाल) में फंसे दो बाघों में से एक ही मौत हो जाने के बाद से ही अलर्ट घोषित कर दिया गया है। बाघों का शिकार करने में शिकारी कामयाब न हो इसके लिए 15 जून तक सभी वन कर्मियों की छुट्टी रद्द कर दिये जाने की जानकारी मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने दी है।

अफवाहों का बाजार भी गर्म 

तडोबा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में एक बाघ की 26 अप्रैल को मौत हो जाने की घटना के बाद से ही तडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में शिकारियों के सक्रिय होने की चर्चा जोरों पर है। इसके साथ ही यहां के गावों में तरह-तरह की अफवाहों भी उड़नी शुरू हो गई है। सोमवार को भी ऐसी ही एक घटना तब सामने आई, तब एक एनजीओ से जुड़े पर्यटकों ने वन विभाग के अधिकारियों को जंगल में दो संदिग्ध शिकारों को देखने की सूचना दी। कई घंटों की जांच पड़ताल के बाद पता चला कि जिसे पर्यटकों ने संदिग्ध शिकारी समझा था, वह चिमूर तहसिल के वागनगांव का पूर्व सरपंच कमलजीत सिंह था।

इसलिए होता है बाघों का अवैध शिकार 

सूत्रों का कहना है कि चीन में बाघ की हड्डियों से परंपरागत दवाएं बनाई जाती है। माना जाता है कि चीन में बाघों के विभिन्न अंगों की जबरदस्त मांग रहती है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बाघ की खाल की ऊंची कीमत मिलने की वजह से भी इसके शिकार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

Wednesday, 16 May 2012

रणथम्भौर अभयारण्य का विस्तार हुआ तो शहरों को होगा नुकसान!


सवाई माधोपुर. राज्य एवं केन्द्र सरकार रणथंभौर अभयारण्य का दायरा बढ़ाने के लिए नित नई योजनाएं बना रही है। इस बार जिस योजना पर काम किया जा रहा है अगर उसे केन्द्र सरकार से मंजूरी मिली तो सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय का वर्तमान 70 प्रतिशत से अधिक आबादी वाला इलाका प्रतिबंधित क्षेत्र में शामिल हो जाएगा। इसी प्रकार खंडार उपखंड मुख्यालय का भी 75 प्रतिशत से अधिक आबादी क्षेत्र इसकी चपेट में आ जाएगा। वन एवं पर्यावरण के साथ वन्यजीवों के संरक्षण के लिए वन विभाग द्वारा वन क्षेत्र का दायरा बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे  हैं। इसके लिए अभयारण्य की सीमा पर स्थित गांवों एवं कस्बों को इस में शामिल कर विस्थापन का काम किया जा रहा है। अब तक वन विभाग की नजर केवल छोटे छोटे गांवों एवं कस्बों पर ही थी, लेकिन इस बार विभाग सीधा सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय के 70 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले क्षेत्र को इस दायरे में शामिल करने की तैयारी कर रहा है। इसके साथ ही वन विभाग की नजर खंडार उपखंड मुख्यालय पर भी टिक गई है। 

दो बार वापस आ चुके हैं प्रस्ताव

रणथंभौर अभयारण्य के अधिकारियों से मशविरा किए बिना पूर्व में राज्य सरकार के निर्देश पर वन विभाग ने केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को  एक प्रस्ताव भेजा था। उक्त प्रस्ताव में रणथंभौर अभयारण्य के विस्तार के लिए एक नया वन ब्लाक 6बी बड़ी लाइन बनाने का आग्रह किया गया था। इस ब्लाक में वर्तमान में जहां 6ए बड़ी लाइन ब्लाक समाप्त होता है वहां से इस ब्लाक को शुरू करना था। वर्तमान में 6ए बड़ी लाइन ब्लाक रणथंभौर रोड पर होटल ओबेराय के पीछे समाप्त होता है। इससे आगे सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय की सीमा शुरू होने के कारण इसके चारो तरफ के पहाड़ किसी भी ब्लाक या आरक्षित क्षेत्र में शामिल नहीं है। अगर 6बी बड़ी लाइन ब्लाक को मंजूरी मिलती तो इस में ओबेराय होटल के पीछे समाप्त होने वाली सीमा से शुरू होकर सवाई माधोपुर की और पूरा रणथंभौर रोड, आईओसी प्लांट के पीछे का पहाड, रिको औद्योगिक क्षेत्र, फायरिंग बट, आलनपुर, विनोबा बस्ती होते हुए नीमली रोड, सीतामाता से बालास तक का पहाड़ इस में शामिल हो जाता। इसके शामिल होने के साथ ही सवाई माधोपुर शहर भी इस में शामिल हो जाता। क्यो की असली सवाई माधोपुर शहर पहाड़ों के बीच बसा हुआ है और उक्त सभी पहाड़ इसमें शामिल किए जाने के प्रस्ताव भेजे गए थे। इसी प्रकार खंडार उपखंड मुख्यालय पर स्थित तारागढ़ किले वाला पहाड़ भी इसी ब्लाक में शामिल किए जाने का प्रस्ताव था। पूरा खंडार कस्बा इसी पहाड़ के सहारे बसा हुआ है। इसी प्रकार बहरावंडा खुर्द, छाण, जैतपुर सहित कुछ छोटे गांवों को भी इस में शामिल करने की तैयारी थी, लेकिन केन्द्र सरकार को यह प्रस्ताव दो बार भेजने के बाद भी केन्द्र ने इसे नामंजूर कर दिया। 

नामंजूर करने का कारण

राज्य सरकार चाहती थी कि 6बी बड़ी लाइन का गठन होने के साथ ही इसके पांच सौ मीटर के दायरे में आने वाले पूरे इलाके पर ईको सेंसेटिव जोन संबंधित सभी नियम एवं प्रतिबंध लागू कर दिए जाए। दूसरी तरफ केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय चाहता था कि इसे मंजूरी देने से पहले राज्य सरकार यह लिख कर दे कि ईको सेंसेटिव जोन का दायरा पांच सौ मीटर के स्थान पर एक किमी होगा, लेकिन राज्य सरकार जानती है कि दायरा पांच सौ मीटर से एक किमी करते ही सवाई माधोपुर एवं खंडार अधिकांश भाग सहित कई गावों को नामोनिशान ही साफ हो जाएगा और वह बहुत 
अधिक हालात बिगाड़ देगा। इसी विरोधाभास के कारण विभाग ने दो बार नामंजूरी मिलने के बाद अब नया पैंतरा फेंका है। 

क्या है नया पैंतरा

विभाग को लग गया है कि केन्द्र सरकार नए ब्लाक को मंजूरी देने में अडंगा लगा रही है। इसके लिए विभाग ने इस बार नई योजना पर काम शुरू किया है। सब कुछ वही है बस थोड़ा सा रूप बदला है। विभाग इस बार 6बी ब्लाक का प्रस्ताव भेजने के स्थान पर 6बी ब्लाक में शामिल किए जाने वाले सभी पहाड़ों एवं आबादी वाले क्षेत्रों को 6ए बड़ी लाइन ब्लाक में ही शामिल करना चाहती है। विभाग चाहता है कि नया ब्लाक बनाने के स्थान पर इसी ब्लाक का विस्तार आगे तक कर दिया जाए और उसमें वे सभी पहाड़ शामिल कर लिए जाएं तो अब तक 6बी ब्लाक में शामिल करने की बात की जा रही थी। इससे केन्द्र सरकार को अडं़गा लगाने का मौका नहीं मिलेगा और विभाग अपनी मंशा में भी कामयाब हो जाएगा।

मंजूरी मिली तो क्या होगा

हर आदमी जानता है कि यहां ईको सेंसेटिव जोन में कई प्रकार के प्रतिबंध है। इसके तहत इस इलाके में किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि, नया निर्माण, विकास के कार्य औद्योगिक विकास रोक दिए जाते हैं। इसे मंजूरी मिलते ही रणथंभौर रोड का एक बहुत बड़ा भाग, रीको औद्योगिक क्षेत्र रणथंभौर रोड, लगभग पूरा आलनपुर, विनोबा बस्ती, संपूर्ण पहाड़ के भीतर बसा सवाई माधोपुर शहर, नीमली रोड के कई गांव, अस्पताल तक का क्षेत्र, खंडार कस्बा, छाण, बहरावंडा खुर्द जैतपुर सहित कुछ दूसरे इलाके भी इसमें शामिल होने से यहां न तो कोई औद्योगिक गतिविधियों के लिए काम कर पाएंगे और न ही सरकार से इन इलाकों में विकास के लिए कोई काम हो सकेगा। इसी प्रकार किसी भी प्रकार का नया निर्माण करने से पहले वन विभाग से अनुमति भी लेनी होगी और वन विभाग उसके लिए इजाजत नहीं देगा क्यो की उक्त सभी स्थान ईको सेंसेटिव जोन में शामिल हो जाएंगे। अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली तो सवाई माधोपुर एवं खंडार का पूरा वजूद खतरे में पड़ जाएगा और मजबूरी में लोगों के पास धीरे धीरे पलायन करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं होगा। 

साभार : सवाई माधोपुर भास्कर

देश में और बनेंगे टाइगर रिजर्व


बाघ संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने मंगलवार को कहा कि बाघ संरक्षण के लिए देश में और टाइगर रिजर्व बनाए जाएंगे।तमिलनाडु के सत्य मंगलम वन्यजीव अभयारण्य में एक टाइगर रिजर्व स्थापित करने को सैद्धांतिक मंजूरी भी दे दी गई है। पर्यावरण मंत्री ने दिल्ली में हो रहे सम्मेलन में कहा कि 'टाइगर रिजर्व के प्रमुख क्षेत्रों में बाघों के लिए खास स्थानों को जोडऩे की जरूरत है। टाइगर हैबिटेट को भी एक-दूसरे से जोडऩा जरूरी है।'

बाघों की निगरानी की खातिर सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर नटराजन ने कहा कि कार्बेट नेशनल पार्क में 24 घंटे निगरानी के लिए विशेष कैमरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। करीब डेढ़ साल पहले रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के बाद 2022 तक जंगली बाघों की संख्या दोगुना करने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास तेज किए गए हैं।

इसी पर आयोजित इस समीक्षा सम्मेलन में रूस, इंडोनेशिया, चीन, नेपाल, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम व मलेशिया समेत कई देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। सम्मेलन के दौरान भारत और रूस के प्रतिनिधि आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए एक संयुक्त प्रस्ताव पर हस्ताक्षर भी करेंगे।

आठ शावकों सहित 11 शेरों ने रातभर घर में मचाई धमाचौकड़ी

ऊना (गुजरात). एशियाई सिंहों (शेर) के 'नाइट आउट' ने उमेदपुरा गांव में लोगों की नींद हराम कर दी। आठ शावकों सहित 11 शेर सोमवार रात गांव में घुस आए। 


देवजीभाई व पोपटभाई के घरों में एक घंटे तक धमाचौकड़ी मचाई। इस घटना में दो लोग घायल भी हुए। एशियाई शेरों के इकलौते आवास गिर अभयारण्य से यह गांव सटा हुआ है। देवजी ने बताया कि शेरों के आने की सूचना के बाद परिजनों को पड़ोसी के घर भेज दिया था। शावक चारपाई पर चढ़े। रसोई में गए। छत तक भी जा पहुंचे। 


एक शावक ने देवजीभाई की गाय का शिकार करने का प्रयास किया। इसे उन्होंने और उनके भाई ने विफल कर दिया। लेकिन घायल हो गए। शेरों का यह परिवार गिर अभयारण्य के फरेड़ा के वीडी वनक्षेत्र में रहता है। वन विभाग भी उनके गांव में घुसने की खबर पाकर मौके पर पहुंच गया था। 


उमेदपुरा से लौटते समय ये शेर जादवभाई गढिय़ा के बगीचे में जा पहुंचे। वहां जादव अकेले थे। शेरों से बचने के लिए उन्हें 20 मिनट तक पेड़ पर रहना पड़ा। 

Tuesday, 15 May 2012

सरिस्का में बाघ-बघेरों की अब हाईटेक ट्रेकिंग



सरिस्का अभयारण्य में बाघ एसटी-1 की मौत के बाद अब ट्रेकिंग प्रणाली को हाईटेक कर दिया गया है। बाघ-बघेरों की निगरानी में लगे कर्मचारियों को ट्रेकिंग के लिए आधुनिक उपकरण मुहैया कराए गए हैं। अब रेंज फाइंडर व जीपीएस जैसे  आधुनिक उपकरणों की मदद से जंगली जानवरों की निगरानी की जा ही है।

सरिस्का में बाघ एसटी-1 की मौत के बाद केंद्र सरकार  अब कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती। देश में बाघ संरक्षण पर काम रहे केंद्र सरकार के उपक्रम राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने सरिस्का में ट्रेकिंग प्रणाली में सुधार के लिए कदम उठाए हैं। आधुनिक तकनीक से जानवरों की ट्रेकिंग करने के लिए रेंज फाइंडर व जीपीएस उपकरण मुहैया कराए हैं। ये उपकरण सरिस्का की सभी 78 बीट में दिए गए हैं। बाघों की निगरानी में लगे कर्मचारी अब पगमार्क, रेडियो कॉलर पद्धति के साथ रेंज फाइंडर तथा ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) से जानवरों की निगरानी कर रहे हैं।

क्यों पड़ी जरूरत

सरिस्का अभयारण्य में रणथंभौर से शिफ्ट किए गए बाघ एसटी-1 नवंबर 2010 में जहर देकर हत्या कर दी गई थी। बाघ की मौत के चार दिन बाद शव टहला रेंज के बेरीवाला नाला के पास मिला था। इस घटना के बाद सरिस्का में बाघों की ट्रेकिंग में लगे कर्मचारियों के ऊपर सवाल उठाए गए थे। अधिकारियों का मानना था कि ट्रैकिंग में लापरवाही के चलते ही बाघ का चार दिन बाद शव मिला। सरिस्का में बाघों की ट्रेकिंग सही तरह से नहीं की गई। सरिस्का में बाघों की ट्रेकिंग प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से ये उपकरण मुहैया कराए गए हैं।

अब तक क्या

सरिस्का अभयारण्य में बाघ-बघेरों की ट्रेनिंग अब तक पगमार्क व रेडियो कॉलर पद्धति से की जाती रही है। इन दोनों ही ट्रेकिंग पद्धतियों में कई बार जानवरों की ट्रेकिंग में लगे कर्मचारी कई बार लापरवाही बरत जाते थे। ट्रेकिंग के लिए गए कर्मचारियों पर किसी तरह की निगरानी नहीं थी। ट्रेकिंग करने वाले जो भी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को देते वह माननी पड़ती थी।


आगे क्या

रेंज फाइंडर उपकरण से जहां अब जानवर की सटीक दूरी का पता सकेगा। रेंज फाइंडर उपकरण को जानवर पर जैसे ही फोकस किया जाएगा, यह उसकी दूरी मीटर में बता देगा। इस उपकरण में लगे लैंस की मदद से वनकर्मी उसे अच्छी तरह देख सकते हैं। इसी तरह जीपीएस उपकरण वनकर्मियों द्वारा ट्रेकिंग के दौरान कवर किए गए जंगल का रिकॉर्ड रखेगा। चौकी से निकलते ही वनकर्मी जीपीएस को ऑन कर लेंगे। जंगल में वे जहां-जहां भी ट्रेकिंग के दौरान घूमेंगे जीपीएस में लगे मेमोरी कार्ड में रिकॉर्ड होता रहेगा। इससे यह पता लग सकेगा कि वनकर्मी जंगल में कितने किलोमीटर, किस दिशा में और कहां-कहां घूमा है। जीपीएस में लगा कार्ड यह डाटा एकत्रित हो जाएगा। इस कार्ड को अधिकारी कंप्यूटर पर लगाकर ट्रेकिंग का विश्लेषण कर सकते हैं। ये उपकरण मिलने के बाद वनकर्मी अधिकारियों को भ्रमित नहीं कर पाएंगे।

एक्सपर्ट व्यू

सरिस्का के क्षेत्रीय निदेशक आरएस शेखावत के अनुसार, आधुनिक उपकरण मिलने से जंगल में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हुई है। अब बाघों की ट्रेकिंग में लगे कर्मचारी अब किसी तरह की कोताही नहीं कर सकते। इन उपकरणों की मदद से ट्रेकिंग करने वाले कर्मचारी की लोकेशन, जंगल में कहां-कहां और कब-कब गया, इसका पता लगेगा। रेंज फाइंडर उपकरण से जानवर की सही लोकेशन का निर्धारण हो सकेगा। रेडियो कॉलर व पगमार्क पद्धति से की गई ट्रेकिंग को वनकर्मी कागज में नोट करके लाते थे। अब सब कुछ सामने होगा।    

साभार : अलवर भास्कर, 15/05/2012 

मप्र में अब बिना दाम कीजिये शेर का दीदार


जबलपुर. कितना बुरा लगेगा यदि आपको आपके ही घर मंे दाखिल होने की फीस अदा करनी पड़े! पिछले न जाने कितने वर्षो से वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों को नेशनल पार्को के द्वार पर ऐसा ही बर्ताव झेलना पड़ रहा था, लेकिन अब अच्छी खबर यह है कि कर्मचारी ही नहीं, बल्कि उनके परिजन भी बगैर किसी फीस के राष्ट्रीय उद्यानों में प्रवेश कर सकेंगे। हां, इतना जरूर है कि उद्यान में अन्य  सुविधाओं के लिए उन्हें कुछ रकम अदा करनी पड़ेगी। अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा यह सौगात विभाग के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर दी गई है।

सेवानिवृत्तों को भी तवज्जो

कान्हा, बांधवगढ़, पेंच में सैर-सपाटे की मंशा रखने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी निराश होने की जरूरत नहीं। भले ही वे अब महकमे में सेवाएं न दे रहे हों, लेकिन विभाग ने उन्हें वैसी ही तवज्जो दी है, जैसी कि सेवारत कर्मचारियों को। रिटायर्ड कर्मचारियों तथा उनके परिजनों को भी इस व्यवस्था मंे शामिल किया गया है।

रेस्ट हाउस में स्वागत है 

वन विभाग के कर्मचारियों अधिकारियों के लिए पार्क में स्थित रेस्ट हाउस के दरवाजे भी खोल दिये गये हैं। हालांकि इसमें पूरी तरह से छूट नहीं दी गई है, लेकिन जो शुल्क अदा करनी होगी वह सामान्य पर्यटक की अपेक्षा बेहद कम होगी। कान्हा का उदाहरण लें तो 890 रुपए टैरिफ का एसी रूम सिर्फ  200 रुपए में उपलब्ध रहेगा। नॉन एसी के मामले में विभागीय कर्मचारियों को चार से लेकर 700 रुपए की जगह महज 100 रुपए ही अदा करने होंगे।

Friday, 11 May 2012

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में कैमरे बताएंगे बाघों की लोकेशन

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व जाने वाले पर्यटकों के लिए अच्छी खबर यह है कि उन्हें बाघ का पता अब आसानी से चल सकेगा। पार्क प्रबंधन अपने क्षेत्र के जंगल में स्थायी कैमरे लगाने वाला है। इससे न सिर्फ बाघों पर नजर रहेगी बल्कि हर दो-तीन माह के दौरान कैमरे में कैप्चर हुए बाघों की अनुमानित संया भी मिल सकेगी।

कैमरे लगने से काफी हद तक शिकार व वनों की कटाई पर भी लगाम लगेगी। पार्क प्रबंधन को रिजर्व में 100 कैमरे लगाना है। कैमरे लगाने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मिलने वाले बजट का इंतजार किया जा रहा है। अभी भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून द्वारा रिजर्व में कैमरे लगाकर बाघों की गणना की जाती है। 

हालांकि यह कैमरे दो सालों में दो या तीन माह के लिए की जाती है।इसलिए पड़ी थी जरूरत : सन् 1972 से 2004 तक पग मार्क के आधार पर बाघों की गणना की जाती थी। इस आकलन से क्षेत्र में एक से अधिक बाघ होने की पुता जानकारी नहीं मिल पाती थी। 

इसके लिए वन्य जीव संस्थान देहरादून, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण संस्थान व राज्य सरकारों के विशेषज्ञों ने विशेष योजना बनाई। वर्ष 2009-10 में सतपुड़ा में पहली बार हाईटेक डिजिटल व एनालाग कैमरा लगाकर बाघों की ट्रेपिंग की गई।

40 कैमरे में 12 बाघ हुए कैप्चर

भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के चूरना में कैमरा ट्रेपिंग की जा रही है। फरवरी के अंत से शुरू हुई कैमरा ट्रैपिंग में अब तब 40 कैमरों में 12 बाघ कैप्चर हो चुके हैं। बाघ की धारियों के आधार पर इन बाघों को अलग करने के बाद यह पुष्टि हुई है।

43 बाघ हैं

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में वर्ष 2006 में 39 बाघ थे। जो 2011 में बढ़कर 43 हो गए हैं। इसमें 72 पैंथर, 3600 संभार, 250 जंगली कुत्ते, 3000 बायसन और इसके अलावा वेस्ट घाट के वनों में पाई जाने वाली उड़ने वाली गिलहरी, बड़ी गिलहरी यहां के जंगलों में पाई जाती है।

Monday, 30 April 2012

जयपुर. करीब 6 माह बाद जयपुर जू में फिर सफेद बाघिन की दहाड़ सुनाई दी। सेंट्रल जू अथॉरिटी की मंजूरी के बाद सात साल की सीता को शनिवार देर रात दिल्ली से यहां लाया गया। चिकित्सकीय जांच के बाद उसे पिंजरे में शिफ्ट कर दिया गया। जू प्रबंधन के अनुसार इसे तीन सप्ताह तक विशेष सुरक्षा व देख-रेख में रखा जाएगा। इसके बाद ही विजिटर्स बाघिन को देख सकेंगे। पहले भी यहां रेशमा नाम की सफेद बाघिन थी, लेकिन बाघ के हमले में घायल होने के बाद उसने दम तोड़ दिया था। 


गाय ने बाघ को मारा


ये खबर लगती तो अविश्वसनीय सी है लेकिन ये सच है कि एक बाघ को एक गाय ने मार डाला.
बाघ शुक्रवार को गाय के बाड़े में घुस गया था जहाँ गाय ने उसे सिंग से मार-मारकर इतना घायल कर दिया था कि शनिवार को उसकी मौत हो गई.
हालांकि वन अधिकारियों का कहना है कि बाघ पहले से घायल था और गाय से मिली चोट की वजह से वह बच नहीं सका.

असहाय बाघ

ये घटना तमिलनाडु में कोयम्बटूर के वालपराई की है.
चाय उगाने वाले इस गाँव के एक व्यक्ति ज्ञानशेखरन ने शुक्रवार की सुबह क़रीब साढ़े छह बजे देखा कि उसकी गाय के बाड़े में एक बाघ घुसा बैठा है.
पहले तो वह डर गया लेकिन उसने पाया कि बार-बार दहाड़ रहे और कराह रहे बाघ में खुद उठकर चलने की शक्ति नहीं बची है.
धीरे-धीरे वहाँ लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई लेकिन कोई बाघ के क़रीब जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. आखिर वन विभाग के अधिकारियों को बुलाया गया.
अधिकारियों ने पड़ोस के इलाके से वन्य पशु चिकित्सक को बुलवाया. चिकित्सक के आते-आते शाम हो गई. लेकिन इसके बाद उसे बेहोशी का इंजेक्शन देकर अस्पताल ले जाया गया और बचाने की कोशिश की गई.
लेकिन वह बच नहीं सका.
लेकिन अब अधिकारी मान रहे हैं कि पहले से ही घायल शेर शिकार कर सकने में असमर्थ था और आसान शिकार की तलाश में उसने गाय के बाड़े में प्रवेश किया होगा.
जहाँ गाय ने अपने बछड़े को बचाने के लिए उस पर सींग से मारना शुरु किया होगा और उसे कगार तक पहुँचा दिया.

पहले से ही घायल

मनमपल्ली वन क्षेत्र में आमतौर पर तेंदुए जानवरों पर हमला करते हैं और कभी-कभी लोगों पर भी हमले करते हैं.
बाघ आमतौर पर आबादी के इलाके में नहीं आते. अधिकारी मान रहे हैं कि ये बाघ अशक्त होने के कारण इधर चला आया होगा.
कोई दस वर्ष की उम्र के इस बाघ को इलाज के बाद भी बचाया नहीं जा सका.
बाघ की मौत के बाद मदुमलाई बाघ अभयारण्य के पशु चिकित्सक ने वर्ल्ड वाइड फंड, गैर सरकारी संगठन के प्रतिनिधियों और कुछ मीडियाकर्मियों की उपस्थिति में उसका पोस्ट मॉर्टम किया.
इस दौरान वन विभाग के अधिकारी भी वहाँ मौजूद थे.
पोस्टमार्टम से पता चला कि उसके पंजे घायल थे और उसके दिल और अंतड़ियों में साही के कांटे चुभे हुए थे.
अधिकारियों का कहना है कि इससे जाहिर होता है कि जंगल में हुए किसी संघर्ष में बाघ पहले से ही घायल था.
उनका कहना है कि घायल होने की वजह से ही वह उसके शिकार करने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित हो गई थी.
बहरहाल, उसकी मौत के लिए गाय अंतिम वजह बनी.

Saturday, 28 April 2012

बाघ घटे लेकिन एक सेंक्चुरी और...


आंध्र प्रदेश में एक ओर तो बाघों की संख्या में हाल के वर्षों में काफी कमी हुई है लेकिन दूसरी ओर सरकार ने एक और इलाके को टाइगर सेंक्चुरी (बाघ अभयारण्य) घोषित किया है.
आदिलाबाद के कावल वाइल्ड लाइफ़ सेंक्चुरी को टाइगर सेंक्चुरी का रुप देने का फैसला ऐसे समय में किया गया है जबकि इस इलाके में बाघों की संख्या घटकर दो से पाँच के बीच रह गई है.
राज्य में नागार्जुन सागर - श्रीसैलम टाइगर रिज़र्व के बाद ये दूसरी टाइगर सेंक्चुरी है.
सरकार की इस घोषणा का स्थानीय निवासी विशेषकर आदिवासी विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ये इस इलाक़े के लोगों को विस्थापित करने की साजिश का हिस्सा है.
जबकि अधिकारियों का कहना है कि ये लोगों के हित में है और किसी को हटाया नहीं जाएगा.

उम्मीद

आंध्र प्रदेश के प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट हितेश मल्होत्रा ने बीबीसी से कहा कि कावल बाघों के लिए सबसे अच्छा इलाका है.
वे कहते हैं, "यहाँ पहले 12 बाघ हुआ करते थे फिर उनकी संख्या घटकर आठ हो गई और फिर पाँच. सिर्फ कागज नगर के आसपास की पाँच बाघ थे. इस इलाके में जनसंख्या और शोर-शराबा बढ़ जाने से बाघ महाराष्ट्र के जंगल में चले गए."
वे कहते हैं, "कावल का इलाका बाघों के लिए बहुत अनुकूल है. अगर ठीक तरह से देखभाल हुई तो हमें विश्वास है कि बाघ न केवल वापस आ जाएँगे बल्कि उनकी संख्या में भी बढ़ोत्तरी होगी."
कावल टाइगर सेंक्चुरी में 839 वर्ग किलोमीटर को कोर इलाक़ा और 1123 वर्ग किलोमीटर को बफर इलाका घोषित किया गया है.

चिंता

लेकिन सरकार के इस फैसले से इस इलाके में रहने वाले लोगों, विशेषकर आदिवासी में चिंता पैदा कर दी है.
उन्हें आशंका है कि इस इलाके को बाघों के लिए संरक्षित करने के बाद उनकी बस्तियों को यहाँ से हटा दिया जाएगा.
हितेश मल्होत्रा इसका खंडन करते हैं और कहते हैं कि ये केवल अफवाहें हैं.
उन्होंने कहा कि इस इलाके में 45 बस्तियाँ हैं, जिनमें से केवल चार सेंक्चुरी के दायरे में आती हैं.
वे आश्वासन देते हुए कहते हैं, "इन चार बस्तियों को भी तभी हटाया जाएगा जब गाँव की पंचायत इन्हें हटाने के लिए सहमति जताएगी. इसके लिए हर परिवार को दस लाख रुपए दिए जाएँगे. लेकिन अगर वे हटना नहीं चाहते तो वहाँ रह सकते हैं. आखिर बाघ और मानव पहले भी साथ रहते आए हैं."

संख्या पर विवाद

पूरे आंध्र प्रदेश में बाघों की संख्या को लेकर काफी विवाद चला आ रहा है.
जहाँ वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ने गत वर्ष गिनती के बाद कहा था कि राज्य में 72 बाघ बचे हैं, जिनमें बच्चे शामिल नहीं हैं.
लेकिन जंगल विभाग का कहना है कि राज्य में सौ के करीब बाघ हैं जिनमें से 15 बच्चे हैं.
हितेश मल्होत्रा का कहना है कि वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट और जंगल विभाग की गिनती में हमेशा ही अंतर रहा है.
वे कहते हैं कि बाघों की संख्या को लेकर वे उत्साहित हैं क्योंकि पहले तो बाघ का एकाध ही बच्चा दिखाई देता था लेकिन हाल में कम से कम दो जगह बाघिनें बच्चों के साथ दिखी हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार नागार्जुन सागर श्रीसैलम सेंक्चुरी में ही लगभग 60 बाघ मौजूद हैं जबकि पूरे राज्य में इनकी संख्या सौ से कुछ अधिक है.
आंकड़े देखें तो राज्य में कई दशक पहले बाघों की संख्या 145 थी, जो अब तक की अधिकतम संख्या है.
वैसे जंगल विभाग बाघों की संख्या का पता लगाने के लिए पहली मई से गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर गिनती का काम शुरु कर रहा है.
राज्य के चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन ऋषि कुमार का कहना है कि पहले गिनती पैरों के निशान (पग मार्क) से होती थी लेकिन इस बार कैमरों का इस्तेमाल भी शुरु होगा.
उन्होंने बताया कि इसमें सौ से अधिक कैमरों का इस्तेमाल होगा.
साभार : बी बी सी