आंध्र प्रदेश में एक ओर तो बाघों की संख्या में हाल के वर्षों में काफी कमी हुई है लेकिन दूसरी ओर सरकार ने एक और इलाके को टाइगर सेंक्चुरी (बाघ अभयारण्य) घोषित किया है.
आदिलाबाद के कावल वाइल्ड लाइफ़ सेंक्चुरी को टाइगर सेंक्चुरी का रुप देने का फैसला ऐसे समय में किया गया है जबकि इस इलाके में बाघों की संख्या घटकर दो से पाँच के बीच रह गई है.
राज्य में नागार्जुन सागर - श्रीसैलम टाइगर रिज़र्व के बाद ये दूसरी टाइगर सेंक्चुरी है.
सरकार की इस घोषणा का स्थानीय निवासी विशेषकर आदिवासी विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ये इस इलाक़े के लोगों को विस्थापित करने की साजिश का हिस्सा है.
जबकि अधिकारियों का कहना है कि ये लोगों के हित में है और किसी को हटाया नहीं जाएगा.
उम्मीद
आंध्र प्रदेश के प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट हितेश मल्होत्रा ने बीबीसी से कहा कि कावल बाघों के लिए सबसे अच्छा इलाका है.
वे कहते हैं, "यहाँ पहले 12 बाघ हुआ करते थे फिर उनकी संख्या घटकर आठ हो गई और फिर पाँच. सिर्फ कागज नगर के आसपास की पाँच बाघ थे. इस इलाके में जनसंख्या और शोर-शराबा बढ़ जाने से बाघ महाराष्ट्र के जंगल में चले गए."
वे कहते हैं, "कावल का इलाका बाघों के लिए बहुत अनुकूल है. अगर ठीक तरह से देखभाल हुई तो हमें विश्वास है कि बाघ न केवल वापस आ जाएँगे बल्कि उनकी संख्या में भी बढ़ोत्तरी होगी."
कावल टाइगर सेंक्चुरी में 839 वर्ग किलोमीटर को कोर इलाक़ा और 1123 वर्ग किलोमीटर को बफर इलाका घोषित किया गया है.
चिंता
लेकिन सरकार के इस फैसले से इस इलाके में रहने वाले लोगों, विशेषकर आदिवासी में चिंता पैदा कर दी है.
उन्हें आशंका है कि इस इलाके को बाघों के लिए संरक्षित करने के बाद उनकी बस्तियों को यहाँ से हटा दिया जाएगा.
हितेश मल्होत्रा इसका खंडन करते हैं और कहते हैं कि ये केवल अफवाहें हैं.
उन्होंने कहा कि इस इलाके में 45 बस्तियाँ हैं, जिनमें से केवल चार सेंक्चुरी के दायरे में आती हैं.
वे आश्वासन देते हुए कहते हैं, "इन चार बस्तियों को भी तभी हटाया जाएगा जब गाँव की पंचायत इन्हें हटाने के लिए सहमति जताएगी. इसके लिए हर परिवार को दस लाख रुपए दिए जाएँगे. लेकिन अगर वे हटना नहीं चाहते तो वहाँ रह सकते हैं. आखिर बाघ और मानव पहले भी साथ रहते आए हैं."
संख्या पर विवाद
पूरे आंध्र प्रदेश में बाघों की संख्या को लेकर काफी विवाद चला आ रहा है.
जहाँ वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ने गत वर्ष गिनती के बाद कहा था कि राज्य में 72 बाघ बचे हैं, जिनमें बच्चे शामिल नहीं हैं.
लेकिन जंगल विभाग का कहना है कि राज्य में सौ के करीब बाघ हैं जिनमें से 15 बच्चे हैं.
हितेश मल्होत्रा का कहना है कि वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट और जंगल विभाग की गिनती में हमेशा ही अंतर रहा है.
वे कहते हैं कि बाघों की संख्या को लेकर वे उत्साहित हैं क्योंकि पहले तो बाघ का एकाध ही बच्चा दिखाई देता था लेकिन हाल में कम से कम दो जगह बाघिनें बच्चों के साथ दिखी हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार नागार्जुन सागर श्रीसैलम सेंक्चुरी में ही लगभग 60 बाघ मौजूद हैं जबकि पूरे राज्य में इनकी संख्या सौ से कुछ अधिक है.
आंकड़े देखें तो राज्य में कई दशक पहले बाघों की संख्या 145 थी, जो अब तक की अधिकतम संख्या है.
वैसे जंगल विभाग बाघों की संख्या का पता लगाने के लिए पहली मई से गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर गिनती का काम शुरु कर रहा है.
राज्य के चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन ऋषि कुमार का कहना है कि पहले गिनती पैरों के निशान (पग मार्क) से होती थी लेकिन इस बार कैमरों का इस्तेमाल भी शुरु होगा.
उन्होंने बताया कि इसमें सौ से अधिक कैमरों का इस्तेमाल होगा.

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