सतपुड़ा टाइगर रिजर्व जाने वाले पर्यटकों के लिए अच्छी खबर यह है कि उन्हें बाघ का पता अब आसानी से चल सकेगा। पार्क प्रबंधन अपने क्षेत्र के जंगल में स्थायी कैमरे लगाने वाला है। इससे न सिर्फ बाघों पर नजर रहेगी बल्कि हर दो-तीन माह के दौरान कैमरे में कैप्चर हुए बाघों की अनुमानित संया भी मिल सकेगी।
कैमरे लगने से काफी हद तक शिकार व वनों की कटाई पर भी लगाम लगेगी। पार्क प्रबंधन को रिजर्व में 100 कैमरे लगाना है। कैमरे लगाने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मिलने वाले बजट का इंतजार किया जा रहा है। अभी भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून द्वारा रिजर्व में कैमरे लगाकर बाघों की गणना की जाती है।
हालांकि यह कैमरे दो सालों में दो या तीन माह के लिए की जाती है।इसलिए पड़ी थी जरूरत : सन् 1972 से 2004 तक पग मार्क के आधार पर बाघों की गणना की जाती थी। इस आकलन से क्षेत्र में एक से अधिक बाघ होने की पुता जानकारी नहीं मिल पाती थी।
इसके लिए वन्य जीव संस्थान देहरादून, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण संस्थान व राज्य सरकारों के विशेषज्ञों ने विशेष योजना बनाई। वर्ष 2009-10 में सतपुड़ा में पहली बार हाईटेक डिजिटल व एनालाग कैमरा लगाकर बाघों की ट्रेपिंग की गई।
40 कैमरे में 12 बाघ हुए कैप्चर
भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के चूरना में कैमरा ट्रेपिंग की जा रही है। फरवरी के अंत से शुरू हुई कैमरा ट्रैपिंग में अब तब 40 कैमरों में 12 बाघ कैप्चर हो चुके हैं। बाघ की धारियों के आधार पर इन बाघों को अलग करने के बाद यह पुष्टि हुई है।
43 बाघ हैं
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में वर्ष 2006 में 39 बाघ थे। जो 2011 में बढ़कर 43 हो गए हैं। इसमें 72 पैंथर, 3600 संभार, 250 जंगली कुत्ते, 3000 बायसन और इसके अलावा वेस्ट घाट के वनों में पाई जाने वाली उड़ने वाली गिलहरी, बड़ी गिलहरी यहां के जंगलों में पाई जाती है।
कैमरे लगने से काफी हद तक शिकार व वनों की कटाई पर भी लगाम लगेगी। पार्क प्रबंधन को रिजर्व में 100 कैमरे लगाना है। कैमरे लगाने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मिलने वाले बजट का इंतजार किया जा रहा है। अभी भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून द्वारा रिजर्व में कैमरे लगाकर बाघों की गणना की जाती है।
हालांकि यह कैमरे दो सालों में दो या तीन माह के लिए की जाती है।इसलिए पड़ी थी जरूरत : सन् 1972 से 2004 तक पग मार्क के आधार पर बाघों की गणना की जाती थी। इस आकलन से क्षेत्र में एक से अधिक बाघ होने की पुता जानकारी नहीं मिल पाती थी।
इसके लिए वन्य जीव संस्थान देहरादून, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण संस्थान व राज्य सरकारों के विशेषज्ञों ने विशेष योजना बनाई। वर्ष 2009-10 में सतपुड़ा में पहली बार हाईटेक डिजिटल व एनालाग कैमरा लगाकर बाघों की ट्रेपिंग की गई।
40 कैमरे में 12 बाघ हुए कैप्चर
भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के चूरना में कैमरा ट्रेपिंग की जा रही है। फरवरी के अंत से शुरू हुई कैमरा ट्रैपिंग में अब तब 40 कैमरों में 12 बाघ कैप्चर हो चुके हैं। बाघ की धारियों के आधार पर इन बाघों को अलग करने के बाद यह पुष्टि हुई है।
43 बाघ हैं
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में वर्ष 2006 में 39 बाघ थे। जो 2011 में बढ़कर 43 हो गए हैं। इसमें 72 पैंथर, 3600 संभार, 250 जंगली कुत्ते, 3000 बायसन और इसके अलावा वेस्ट घाट के वनों में पाई जाने वाली उड़ने वाली गिलहरी, बड़ी गिलहरी यहां के जंगलों में पाई जाती है।
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