रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में सालभर के दौरान जो घटा है, वह हैरतअंगेज है। बाघिन टी-5 की मौत के बाद उसके दो शावकों को उनका पिता पाल रहा है। ये प्रजाति की परंपरा के विरुद्ध है। यदि बाघ अपने इलाके में दूसरे बाघ को देख ले तो हमला कर देता है। बाघिन न हो तो अपने बच्चे को मार ही देता है। नेटजियो और डिस्कवरी के मशहूर वाइल्डलाइफ डॉक्यूमेंट्री मेकर अजय सूरी बयां कर रहे हैं ये दिलचस्प कहानी...
दुर्लभ दुलार...
14 मार्च 2011 : रणथंभौर की कचीदा चौकी के पास लगे वन विभाग के कैमरे से चौंकाने वाली तस्वीर मिली। दोनों शावकों के साथ एक बाघ भी था। आशंका जताई जाने लगी कि कहीं उसने शावकों को मार ही न दिया हो। लेकिन दोनों शावक अपने पिता के साथ थे। यहां के मानद वाइल्डलाइफ वार्डन बालेंदुसिंह बताते हैं कि विशेषज्ञ तो मानने को तैयार ही नहीं थे कि कोई बाघ बच्चे को पाल रहा है। रणथंभौर में पिता के साथ घूमते शावकों का दृश्य अब आम है। शुरुआत में यह बाघ अपने शावकों की 24 घंटे रखवाली करते देखा जाता था। यदि कोई शावक उद्दंड होता तो इस गंभीर पिता के पंजे की हलकी-सी थपकार उसे शांत करा देती। डेढ़ साल के युवा शावकों को अब किसी का खौफ नहीं। वे पिता के साथ पंजे घिसते हुए अपने इलाके की हद तय करते देखे जा सकते हैं।
दुर्लभ दृश्य...
जंगल में हर दिन एक नया दिन होता है। एक शावक भटककर नदी के किनारे पहुंचा। वहां तीन सौ मीटर की दूरी पर खड़ी एक अन्य बाघिन टी-17 पहले से मौजूद थी। वह हमले के लिए दबे पांव शावक की ओर बढऩे लगी। लेकिन तभी झाडिय़ों के बीच से शावक का पिता सामने आ गया। ये जताते हुए कि कोई उसके बच्चे की तरफ बुरी नजर से न देखे। बाघिन के पैंतरा बदलने में भी कुछ सेकंड ही लगे। जहां वह पहले बेहद आक्रामक थी, फिर वह उलझन में नजर आई और जल्द ही समर्पण के भाव में। आमने-सामने आकर दोनों करीब दस सेकंड तक एक-दूसरे को घूरते रहे और फिर अपने-अपने इलाके की ओर लौट गए। राजस्थान के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन एसी चौबे कहते हैं कि जंगली जीवों के बारे में बहुत कुछ ऐसा है, जो इंसान के लिए जानना बाकी है।
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