सरिस्का अभयारण्य में बाघ एसटी-1 की मौत के बाद अब ट्रेकिंग प्रणाली को हाईटेक कर दिया गया है। बाघ-बघेरों की निगरानी में लगे कर्मचारियों को ट्रेकिंग के लिए आधुनिक उपकरण मुहैया कराए गए हैं। अब रेंज फाइंडर व जीपीएस जैसे आधुनिक उपकरणों की मदद से जंगली जानवरों की निगरानी की जा ही है।
सरिस्का में बाघ एसटी-1 की मौत के बाद केंद्र सरकार अब कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती। देश में बाघ संरक्षण पर काम रहे केंद्र सरकार के उपक्रम राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने सरिस्का में ट्रेकिंग प्रणाली में सुधार के लिए कदम उठाए हैं। आधुनिक तकनीक से जानवरों की ट्रेकिंग करने के लिए रेंज फाइंडर व जीपीएस उपकरण मुहैया कराए हैं। ये उपकरण सरिस्का की सभी 78 बीट में दिए गए हैं। बाघों की निगरानी में लगे कर्मचारी अब पगमार्क, रेडियो कॉलर पद्धति के साथ रेंज फाइंडर तथा ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) से जानवरों की निगरानी कर रहे हैं।
क्यों पड़ी जरूरत
सरिस्का अभयारण्य में रणथंभौर से शिफ्ट किए गए बाघ एसटी-1 नवंबर 2010 में जहर देकर हत्या कर दी गई थी। बाघ की मौत के चार दिन बाद शव टहला रेंज के बेरीवाला नाला के पास मिला था। इस घटना के बाद सरिस्का में बाघों की ट्रेकिंग में लगे कर्मचारियों के ऊपर सवाल उठाए गए थे। अधिकारियों का मानना था कि ट्रैकिंग में लापरवाही के चलते ही बाघ का चार दिन बाद शव मिला। सरिस्का में बाघों की ट्रेकिंग सही तरह से नहीं की गई। सरिस्का में बाघों की ट्रेकिंग प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से ये उपकरण मुहैया कराए गए हैं।
अब तक क्या
सरिस्का अभयारण्य में बाघ-बघेरों की ट्रेनिंग अब तक पगमार्क व रेडियो कॉलर पद्धति से की जाती रही है। इन दोनों ही ट्रेकिंग पद्धतियों में कई बार जानवरों की ट्रेकिंग में लगे कर्मचारी कई बार लापरवाही बरत जाते थे। ट्रेकिंग के लिए गए कर्मचारियों पर किसी तरह की निगरानी नहीं थी। ट्रेकिंग करने वाले जो भी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को देते वह माननी पड़ती थी।
आगे क्या
रेंज फाइंडर उपकरण से जहां अब जानवर की सटीक दूरी का पता सकेगा। रेंज फाइंडर उपकरण को जानवर पर जैसे ही फोकस किया जाएगा, यह उसकी दूरी मीटर में बता देगा। इस उपकरण में लगे लैंस की मदद से वनकर्मी उसे अच्छी तरह देख सकते हैं। इसी तरह जीपीएस उपकरण वनकर्मियों द्वारा ट्रेकिंग के दौरान कवर किए गए जंगल का रिकॉर्ड रखेगा। चौकी से निकलते ही वनकर्मी जीपीएस को ऑन कर लेंगे। जंगल में वे जहां-जहां भी ट्रेकिंग के दौरान घूमेंगे जीपीएस में लगे मेमोरी कार्ड में रिकॉर्ड होता रहेगा। इससे यह पता लग सकेगा कि वनकर्मी जंगल में कितने किलोमीटर, किस दिशा में और कहां-कहां घूमा है। जीपीएस में लगा कार्ड यह डाटा एकत्रित हो जाएगा। इस कार्ड को अधिकारी कंप्यूटर पर लगाकर ट्रेकिंग का विश्लेषण कर सकते हैं। ये उपकरण मिलने के बाद वनकर्मी अधिकारियों को भ्रमित नहीं कर पाएंगे।
एक्सपर्ट व्यू
सरिस्का के क्षेत्रीय निदेशक आरएस शेखावत के अनुसार, आधुनिक उपकरण मिलने से जंगल में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हुई है। अब बाघों की ट्रेकिंग में लगे कर्मचारी अब किसी तरह की कोताही नहीं कर सकते। इन उपकरणों की मदद से ट्रेकिंग करने वाले कर्मचारी की लोकेशन, जंगल में कहां-कहां और कब-कब गया, इसका पता लगेगा। रेंज फाइंडर उपकरण से जानवर की सही लोकेशन का निर्धारण हो सकेगा। रेडियो कॉलर व पगमार्क पद्धति से की गई ट्रेकिंग को वनकर्मी कागज में नोट करके लाते थे। अब सब कुछ सामने होगा।
साभार : अलवर भास्कर, 15/05/2012

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