Friday, 25 May 2012

कहां गुम हुआ जंगल का राजा?


जंगल का राजा
टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्य प्रदेश से अब यह सम्मान छिन चुका है. बाघों की गणना के गत मार्च में जारी आंकड़ों के मुताबिक देशभर में जहां बाघों की संख्या बढ़ी है वहीं प्रदेश में, खासतौर से, आदर्श माने जाने वाले कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में इनकी संख्या में उल्लेखनीय गिरावट आई है. जहां प्रदेश बाघों की संख्या घटने के दावे को मानने को तैयार नहीं है, वहीं हाल ही में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के दौरे पर आए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश ने स्पष्ट कहा है कि राज्य सरकार को बाघों के गायब होने की सीबीआइ जांच करवानी चाहिए.

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने 28 मार्च को देशभर में बाघों की गणना के वर्ष 2010 के आंकड़े जारी किए थे, जिनके मुताबिक देश में बाघों की संख्या अनुमानतः 1,706 है जबकि 2006 में यह आंकड़ा 1,411 था. हालांकि प्रदेश के छह टाइगर रिजर्वों में चार साल पहले बाघों की संख्या 300 थी जो घटकर 257 रह गई है. यानी इन चार साल में प्रदेश में 43 बाघ कम हो गए.

प्रदेश का वन विभाग इन आंकड़ों पर सवालिया निशान लगा रहा है. भारतीय वन्य प्राणी संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के प्रदेश में बाघों की संख्या घटने के दावे के बाद वन विभाग अपने स्तर पर 25 अप्रैल से बाघों की फिर से गिनती शुरू कर चुका है.
राष्ट्रव्यापी गणना की मानें तो बाघ सर्वाधिक तेजी से और सबसे ज्‍यादा संख्या में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में घटे हैं. चार साल पहले यहां 89 बाघ थे, जो अब 64 रह गए हैं. पन्ना टाइगर रिजर्व में कभी 24 बाघ हुआ करते थे लेकिन आज उनमें से एक भी यहां नहीं है और यही वजह है कि बाघों की उपस्थिति को बनाए रखने के लिए कुछ हफ्तों पहले ही एक बाघिन और उसके दो शावकों को यहां लाया गया है.

राज्‍य के अन्य चार टाइगर रिजर्वों बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा और संजय राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या में खास परिवर्तन नहीं हुआ है. इस सब के बीच एक दिलचस्प तथ्य सामने आया है वह यह कि गैरसंरक्षित जंगलों में भी बाघ देखे गए हैं. मसलन, इंदौर देवास इलाके में सात बाघों की मौजूदगी के निशान मिले हैं, रायसेन में 14 बाघों के तो श्योपुर के कूनोपालपुर में तीन बाघों की मौजूदगी के संकेत मिले हैं.

शिवपुरी के माधव राष्ट्रीय उद्यान में भी बाघ के आने की पुष्टि हुई है. प्रदेश के प्रमुख वन्य संरक्षक (पीसीसीएफ) डॉ. एच.एस. पाबला कहते हैं, ''कान्हा और उससे लगे छह वन रिजर्व क्षेत्रों में वन विभाग के कर्मचारियों ने जो नमूने एकत्र कर डब्ल्यूआइआइ को दिए थे, लगता है कि उनका विश्लेषण सही नहीं हो पाया.''

पाबला के मुताबिक डब्ल्यूआइआइ ने प्रदेश के 9,700 वर्ग किमी क्षेत्र का विश्लेषण किया है, जबकि प्रदेश में बाघों का विचरण करीब 12,700 वर्ग किमी में है, ऐसे में 3,000  वर्ग किमी का विश्लेषण रह गया है, जिनमें दमोह, सागर, नौरादेवी, खंडवा, बैतूल और छिंदवाड़ा के जंगल शामिल हैं.

लेकिन डब्ल्यूआइआइ के प्राणी विशेषज्ञ डॉ. वाइ.वी. झला कहते हैं, ''टाइगर रिजर्व में बाघों से जुड़े संपूर्ण डाटा को संबंधित राज्य का वन विभाग ही इकठ्ठा करता है, हमारे विशेषज्ञ तो उनका सिर्फ विश्लेषण करते है और उसी आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं. हो सकता है कि कुछेक स्थानों पर नमूने लेते समय बाघ की आवाजाही नहीं मिली हो.''

पाबला कहते हैं कि चार साल पहले कान्हा में 424 बीट्‌स थीं, जो अब बढ़ाकर 495 कर दी गई है ऐसे में बाघ कैसे कम हो सकते हैं. अपने विभाग की आंतरिक निगरानी प्रणाली के आधार पर वे दावा करते हैं कि पन्ना में कम से कम 89 बाघ तो होने ही चाहिए, संख्या इससे ज्यादा भी हो सकती है. लेकिन वन विभाग के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि पन्ना से बाघों के घटने का कारण सिर्फ और सिर्फ अवैध शिकार है.

हालांकि वन विभाग कान्हा से 25 बाघों के गायब होने के पीछे क्षेत्राधिकार के लिए होने वाली लड़ाई को कारण बताता है. जयराम रमेश के दौरे के एक दिन बाद ही पन्ना टाइगर रिजर्व के गंगऊ व बलगार क्षेत्र से नीलगाय, तेंदुआ, लकड़बग्घा, बारहसिंगा की खाल और कंकाल मिले और तेंदुए की खाल में गोली का निशान हैं, लेकिन टाइगर रिजर्व के अधिकारी अवैध शिकार की बात मानने को तैयार नहीं है. हाल ही में यहां से लल्लू रैकवार नाम का शिकारी भी गिरफ्त में आया है, जिसके पास से जानवरों के शिकार के काम आने वाले देसी बम मिले हैं. बीते चार साल में प्रदेश के छह टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण पर 139 करोड़ रु. खर्च हुए हैं.

पन्ना को छोड़ बाकी के पांच उद्यानों का बफर जोन बनाकर क्षेत्रफल भी बढ़ाया गया है लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है. पन्ना में बफर जोन की अधिसूचना जारी नहीं किए जाने का कारण स्थानीय लोगों द्वारा इसका विरोध करना बताया जा रहा है लेकिन भोपाल के आरटीआइ कार्यकर्ता अजय दुबे, जिनके प्रयासों के चलते ही पांच टाइगर रिजर्वों को बफर जोन घोषित करने के लिए सरकार को मजबूर होना पड़ा, इसके पीछे कुछ और ही कारण मानते हैं.वे कहते हैं, ''पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के आसपास उत्खनन की गतिविधियां जोरों पर हैं, जिनसे जुड़े रसूखदार राजनीतिक लोग नहीं चाहते कि यहां बफर जोन बने.''टाइगर स्टेट का दर्जा छिन जाने से देशभर में प्रदेश की जो किरकिरी हुई है उससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी खासे नाखुश हैं. लेकिन जब तक फिर से हो रही गणना के आंकड़े न आ जाएं, तब तक हो भी क्या सकता है.

बढ़ गए बाघ:

- 39 टाइगर रिजर्वों में हुई गणना कहती है कि देश में बाघों की संख्या अनुमानतः 1,706 है, जो 2006 में हुई गणना 1,411 से 295 ज्‍यादा है.
- मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में घटे बाघ. जबकि 280 बाघ संख्या के साथ कर्नाटक  ने मध्य प्रदेश से टाइगर स्टेट का दर्जा छीना.
- चार साल पहले मध्य प्रदेश में 300 बाघ थे जो घटकर 257 रह गए. सबसे ज्‍यादा 25 बाघ घटे कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में.

सौजन्‍य: इंडिया टुडे

कलियासोत के बाघों को शिकारियों से खतरा


भोपाल. वन विभाग ने बाघों की सुरक्षा को लेकर भले ही अलर्ट जारी कर दिया हो, लेकिन भोपाल वन मंडल इस पर गंभीर नहीं है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि समरधा रेंज में बाघ की मॉनिटरिंग के लिए केवल 20 कर्मचारी लगाए गए हैं। वो भी कहीं वन महोत्सव की तैयारियों में जुटे हैं तो कोई तेंदूपत्ता तुड़ाई में। कलियासोत-केरवा क्षेत्र में पर्यटक बेरोकटोक घूम रहे हैं।

गौरतलब है कि बाघ की सुरक्षा को लेकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने प्रदेश के सभी नेशनल पार्क और सेंक्चुरी में अलर्ट जारी किया है। कलियासोत और केरवा में सक्रिय बाघों की सुरक्षा के लिए 20 लोगों की टीम बनाई गई है, जो बाघों की निगरानी के लिए पर्याप्त नहीं है। वहीं समरधा रेंज की वन समिति और मुखबिर तंत्र भी निष्क्रिय है। संदिग्ध रूप से घूमने वालों को रोकने टोकने वाला भी कोई नहीं है। सूत्रों का कहना है कि बाघों की सुरक्षा के लिए लगे गश्ती दल के पास वाहन तक नहीं है।

भोपाल फॉरेस्ट सर्कल के सीसीएफ एसएस राजपूत का कहना है कि रातापानी अभयारण्य से माइग्रेट होकर आए बाघ-बाघिन और शावकों की सुरक्षा के लिए दूसरे रेंज के कर्मचारियों को लगाया गया है। उनका मानना है कि जिस तरह की सुरक्षा के संसाधन टाइगर रिजर्व और सेंक्चुरी में हैं, उतने समरधा रेंज में नहीं हैं। उन्होंने बताया कि इस संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी दे दी गई है। उनका कहना है कि अपर्याप्त संसाधन के बावजूद वन अमला बाघ व बाघिन और शावकों पर सतत निगरानी रखे हुए है।

ये होना चाहिए इंतजाम 

विशेषज्ञों का कहना है कि चार बाघों की सुरक्षा के लिए और उनके मूवमेंट पर निगरानी रखने के लिए कम से कम दस-दस वन कर्मचारियों की पांच टीम होनी चाहिए। यह टीम केवल टाइगर की मॉनिटरिंग का काम करे। गश्ती दल के मूवमेंट के लिए वाहन, कैमरे, नाइट विजन कैमरा, नाइट विजन दूरबीन सहित बजट होना जरूरी है।

Friday, 18 May 2012

गणना में 15 बाघों की मौजूदगी के साक्ष्य मिले


सतपुड़ा रिजर्व में गणना के पहले दिन 15 बाघों की मौजूदगी के साक्ष्य मिले हैं। 42 डिग्री सेल्सियस की तपन से भरे दिन में 400 वनकर्मियों के 123 दल बाघों को खोजने गुरुवार सुबह 6 बजे से ही निकल गए थे। अपरान्ह 4 बजे तक इन दलों को इन बाघों की मौजूदगी यह सुराग रास्ते में बाघों के पंजे, पेड़ों पर निशान और विस्टा के नमूनों से मिले हैं।

1560 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले रिजर्व में इन बाघों के साक्ष्य धाई, बोरी, भारभूड, चूरना, मढ़ई, ढाबा क्षेत्र में पाए गए। इस खोज के दौरान बीटों में तेंदुआ, रीछ, लकड़बग्गा, सोन कुत्ते की मौजूदगी के निशान भी पाए गए। अभी दो दिन और बाघों की खोज की जाएगी। वर्ष 2011 की गणना के अनुसार 43 बाघ हैं।

इन साक्ष्यों को खोजा 

बाघ व अन्य प्राणियों के पग मार्क, जमीन व पेड़ों पर बाघ के पंजे की खरोच, विस्टा व गंध मार्किंग, शिकार को मारने का तरीका, जमीन में लोट लगाने की स्थिति, आवाज, प्रत्यक्ष दर्शन के आधार पर क्षेत्र में बाघ होने के सबूत तलाशे।

आगे यह होगा 

पद मार्क के आधार पर जुटाए गए आंकड़ों को डब्ल्यूआईआई देहरादून भेज दिया जाएगा। विशेषज्ञ साक्ष्यों के आधार पर बाघों की सही संख्या का अनुमान निकालेंगे। इसमें तकरीबन आठ माह लगेंगे।

बाघ के जबड़े से पत्नी को जिंदा बचाया


उमरिया। यहां बांधवगढ़ के वन्य ग्राम रोहनिया के पास एक साहसी युवक ने खूंखार बाघ से निहत्थे 15 मिनट तक जंग लड़ी और अंतत: उसके जबड़े से अपनी पत्नी को जीवित बचा लिया। युवक तिलकराज की घायल पत्नी गीताबाई को उपचारार्थ उमरिया चिकित्सालय में भर्ती किया गया है जबकि तिलकराज खुद पूरी तरह सुरक्षित है। गीताबाई को उस समय बाघ ने अपने जबड़े में दबोच लिया था जब वह तेंदू पत्ता तोड़ रही थी। पास ही प ा तोड़ रहे तिलकराज ने जैसे ही अपनी पत्नी को बाघ से हमला होते देखा वह दौड़ लगाकर निहत्थे ही बाघ पर पिल पड़ा।

घटनाक्रम के बारे में  मिली जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ़ के ग्राम रोहनिया निवासी तिलकराज तथा उसकी पत्नी गीताबाई अन्य लोगों के साथ जंगल में तेंदूपत्ता तोड़ने गए थे। गुरुवार को सुबह करीब ९ बजे वह तेंदु पत्ता तोड़ते-तोड़ते गीताबाई साथियों से अलग दिशा की ओर चली गई। सामने एक बाघ झुरमुट में छिपा बैठा था। जिसे महिला देख नहीं पाई। बाघ ने अचानक छलांग लगाई और गीताबाई के गले में जबड़ा गड़ाकर उसे पंजों में दबोच लिया। 

निहत्थे भिड़ा बाघ से

अस्पताल में पत्नी का इलाज करा रहे तिलकराज ने बाघ से भिड़ने का जो हाल बताया वह कम रोमांचकारी नहीं था। उसने बताया कि जब बाघ ने छलांग लगाकर उसकी पत्नी को जबड़ों और पंजों में जकड़ा तो वह बिना कुछ सोचे-समझे बाघ से जा भिड़ा। इस वक्त उसके पास डण्डा तक नहीं था। उस समय उसके मन में यही था कि पत्नी को बचाना है। पहले तो उसने गीता का पैर पकड़कर खींचा, लेकिन बाघ की पकड़ काफी मजबूत थी। उसके बाद उसने बाघ के शरीर पर लात और घूंसों से वार करना शुरु कर दिया। 

18 मई 2012, दैनिक भास्कर, जबलपुर

Thursday, 17 May 2012

गणना : आज से खोजेंगे सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में बाघों के साक्ष्य


सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में साक्ष्यों के आधार पर मांसाहारी वन्यप्राणियों की गणना का काम 17 मई से शुरू होगा। रिजर्व के 500 वन्य कर्मचारी पहली बार दो ट्रांजेक्शन लाइनों पर 4-4 किमी वन्यप्राणियों के साक्ष्य खोजेंगे। दस साक्ष्यों के आधार पर वन्य कर्मी सुबह 6 बजे से वन्यप्राणियों के निशान तलाशने जाएंगे। गणना का काम 19 मई तक चलेगा।

गणना को पुख्ता बनाने के लिए दो ट्रांजेक्ट लाइनों के अलावा 6 दिन होने वाली गणना अब 9 दिन की होगी। पहले चरण में मांसाहारी वन्यप्राणियों की गणना का काम 3 दिन होगा। दूसरे चरण में शाकाहारी वन्यप्राणियों की गणना 6 दिन होगी। हालांकि शाकाहारी वन्यप्राणियों की गणना कब होगी यह तिथि निर्धारित नहीं हुई है। सूत्रों की मानें तो वन्यप्राणियों की गणना में प्रयुक्त होने वाले कम्पास और रेंज फाइंडर जैसे उपकरणों के उपलब्ध न होने से शाकाहारी वन्यप्राणियों की गणना में देरी हो रही है।

इन दस साक्ष्यों के आधार पर होगी गणना 

- वन्यप्राणी के पग मार्क खोजेंगे।
- जमीन व पेड़ों पर बाघ के पंजे की खरोच देखेंगे।
- बाघ की विस्टा व पेशाब का नमूना लेना।
- गंध मार्किंग के आधार पर।
- शिकार को मारने के आधार पर।
- जमीन में लोट लगाने से।
- आवाज के आधार पर।
- प्रत्यक्ष दर्शन के आधार पर क्षेत्र में बाघ होने के सबूत तलाशे जाएंगे।

मध्य प्रदेश के शिकारियों ने ली 25 बाघों को मारने की सुपारी!


मध्य प्रदेश के शिकारियों ने महाराष्ट्र के 25 बाघों को मारने की 40 लाख रुपये में सुपारी ली है। वन विभाग के अधिकारियों को मुखबिरों से मिली इस जानकारी के बाद चंद्रपुर के ताडोबा-अंधारी बाघ भ्रमण क्षेत्र में अलर्ट घोषित कर दिया गया है।

अपर प्रधान मुख्य वन-संरक्षक (पश्चिम महाराष्ट्र) ए.के. निगम का कहना है कि महाराष्ट्र के जंगलों में इस वक्त करीब 169 बाघ हैं। जिसमें से अधिकतर विदर्भ के टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हैं। उन्होंने बताया कि पिछले महीने 26अप्रैल को तडोबा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में शिकारी के ट्रैप (जाल) में फंसे दो बाघों में से एक ही मौत हो जाने के बाद से ही अलर्ट घोषित कर दिया गया है। बाघों का शिकार करने में शिकारी कामयाब न हो इसके लिए 15 जून तक सभी वन कर्मियों की छुट्टी रद्द कर दिये जाने की जानकारी मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने दी है।

अफवाहों का बाजार भी गर्म 

तडोबा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में एक बाघ की 26 अप्रैल को मौत हो जाने की घटना के बाद से ही तडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में शिकारियों के सक्रिय होने की चर्चा जोरों पर है। इसके साथ ही यहां के गावों में तरह-तरह की अफवाहों भी उड़नी शुरू हो गई है। सोमवार को भी ऐसी ही एक घटना तब सामने आई, तब एक एनजीओ से जुड़े पर्यटकों ने वन विभाग के अधिकारियों को जंगल में दो संदिग्ध शिकारों को देखने की सूचना दी। कई घंटों की जांच पड़ताल के बाद पता चला कि जिसे पर्यटकों ने संदिग्ध शिकारी समझा था, वह चिमूर तहसिल के वागनगांव का पूर्व सरपंच कमलजीत सिंह था।

इसलिए होता है बाघों का अवैध शिकार 

सूत्रों का कहना है कि चीन में बाघ की हड्डियों से परंपरागत दवाएं बनाई जाती है। माना जाता है कि चीन में बाघों के विभिन्न अंगों की जबरदस्त मांग रहती है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बाघ की खाल की ऊंची कीमत मिलने की वजह से भी इसके शिकार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

Wednesday, 16 May 2012

रणथम्भौर अभयारण्य का विस्तार हुआ तो शहरों को होगा नुकसान!


सवाई माधोपुर. राज्य एवं केन्द्र सरकार रणथंभौर अभयारण्य का दायरा बढ़ाने के लिए नित नई योजनाएं बना रही है। इस बार जिस योजना पर काम किया जा रहा है अगर उसे केन्द्र सरकार से मंजूरी मिली तो सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय का वर्तमान 70 प्रतिशत से अधिक आबादी वाला इलाका प्रतिबंधित क्षेत्र में शामिल हो जाएगा। इसी प्रकार खंडार उपखंड मुख्यालय का भी 75 प्रतिशत से अधिक आबादी क्षेत्र इसकी चपेट में आ जाएगा। वन एवं पर्यावरण के साथ वन्यजीवों के संरक्षण के लिए वन विभाग द्वारा वन क्षेत्र का दायरा बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे  हैं। इसके लिए अभयारण्य की सीमा पर स्थित गांवों एवं कस्बों को इस में शामिल कर विस्थापन का काम किया जा रहा है। अब तक वन विभाग की नजर केवल छोटे छोटे गांवों एवं कस्बों पर ही थी, लेकिन इस बार विभाग सीधा सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय के 70 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले क्षेत्र को इस दायरे में शामिल करने की तैयारी कर रहा है। इसके साथ ही वन विभाग की नजर खंडार उपखंड मुख्यालय पर भी टिक गई है। 

दो बार वापस आ चुके हैं प्रस्ताव

रणथंभौर अभयारण्य के अधिकारियों से मशविरा किए बिना पूर्व में राज्य सरकार के निर्देश पर वन विभाग ने केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को  एक प्रस्ताव भेजा था। उक्त प्रस्ताव में रणथंभौर अभयारण्य के विस्तार के लिए एक नया वन ब्लाक 6बी बड़ी लाइन बनाने का आग्रह किया गया था। इस ब्लाक में वर्तमान में जहां 6ए बड़ी लाइन ब्लाक समाप्त होता है वहां से इस ब्लाक को शुरू करना था। वर्तमान में 6ए बड़ी लाइन ब्लाक रणथंभौर रोड पर होटल ओबेराय के पीछे समाप्त होता है। इससे आगे सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय की सीमा शुरू होने के कारण इसके चारो तरफ के पहाड़ किसी भी ब्लाक या आरक्षित क्षेत्र में शामिल नहीं है। अगर 6बी बड़ी लाइन ब्लाक को मंजूरी मिलती तो इस में ओबेराय होटल के पीछे समाप्त होने वाली सीमा से शुरू होकर सवाई माधोपुर की और पूरा रणथंभौर रोड, आईओसी प्लांट के पीछे का पहाड, रिको औद्योगिक क्षेत्र, फायरिंग बट, आलनपुर, विनोबा बस्ती होते हुए नीमली रोड, सीतामाता से बालास तक का पहाड़ इस में शामिल हो जाता। इसके शामिल होने के साथ ही सवाई माधोपुर शहर भी इस में शामिल हो जाता। क्यो की असली सवाई माधोपुर शहर पहाड़ों के बीच बसा हुआ है और उक्त सभी पहाड़ इसमें शामिल किए जाने के प्रस्ताव भेजे गए थे। इसी प्रकार खंडार उपखंड मुख्यालय पर स्थित तारागढ़ किले वाला पहाड़ भी इसी ब्लाक में शामिल किए जाने का प्रस्ताव था। पूरा खंडार कस्बा इसी पहाड़ के सहारे बसा हुआ है। इसी प्रकार बहरावंडा खुर्द, छाण, जैतपुर सहित कुछ छोटे गांवों को भी इस में शामिल करने की तैयारी थी, लेकिन केन्द्र सरकार को यह प्रस्ताव दो बार भेजने के बाद भी केन्द्र ने इसे नामंजूर कर दिया। 

नामंजूर करने का कारण

राज्य सरकार चाहती थी कि 6बी बड़ी लाइन का गठन होने के साथ ही इसके पांच सौ मीटर के दायरे में आने वाले पूरे इलाके पर ईको सेंसेटिव जोन संबंधित सभी नियम एवं प्रतिबंध लागू कर दिए जाए। दूसरी तरफ केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय चाहता था कि इसे मंजूरी देने से पहले राज्य सरकार यह लिख कर दे कि ईको सेंसेटिव जोन का दायरा पांच सौ मीटर के स्थान पर एक किमी होगा, लेकिन राज्य सरकार जानती है कि दायरा पांच सौ मीटर से एक किमी करते ही सवाई माधोपुर एवं खंडार अधिकांश भाग सहित कई गावों को नामोनिशान ही साफ हो जाएगा और वह बहुत 
अधिक हालात बिगाड़ देगा। इसी विरोधाभास के कारण विभाग ने दो बार नामंजूरी मिलने के बाद अब नया पैंतरा फेंका है। 

क्या है नया पैंतरा

विभाग को लग गया है कि केन्द्र सरकार नए ब्लाक को मंजूरी देने में अडंगा लगा रही है। इसके लिए विभाग ने इस बार नई योजना पर काम शुरू किया है। सब कुछ वही है बस थोड़ा सा रूप बदला है। विभाग इस बार 6बी ब्लाक का प्रस्ताव भेजने के स्थान पर 6बी ब्लाक में शामिल किए जाने वाले सभी पहाड़ों एवं आबादी वाले क्षेत्रों को 6ए बड़ी लाइन ब्लाक में ही शामिल करना चाहती है। विभाग चाहता है कि नया ब्लाक बनाने के स्थान पर इसी ब्लाक का विस्तार आगे तक कर दिया जाए और उसमें वे सभी पहाड़ शामिल कर लिए जाएं तो अब तक 6बी ब्लाक में शामिल करने की बात की जा रही थी। इससे केन्द्र सरकार को अडं़गा लगाने का मौका नहीं मिलेगा और विभाग अपनी मंशा में भी कामयाब हो जाएगा।

मंजूरी मिली तो क्या होगा

हर आदमी जानता है कि यहां ईको सेंसेटिव जोन में कई प्रकार के प्रतिबंध है। इसके तहत इस इलाके में किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि, नया निर्माण, विकास के कार्य औद्योगिक विकास रोक दिए जाते हैं। इसे मंजूरी मिलते ही रणथंभौर रोड का एक बहुत बड़ा भाग, रीको औद्योगिक क्षेत्र रणथंभौर रोड, लगभग पूरा आलनपुर, विनोबा बस्ती, संपूर्ण पहाड़ के भीतर बसा सवाई माधोपुर शहर, नीमली रोड के कई गांव, अस्पताल तक का क्षेत्र, खंडार कस्बा, छाण, बहरावंडा खुर्द जैतपुर सहित कुछ दूसरे इलाके भी इसमें शामिल होने से यहां न तो कोई औद्योगिक गतिविधियों के लिए काम कर पाएंगे और न ही सरकार से इन इलाकों में विकास के लिए कोई काम हो सकेगा। इसी प्रकार किसी भी प्रकार का नया निर्माण करने से पहले वन विभाग से अनुमति भी लेनी होगी और वन विभाग उसके लिए इजाजत नहीं देगा क्यो की उक्त सभी स्थान ईको सेंसेटिव जोन में शामिल हो जाएंगे। अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली तो सवाई माधोपुर एवं खंडार का पूरा वजूद खतरे में पड़ जाएगा और मजबूरी में लोगों के पास धीरे धीरे पलायन करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं होगा। 

साभार : सवाई माधोपुर भास्कर

देश में और बनेंगे टाइगर रिजर्व


बाघ संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने मंगलवार को कहा कि बाघ संरक्षण के लिए देश में और टाइगर रिजर्व बनाए जाएंगे।तमिलनाडु के सत्य मंगलम वन्यजीव अभयारण्य में एक टाइगर रिजर्व स्थापित करने को सैद्धांतिक मंजूरी भी दे दी गई है। पर्यावरण मंत्री ने दिल्ली में हो रहे सम्मेलन में कहा कि 'टाइगर रिजर्व के प्रमुख क्षेत्रों में बाघों के लिए खास स्थानों को जोडऩे की जरूरत है। टाइगर हैबिटेट को भी एक-दूसरे से जोडऩा जरूरी है।'

बाघों की निगरानी की खातिर सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर नटराजन ने कहा कि कार्बेट नेशनल पार्क में 24 घंटे निगरानी के लिए विशेष कैमरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। करीब डेढ़ साल पहले रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के बाद 2022 तक जंगली बाघों की संख्या दोगुना करने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास तेज किए गए हैं।

इसी पर आयोजित इस समीक्षा सम्मेलन में रूस, इंडोनेशिया, चीन, नेपाल, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम व मलेशिया समेत कई देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। सम्मेलन के दौरान भारत और रूस के प्रतिनिधि आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए एक संयुक्त प्रस्ताव पर हस्ताक्षर भी करेंगे।

आठ शावकों सहित 11 शेरों ने रातभर घर में मचाई धमाचौकड़ी

ऊना (गुजरात). एशियाई सिंहों (शेर) के 'नाइट आउट' ने उमेदपुरा गांव में लोगों की नींद हराम कर दी। आठ शावकों सहित 11 शेर सोमवार रात गांव में घुस आए। 


देवजीभाई व पोपटभाई के घरों में एक घंटे तक धमाचौकड़ी मचाई। इस घटना में दो लोग घायल भी हुए। एशियाई शेरों के इकलौते आवास गिर अभयारण्य से यह गांव सटा हुआ है। देवजी ने बताया कि शेरों के आने की सूचना के बाद परिजनों को पड़ोसी के घर भेज दिया था। शावक चारपाई पर चढ़े। रसोई में गए। छत तक भी जा पहुंचे। 


एक शावक ने देवजीभाई की गाय का शिकार करने का प्रयास किया। इसे उन्होंने और उनके भाई ने विफल कर दिया। लेकिन घायल हो गए। शेरों का यह परिवार गिर अभयारण्य के फरेड़ा के वीडी वनक्षेत्र में रहता है। वन विभाग भी उनके गांव में घुसने की खबर पाकर मौके पर पहुंच गया था। 


उमेदपुरा से लौटते समय ये शेर जादवभाई गढिय़ा के बगीचे में जा पहुंचे। वहां जादव अकेले थे। शेरों से बचने के लिए उन्हें 20 मिनट तक पेड़ पर रहना पड़ा। 

Tuesday, 15 May 2012

सरिस्का में बाघ-बघेरों की अब हाईटेक ट्रेकिंग



सरिस्का अभयारण्य में बाघ एसटी-1 की मौत के बाद अब ट्रेकिंग प्रणाली को हाईटेक कर दिया गया है। बाघ-बघेरों की निगरानी में लगे कर्मचारियों को ट्रेकिंग के लिए आधुनिक उपकरण मुहैया कराए गए हैं। अब रेंज फाइंडर व जीपीएस जैसे  आधुनिक उपकरणों की मदद से जंगली जानवरों की निगरानी की जा ही है।

सरिस्का में बाघ एसटी-1 की मौत के बाद केंद्र सरकार  अब कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती। देश में बाघ संरक्षण पर काम रहे केंद्र सरकार के उपक्रम राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने सरिस्का में ट्रेकिंग प्रणाली में सुधार के लिए कदम उठाए हैं। आधुनिक तकनीक से जानवरों की ट्रेकिंग करने के लिए रेंज फाइंडर व जीपीएस उपकरण मुहैया कराए हैं। ये उपकरण सरिस्का की सभी 78 बीट में दिए गए हैं। बाघों की निगरानी में लगे कर्मचारी अब पगमार्क, रेडियो कॉलर पद्धति के साथ रेंज फाइंडर तथा ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) से जानवरों की निगरानी कर रहे हैं।

क्यों पड़ी जरूरत

सरिस्का अभयारण्य में रणथंभौर से शिफ्ट किए गए बाघ एसटी-1 नवंबर 2010 में जहर देकर हत्या कर दी गई थी। बाघ की मौत के चार दिन बाद शव टहला रेंज के बेरीवाला नाला के पास मिला था। इस घटना के बाद सरिस्का में बाघों की ट्रेकिंग में लगे कर्मचारियों के ऊपर सवाल उठाए गए थे। अधिकारियों का मानना था कि ट्रैकिंग में लापरवाही के चलते ही बाघ का चार दिन बाद शव मिला। सरिस्का में बाघों की ट्रेकिंग सही तरह से नहीं की गई। सरिस्का में बाघों की ट्रेकिंग प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से ये उपकरण मुहैया कराए गए हैं।

अब तक क्या

सरिस्का अभयारण्य में बाघ-बघेरों की ट्रेनिंग अब तक पगमार्क व रेडियो कॉलर पद्धति से की जाती रही है। इन दोनों ही ट्रेकिंग पद्धतियों में कई बार जानवरों की ट्रेकिंग में लगे कर्मचारी कई बार लापरवाही बरत जाते थे। ट्रेकिंग के लिए गए कर्मचारियों पर किसी तरह की निगरानी नहीं थी। ट्रेकिंग करने वाले जो भी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को देते वह माननी पड़ती थी।


आगे क्या

रेंज फाइंडर उपकरण से जहां अब जानवर की सटीक दूरी का पता सकेगा। रेंज फाइंडर उपकरण को जानवर पर जैसे ही फोकस किया जाएगा, यह उसकी दूरी मीटर में बता देगा। इस उपकरण में लगे लैंस की मदद से वनकर्मी उसे अच्छी तरह देख सकते हैं। इसी तरह जीपीएस उपकरण वनकर्मियों द्वारा ट्रेकिंग के दौरान कवर किए गए जंगल का रिकॉर्ड रखेगा। चौकी से निकलते ही वनकर्मी जीपीएस को ऑन कर लेंगे। जंगल में वे जहां-जहां भी ट्रेकिंग के दौरान घूमेंगे जीपीएस में लगे मेमोरी कार्ड में रिकॉर्ड होता रहेगा। इससे यह पता लग सकेगा कि वनकर्मी जंगल में कितने किलोमीटर, किस दिशा में और कहां-कहां घूमा है। जीपीएस में लगा कार्ड यह डाटा एकत्रित हो जाएगा। इस कार्ड को अधिकारी कंप्यूटर पर लगाकर ट्रेकिंग का विश्लेषण कर सकते हैं। ये उपकरण मिलने के बाद वनकर्मी अधिकारियों को भ्रमित नहीं कर पाएंगे।

एक्सपर्ट व्यू

सरिस्का के क्षेत्रीय निदेशक आरएस शेखावत के अनुसार, आधुनिक उपकरण मिलने से जंगल में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हुई है। अब बाघों की ट्रेकिंग में लगे कर्मचारी अब किसी तरह की कोताही नहीं कर सकते। इन उपकरणों की मदद से ट्रेकिंग करने वाले कर्मचारी की लोकेशन, जंगल में कहां-कहां और कब-कब गया, इसका पता लगेगा। रेंज फाइंडर उपकरण से जानवर की सही लोकेशन का निर्धारण हो सकेगा। रेडियो कॉलर व पगमार्क पद्धति से की गई ट्रेकिंग को वनकर्मी कागज में नोट करके लाते थे। अब सब कुछ सामने होगा।    

साभार : अलवर भास्कर, 15/05/2012 

मप्र में अब बिना दाम कीजिये शेर का दीदार


जबलपुर. कितना बुरा लगेगा यदि आपको आपके ही घर मंे दाखिल होने की फीस अदा करनी पड़े! पिछले न जाने कितने वर्षो से वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों को नेशनल पार्को के द्वार पर ऐसा ही बर्ताव झेलना पड़ रहा था, लेकिन अब अच्छी खबर यह है कि कर्मचारी ही नहीं, बल्कि उनके परिजन भी बगैर किसी फीस के राष्ट्रीय उद्यानों में प्रवेश कर सकेंगे। हां, इतना जरूर है कि उद्यान में अन्य  सुविधाओं के लिए उन्हें कुछ रकम अदा करनी पड़ेगी। अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा यह सौगात विभाग के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर दी गई है।

सेवानिवृत्तों को भी तवज्जो

कान्हा, बांधवगढ़, पेंच में सैर-सपाटे की मंशा रखने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी निराश होने की जरूरत नहीं। भले ही वे अब महकमे में सेवाएं न दे रहे हों, लेकिन विभाग ने उन्हें वैसी ही तवज्जो दी है, जैसी कि सेवारत कर्मचारियों को। रिटायर्ड कर्मचारियों तथा उनके परिजनों को भी इस व्यवस्था मंे शामिल किया गया है।

रेस्ट हाउस में स्वागत है 

वन विभाग के कर्मचारियों अधिकारियों के लिए पार्क में स्थित रेस्ट हाउस के दरवाजे भी खोल दिये गये हैं। हालांकि इसमें पूरी तरह से छूट नहीं दी गई है, लेकिन जो शुल्क अदा करनी होगी वह सामान्य पर्यटक की अपेक्षा बेहद कम होगी। कान्हा का उदाहरण लें तो 890 रुपए टैरिफ का एसी रूम सिर्फ  200 रुपए में उपलब्ध रहेगा। नॉन एसी के मामले में विभागीय कर्मचारियों को चार से लेकर 700 रुपए की जगह महज 100 रुपए ही अदा करने होंगे।

Friday, 11 May 2012

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में कैमरे बताएंगे बाघों की लोकेशन

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व जाने वाले पर्यटकों के लिए अच्छी खबर यह है कि उन्हें बाघ का पता अब आसानी से चल सकेगा। पार्क प्रबंधन अपने क्षेत्र के जंगल में स्थायी कैमरे लगाने वाला है। इससे न सिर्फ बाघों पर नजर रहेगी बल्कि हर दो-तीन माह के दौरान कैमरे में कैप्चर हुए बाघों की अनुमानित संया भी मिल सकेगी।

कैमरे लगने से काफी हद तक शिकार व वनों की कटाई पर भी लगाम लगेगी। पार्क प्रबंधन को रिजर्व में 100 कैमरे लगाना है। कैमरे लगाने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मिलने वाले बजट का इंतजार किया जा रहा है। अभी भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून द्वारा रिजर्व में कैमरे लगाकर बाघों की गणना की जाती है। 

हालांकि यह कैमरे दो सालों में दो या तीन माह के लिए की जाती है।इसलिए पड़ी थी जरूरत : सन् 1972 से 2004 तक पग मार्क के आधार पर बाघों की गणना की जाती थी। इस आकलन से क्षेत्र में एक से अधिक बाघ होने की पुता जानकारी नहीं मिल पाती थी। 

इसके लिए वन्य जीव संस्थान देहरादून, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण संस्थान व राज्य सरकारों के विशेषज्ञों ने विशेष योजना बनाई। वर्ष 2009-10 में सतपुड़ा में पहली बार हाईटेक डिजिटल व एनालाग कैमरा लगाकर बाघों की ट्रेपिंग की गई।

40 कैमरे में 12 बाघ हुए कैप्चर

भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के चूरना में कैमरा ट्रेपिंग की जा रही है। फरवरी के अंत से शुरू हुई कैमरा ट्रैपिंग में अब तब 40 कैमरों में 12 बाघ कैप्चर हो चुके हैं। बाघ की धारियों के आधार पर इन बाघों को अलग करने के बाद यह पुष्टि हुई है।

43 बाघ हैं

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में वर्ष 2006 में 39 बाघ थे। जो 2011 में बढ़कर 43 हो गए हैं। इसमें 72 पैंथर, 3600 संभार, 250 जंगली कुत्ते, 3000 बायसन और इसके अलावा वेस्ट घाट के वनों में पाई जाने वाली उड़ने वाली गिलहरी, बड़ी गिलहरी यहां के जंगलों में पाई जाती है।