Monday, 7 June 2010

जहां टूरिस्ट वहां टाइगर

जबलपुर. भले ही यह बात कुछ अटपटी लगे लेकिन यह है सौ फीसदी सच कि जहां टूरिस्ट हैं वहीं टाइगर हैं और कान्हा नेशनल पार्क का वह क्षेत्र जिसे पर्यटकों के लिए खोला गया है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। करीब 950 वर्ग कि लोमीटर में फैले कान्हा नेशनल पार्क का मात्र 275 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही पर्यटकों के लिए खोला गया है और इसी में 80 प्रतिशत बाघों का बसेरा है। कान्हा से लगे फेन नेशनल पार्क हो या फिर नौरादेही, रानी दुर्गावती, संजय गांधी नेशनल पार्क हों, कहीं भी टाइगर नहीं हैं क्योंकि यहां पर्यटक भी नहीं आते।

कान्हा नेशनल पार्क को रोटेशन में एक साल तक बंद रखने का प्रस्ताव राज्य सरकार के पास पहुंचे अभी ज्यादा वक्त भी नहीं हुआ है और न ही इस पर अभी कोई कार्रवाई प्रारंभ हुई है, लेकिन लॉज ऑनर एसोसिएशन ऑफ कान्हा ने इस प्रस्ताव को गलत बताने हुए आपत्ति की है। साथ ही यह सुझाव दिया है कि पाबंदी की बजाए टूरिस्ट जोन को बढ़ाया जाए तो बाघों की संख्या मंे बढ़ोत्तरी हो सकती है। एसोसिएशन ने यह भी कहा है कि टाइगर को जो सुरक्षा पर्यटकों से मिलती है वह किसी से नहीं मिल सकती।

पर्यटक ही खोलते हैं भेद

किसी भी नेशनल पार्क में टाइगर या अन्य किसी वन्य पशु के साथ हुए किसी भी हादसे का खुलासा आमतौर पर पर्यटक ही करते हैं। अक्सर पयटकों के जूम वाले कैमरे और बाइनाक्युलर घायल टाइगर या अन्य किसी वन्य पशु को देख लेते हैं। फिर इसकी जानकारी पार्क प्रबंधन को दी जाती है, जिसके बाद कोई कार्रवाई होती है। हाल ही में बांधवगढ़ में हुई घटना का भेद भी पर्यटकों द्वारा ही खोला गया था। मुख्य द्वार पर हुई फायरिंग की जानकारी भी पर्यटकों ने ही दी थी।

सम्मान करते हैं वाइल्ड लाइफ का

एक जमाना था जब कान्हा नेशनल पार्क का प्रबंधन कान्हा में रिसोर्ट और होटल खोलने के लिए आमंत्रण दिया करता था। आज स्थिति बदल गई है, कोई रोक-टोक न होने से यहां होटलों, रिसॉर्ट्स और लॉजों की बाढ़ आ गई है, लेकिन जिन लोगों ने बरसों पहले यहां व्यवसाय प्रारंभ किया था, वो दरअसल में वाइल्ड लाइफ लवर हैं और जंगल तथा वहां के बाशिन्दों का पूर्ण सम्मान करते हैं। कान्हा के अधिकांश रिसॉर्ट और होटलों में वाइल्ड लाइफ के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जाती है और नए आए पर्यटकों को नियम कायदों से भी अवगत कराया जाता है। दरअसल, वन विभाग के अफसर तो स्थानांतरित होते रहते हैं, लेकिन होटल-रिसॉर्ट के संचालक, गाइड, जिप्सियों के ड्राइवर और इस व्यवसाय में लगे अन्य लोग एक तरह से पार्क के एम्बेसेडर के रूप में कार्य करते रहते हैं।

कोई सोच नहीं सकता कि कान्हा को एक साल के लिए बंद करने के प्रस्ताव मात्र से हमारे दिलों में क्या बीत रही है? हमने अपनी सारी जिन्दगी वाइल्ड लाइफ के साथ बिता दी है। आंकड़े बताते हैं कि टाइगर वहीं मिलता है जहां पर्यटक रहते हैं। अगर पार्क बंद कर दिया गया तो ये टाइगर भी खत्म हो जाएंगे। सरकार को चाहिए कि सीमित वाहनों को प्रवेश दे, नए होटल नए गेट पर खोले जाएं और ऐसे नियम बनाए जाएं, जिससे पार्क और इस व्यवसाय में लगे लोगों का भला हो न कि पार्क बंद कर सबके लिए मुसीबत खड़ी की जाए। - सनी चड्ढा, रिसॉर्ट ओनर और एसोसिएशन के सदस्य

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