Monday, 30 April 2012
गाय ने बाघ को मारा
ये खबर लगती तो अविश्वसनीय सी है लेकिन ये सच है कि एक बाघ को एक गाय ने मार डाला.
बाघ शुक्रवार को गाय के बाड़े में घुस गया था जहाँ गाय ने उसे सिंग से मार-मारकर इतना घायल कर दिया था कि शनिवार को उसकी मौत हो गई.
हालांकि वन अधिकारियों का कहना है कि बाघ पहले से घायल था और गाय से मिली चोट की वजह से वह बच नहीं सका.
असहाय बाघ
ये घटना तमिलनाडु में कोयम्बटूर के वालपराई की है.
चाय उगाने वाले इस गाँव के एक व्यक्ति ज्ञानशेखरन ने शुक्रवार की सुबह क़रीब साढ़े छह बजे देखा कि उसकी गाय के बाड़े में एक बाघ घुसा बैठा है.
पहले तो वह डर गया लेकिन उसने पाया कि बार-बार दहाड़ रहे और कराह रहे बाघ में खुद उठकर चलने की शक्ति नहीं बची है.
धीरे-धीरे वहाँ लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई लेकिन कोई बाघ के क़रीब जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. आखिर वन विभाग के अधिकारियों को बुलाया गया.
अधिकारियों ने पड़ोस के इलाके से वन्य पशु चिकित्सक को बुलवाया. चिकित्सक के आते-आते शाम हो गई. लेकिन इसके बाद उसे बेहोशी का इंजेक्शन देकर अस्पताल ले जाया गया और बचाने की कोशिश की गई.
लेकिन वह बच नहीं सका.
लेकिन अब अधिकारी मान रहे हैं कि पहले से ही घायल शेर शिकार कर सकने में असमर्थ था और आसान शिकार की तलाश में उसने गाय के बाड़े में प्रवेश किया होगा.
जहाँ गाय ने अपने बछड़े को बचाने के लिए उस पर सींग से मारना शुरु किया होगा और उसे कगार तक पहुँचा दिया.
पहले से ही घायल
मनमपल्ली वन क्षेत्र में आमतौर पर तेंदुए जानवरों पर हमला करते हैं और कभी-कभी लोगों पर भी हमले करते हैं.
बाघ आमतौर पर आबादी के इलाके में नहीं आते. अधिकारी मान रहे हैं कि ये बाघ अशक्त होने के कारण इधर चला आया होगा.
कोई दस वर्ष की उम्र के इस बाघ को इलाज के बाद भी बचाया नहीं जा सका.
बाघ की मौत के बाद मदुमलाई बाघ अभयारण्य के पशु चिकित्सक ने वर्ल्ड वाइड फंड, गैर सरकारी संगठन के प्रतिनिधियों और कुछ मीडियाकर्मियों की उपस्थिति में उसका पोस्ट मॉर्टम किया.
इस दौरान वन विभाग के अधिकारी भी वहाँ मौजूद थे.
पोस्टमार्टम से पता चला कि उसके पंजे घायल थे और उसके दिल और अंतड़ियों में साही के कांटे चुभे हुए थे.
अधिकारियों का कहना है कि इससे जाहिर होता है कि जंगल में हुए किसी संघर्ष में बाघ पहले से ही घायल था.
उनका कहना है कि घायल होने की वजह से ही वह उसके शिकार करने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित हो गई थी.
बहरहाल, उसकी मौत के लिए गाय अंतिम वजह बनी.
Saturday, 28 April 2012
बाघ घटे लेकिन एक सेंक्चुरी और...
आंध्र प्रदेश में एक ओर तो बाघों की संख्या में हाल के वर्षों में काफी कमी हुई है लेकिन दूसरी ओर सरकार ने एक और इलाके को टाइगर सेंक्चुरी (बाघ अभयारण्य) घोषित किया है.
आदिलाबाद के कावल वाइल्ड लाइफ़ सेंक्चुरी को टाइगर सेंक्चुरी का रुप देने का फैसला ऐसे समय में किया गया है जबकि इस इलाके में बाघों की संख्या घटकर दो से पाँच के बीच रह गई है.
राज्य में नागार्जुन सागर - श्रीसैलम टाइगर रिज़र्व के बाद ये दूसरी टाइगर सेंक्चुरी है.
सरकार की इस घोषणा का स्थानीय निवासी विशेषकर आदिवासी विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ये इस इलाक़े के लोगों को विस्थापित करने की साजिश का हिस्सा है.
जबकि अधिकारियों का कहना है कि ये लोगों के हित में है और किसी को हटाया नहीं जाएगा.
उम्मीद
आंध्र प्रदेश के प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट हितेश मल्होत्रा ने बीबीसी से कहा कि कावल बाघों के लिए सबसे अच्छा इलाका है.
वे कहते हैं, "यहाँ पहले 12 बाघ हुआ करते थे फिर उनकी संख्या घटकर आठ हो गई और फिर पाँच. सिर्फ कागज नगर के आसपास की पाँच बाघ थे. इस इलाके में जनसंख्या और शोर-शराबा बढ़ जाने से बाघ महाराष्ट्र के जंगल में चले गए."
वे कहते हैं, "कावल का इलाका बाघों के लिए बहुत अनुकूल है. अगर ठीक तरह से देखभाल हुई तो हमें विश्वास है कि बाघ न केवल वापस आ जाएँगे बल्कि उनकी संख्या में भी बढ़ोत्तरी होगी."
कावल टाइगर सेंक्चुरी में 839 वर्ग किलोमीटर को कोर इलाक़ा और 1123 वर्ग किलोमीटर को बफर इलाका घोषित किया गया है.
चिंता
लेकिन सरकार के इस फैसले से इस इलाके में रहने वाले लोगों, विशेषकर आदिवासी में चिंता पैदा कर दी है.
उन्हें आशंका है कि इस इलाके को बाघों के लिए संरक्षित करने के बाद उनकी बस्तियों को यहाँ से हटा दिया जाएगा.
हितेश मल्होत्रा इसका खंडन करते हैं और कहते हैं कि ये केवल अफवाहें हैं.
उन्होंने कहा कि इस इलाके में 45 बस्तियाँ हैं, जिनमें से केवल चार सेंक्चुरी के दायरे में आती हैं.
वे आश्वासन देते हुए कहते हैं, "इन चार बस्तियों को भी तभी हटाया जाएगा जब गाँव की पंचायत इन्हें हटाने के लिए सहमति जताएगी. इसके लिए हर परिवार को दस लाख रुपए दिए जाएँगे. लेकिन अगर वे हटना नहीं चाहते तो वहाँ रह सकते हैं. आखिर बाघ और मानव पहले भी साथ रहते आए हैं."
संख्या पर विवाद
पूरे आंध्र प्रदेश में बाघों की संख्या को लेकर काफी विवाद चला आ रहा है.
जहाँ वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ने गत वर्ष गिनती के बाद कहा था कि राज्य में 72 बाघ बचे हैं, जिनमें बच्चे शामिल नहीं हैं.
लेकिन जंगल विभाग का कहना है कि राज्य में सौ के करीब बाघ हैं जिनमें से 15 बच्चे हैं.
हितेश मल्होत्रा का कहना है कि वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट और जंगल विभाग की गिनती में हमेशा ही अंतर रहा है.
वे कहते हैं कि बाघों की संख्या को लेकर वे उत्साहित हैं क्योंकि पहले तो बाघ का एकाध ही बच्चा दिखाई देता था लेकिन हाल में कम से कम दो जगह बाघिनें बच्चों के साथ दिखी हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार नागार्जुन सागर श्रीसैलम सेंक्चुरी में ही लगभग 60 बाघ मौजूद हैं जबकि पूरे राज्य में इनकी संख्या सौ से कुछ अधिक है.
आंकड़े देखें तो राज्य में कई दशक पहले बाघों की संख्या 145 थी, जो अब तक की अधिकतम संख्या है.
वैसे जंगल विभाग बाघों की संख्या का पता लगाने के लिए पहली मई से गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर गिनती का काम शुरु कर रहा है.
राज्य के चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन ऋषि कुमार का कहना है कि पहले गिनती पैरों के निशान (पग मार्क) से होती थी लेकिन इस बार कैमरों का इस्तेमाल भी शुरु होगा.
उन्होंने बताया कि इसमें सौ से अधिक कैमरों का इस्तेमाल होगा.
Friday, 27 April 2012
चांद की रोशनी में गिने जाएंगे वन्य जीव
गणना से पहले वन क्षेत्र व आस-पास के वाटर हॉल की स्थिति और जल संग्रहण स्थानों के बारे में जानकारियां एकत्र की जा रही है। इसके बाद वन्य जीव गणना स्थल निर्धारित किए जाएंगे। उप वन संरक्षक दयासिंह दूलड़ ने बताया कि पूनम के चांद की चांदनी में वन्य जीवों की गिनती की जाएगी। इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। गणना का काम आने वाली पूर्णिमा के दिन वॉटरहॉल पर शाम पांच बजे से शुरू होकर अगले दिन शाम पांच बजे तक 24 घंटे के लिए चलेगा। माना जाता है कि 24 घंटे में एक बार वन्य प्राणी उस पानी वाली जगह पानी पीने जरूर आता है। 24 घंटे की लगातार मॉनीटरिंग के दौरान वाटर हॉल्स पर आने वाले प्रत्येक जीव की पहचान कर दिए गए फॉर्मेट में उनसे संबंधित जानकारी लिखी जाएगी। इस दौरान कुछ लोग वन क्षेत्रों के आसपास गांवों में जाकर भी वन्य जीवों की जानकारी लेंगे व रिकॉर्ड संधारित करेंगे। 5 रेंज में गिने जाएंगे वन्यजीव वन्य जीव गणना जिले की सभी पांच रेंजों में एक साथ की जाएगी। इनमें झुंझुनूं, नवलगढ़, उदयपुरवाटी, खेतड़ी व चिड़ावा रेंज के वन्य क्षेत्र में यह काम वनपाल और कैटल गार्ड और बेलदार मिलकर पूरा करेंगे। पूर्णिमा को ही क्यों पूर्णिमा को ही जनगणना करने के पीछे कारण है कि इस दिन पूरा चांद निकलता है जिसकी रोशनी में वन्य जीव को आसानी से पहचाना जा सकता है। |
Thursday, 26 April 2012
बाघ की बेचारगी और हमारी लाचारगी
बाघ पकड़ने के इस मैराथन अभियान में लगे वन विभाग के लोग यों तो अपनी पीठ खुद थपथपाएंगे कि उन्होंने बाघ को बिना कोई क्षति पहुंचाए जीते-जी बेहोश करके पकड़ लिया, लेकिन सच पूछिए तो इस बीच बाघ की बेचारगी और हमारी लाचारगी, दोनों अच्छी तरह उजागर हुईं। यह बात थोड़ी मजाकिया हो सकती है कि वन विभाग के लोगों को 109 दिनों तक छकाने वाले बाघ ने लुकाछिपी का कोई कीर्तिमान बनाया या नहीं और इसे लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स अथवा रिकार्डो के गिनिज बुक में दर्ज किया जा सकता है क्या, मगर इस बाघ के बहाने कुछ सवालों पर जरूर गौर किया जा सकता है..
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के करीब रहमानखेड़ा के जंगल में भटकता बाघ 109 दिनों तक अखबारों के पन्ने पर दैनंदिन सचित्र जगह बनाए रखने के बाद आखिरकार 110 वें दिन पकड़ में आ गया। बाघ पकड़ने के इस मैराथन अभियान में लगे वन विभाग के लोग यों तो अपनी पीठ खुद थपथपाएंगे कि उन्होंने बाघ को बिना कोई क्षति पहुंचाए जीते-जी बेहोश करके पकड़ लिया, लेकिन सच पूछिए तो इस बीच बाघ की बेचारगी और हमारी लाचारगी, दोनों अच्छी तरह उजागर हुईं। यह बात थोड़ी मजाकिया हो सकती है कि वन विभाग के लोगों को 109 दिनों तक छकाने वाले बाघ ने लुकाछिपी का कोई कीर्तिमान बनाया या नहीं और इसे लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स अथवा रिकार्डो के गिनिज बुक में दर्ज किया जा सकता है क्या, मगर इस बाघ के बहाने कुछ सवालों पर जरूर गौर किया जा सकता है। पहली बात तो यही कि विकास की बलिवेदी पर वन्य पर्यावरण की हम जैसी दुर्गति करते आए हैं और यह प्रक्रिया अभी भी मुकम्मल तौर पर थमी नहीं है, उसका नतीजा यह है कि आसमान में मानसून के मेघ ही नहीं भटक जाते, बल्कि धरती के जीव-जंतु भी निराश्रित होकर और शायद घबराहट में बदहवास होकर रहमानखेड़ा के इस बाघ की तरह भटकने लगते हैं।
अगर याद करना चाहें तो मुंबई और दूसरे शहरों के विस्तार के तहत सीमांत के जंगलों को साफ करके बनाई गई कालोनियों में कभी चीता तो कभी तेंदुआ आदि के घुस आने और उन्हें पकड़ने के सनसनीखेज रोमांचक दृश्य हम टीवी के चैनलों पर पहले भी देखते आए हैं। हर साल कहीं न कहीं मानव बस्तियों में किसी जंगली जानवर के भटककर आ जाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं।
असम से लेकर पूर्वी बंगाल और झारखंड के कुछ इलाकों में जंगली हाथियों के झुंड घुस आते हैं और खेती-बारी रौंदते हुए कच्चे मकानों और झोपड़ियों को तहस-नहस कर डालते हैं। पूर्वी भारत के देहातों में जंगली हाथियों का उत्पात एक तरह से तबाही का वार्षिक आयोजन बन गया है। रौद्र रूप हाथियों की चपेट में आकर कुछ लोग जान भी गंवाते रहते हैं। लखनऊ और वाराणसी जैसे शहर जो कभी अपने बाग-बगीचों और सघन हरियाली के कारण बंदरों और लंगूरों को बहुत रास आते थे, फलों के रूप में उन्हें पर्याप्त आहार मिल जाता था, अब हालत यह है कि इन शहरों में बड़े पैमाने पर वृक्षों को काट दिए जाने से कुछ मुहल्लों में मकानों की छतों पर बंदर धमाचौकड़ी मचाते हैं, मौका पाकर कमरों में घुस जाते हैं, खानेलायक चीजें जितना खाते नहीं, उससे ज्यादा इधर-उधर फेंककर बर्बाद करते हैं, कीमती चीजें पटक कर तोड़ देते हैं, कपड़े फाड़ देते हैं और कोई उन्हें भगाने जाए तो उसे काट खाने दौड़ते हैं।
लखनऊ में ही बंदरों के हमले में बीते बरसों में कई दर्दनाक हादसे हो चुके हैं। बहरहाल, साधारण जीव-जंतु और पशुओं के बारे में तो कोई सोचता ही नहीं कि वे क्या खाएंगे, कहां पानी पिएंगे, लेकिन चूंकि बाघ कोई मामूली जानवर नहीं है और जनमानस में खौफ का दूसरा नाम बना हुआ है, इसलिए रहमानखेड़ा के पकड़े गए बाघ के बहाने अगर हमारे भीतर वन्य प्राणियों और जीव-जंतुओं के संरक्षण के बारे में जरूरी चेतना और जागरूकता आ सके तो बहुत अच्छी बात होगी। दूसरे, कह सकते हैं कि बाघ ने खुद को पकड़वाकर वन विभाग के तीसमार खां टाइप उन लोगों की इज्जत बचा ली, जो उसको पकड़ने के अभियान में लगे थे और कई बार बाघ उनके सामने से निकल गया था। इस तरह हास्यास्पद होते जाने की धारावाहिकता पर विराम लग गया, वरना लालबुझक्कड़ की तरह एक से एक आइडिया पेश किए जा रहे थे।
मसलन, इधर कहा जा रहा था कि जब बाघ पकड़ में नहीं आ रहा है और रहमानखेड़ा के विकसित-संरक्षित जंगल यानी केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान की सघन हरियाली वाला माहौल उसे कुछ ज्यादा ही पसंद आ रहा है तो क्यों न इसे बाघ की सफारी बना दी जाए। जबकि पूर्व वन संरक्षक और टाइगर एंड टेरेन संस्था के अध्यक्ष ज्ञानचंद्र मिश्रा का कहना था कि रहमानखेड़ा में सफारी बनाना असंभव है क्योंकि केंद्र सरकार ने अरबों रुपए खर्च करके अनुसंधान केंद्र का निर्माण कराया है, जहां कई तरह के प्रयोग किए जाते हैं। सफारी बनाए जाने के विचार से नाइत्तेफाक रखने वाले विशेषज्ञों का कहना था कि भई, शेरों की सफारी यानी लायन सफारी तो बनती है, क्योंकि वे झुंड में रहते हैं और किए गए शिकार को मिलजुल कर खा लेते हैं, मगर बाघ तो अकेले रहना और शिकार करना पसंद करता है, सो टाइगर सफारी बना भी दी जाए तो मुश्किल से दर्शन देने वाले बाघ के लिए पर्यटक कबतक टकटकी लगाए रहेंगे?
बहरहाल, बाघ ने खुद को पकड़वाकर बहुत सारी बकरियों, पड़वों और भैंसों की जिंदगी बख्शने के साथ अभियान में लगे लोगों की इज्जत भी बख्श दी है, वरना वे कबतक और कहां-कहां से भैंसों-पड़वों का इंतजाम करते?
साभार : dailynewsactivist
पकड़ा गया बाघ, दुधवा नेशनल पार्क भेजा गया
लखनऊ. जंगल का चालाक शिकारी आखिरकार वन विभाग केझांसे में आ ही गया। ऑपरेशन सनराइज के तहत बाघ को रहमानखेड़ा में ट्रैंकुलाइज किया गया। बाघ पकड़े जाने की खबर पल भर में जंगल की आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई। बाघ को देखने केलिए उमड़े जन सैलाब को नियंत्रित करने में वन विभाग व पुलिस कर्मियों के पसीने छूट गए। बाघ पकड़ में आएगा, इसकी उम्मीद वन विभाग को भी नहीं थी, इसीलिए बाघ को जंगल से बाहर ले जाने में चार घंटे से अधिक का समय लगा। डीएफओ अशोक मिश्रा ने बताया कि बाघ दुधवा नेशनल पार्क भेज दिया गया है।
काकोरी के केंद्रीय उपोषण बागवानी संस्थान रहमान खेड़ा में सात जरवरी को पहली बार बाघ ने नीलगाय का शिकार कर अपनी आमद दर्ज कराई थी। वन विभाग ने अनमने ढ़ग से आपरेशन बाघ की शुरूआत की और तीन महीने से अधिक समय में काफी फजीहत झेलने के बाद बुधवार को अन्तत: बाघ को ट्रैंकुलाइज कर ही लिया। एक दिन पूर्व वन विभाग की टीम ने बदली रणनीति के तहत पड़वे के बजाय भैंस बांधी थी, उसी रात बाघ ने भैंस को मार कर करीब 25 किलो मांस चट कर गया। बुधवार सुबह तड़के पांच बजे लिए वन्य जीव विशेषज्ञ ट्रैंकुलाइजर गन के साथ हाथी पर बैठ कर शिकार के पास पहुंचे। बाघ शिकार के पास आराम से बैठा मांस का मजा ले रहा था। इस मौके को वन विभाग ने जाया नहीं किया। बेहद खामोशी के साथ मिशन बाघ को अंजाम तक पहुंचाने की तैयारी कर एसडीओ वी बी श्रीवास्तव ने रोड पर गाड़ियां खड़ी करवाकर वन कर्मियो द्वारा पहले से तैयार सफेद कपड़े का घेरा बनवाया। तीनों हथनियों को मोर्चा पर लगा दिया गया।
बाघ से दो-दो हाथ करने के इरादे से रूपकली पर सवार होकर डॉ. पी.पी. ने ट्रैकुंलाइजर गन से निशना लगा फायर कर दिया, निशाना चुक गया। दूसरी हथिनी गंगाकली को बाघ की ओर जाने का इशारा मिला। इससे पहले की विशेषज्ञ कुछ करते बाघ खुद ही गंगाकली की तरफ बढ़ने लगा। बाघ की इस हरकत से गंगाकली ने मैदान छोड़ दिया। एक बार फिर रूपकली ने मोर्चा संभाला और बाघ की तरफ बढ़ने लगी। इसी दौरान रूपकली पर बैठे उत्कर्ष शुक्ला ने बाघ पर निशाना लगाते हुए गन से फायर कर दिया। निशाना सही जगह पर लगा। गोली लगते ही बाघ तिलमीला गया उसकी हिम्मत जवाब दे गयी। बाघ शीशम के जंगल से बाहर जाने के लिए सड़क की तरफ जाने का प्रयास किया। बाघ की इस कदम का अंदेशा वन विभाग को पहले से ही था। इसीलिए गाड़ी में से बैठे एसडीओ वी बी श्रीवास्तव ने गाड़ी का हार्न बजाते हुए शोर मचाया। इस शोर से घबराये बाघ वापस शीशम वाले खेत की ओर बढ़ गया। बाघ चन्द कदम ही बढ़ पाया था कि बेहोश होकर गिर गया। इस पर महावत इरशाद ने डंडे से उसे छेड़ा तो गुर्राया थोड़ी देर में बेहोश हो चुका था। इसके बाद स्टेचर मंगवा कर बाघ को पिंजड़े में कैद कर एन्टी डाट दी गई।
Wednesday, 25 April 2012
तस्वीरें : यहाँ इन्सान खेलते हैं बाघों के संग
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