Sunday, 30 September 2012
Thursday, 27 September 2012
केंद्र ने टाइगर रिजर्व के 20 % क्षेत्र में पर्यटन की अनुमति मांगी
केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से बाघ संरक्षित अभयारण्यों के कम से कम 20 फीसदी कोर क्षेत्र में पर्यटन की अनुमति मांगी है। केंद्र सरकार ने शीर्ष कोर्ट के सामने नए दिशानिर्देश पेश किए। सुप्रीम कोर्ट जस्टिस एके पटनायक और स्वतंत्र कुमार की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। अदालत में पर्यावरणविद् अजय दुबे ने याचिका लगाई है। इस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 24 जुलाई को बाघ संरक्षित क्षेत्रों के कोर एरिया में पर्यटन पर रोक लगा दी थी। पिछले महीने की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से इस संबंध में नई गाइड लाइन बनाने को कहा था।
बाघों की मौत के बाद अब अमले को दे रहे ट्रेनिंग
भोपाल। वन मंडल भोपाल के कठोतिया गांव में दो बाघों की मौत के बाद वन विभाग सतर्क हो गया है। विभाग ने अब समरधा, कठोतिया और रातापानी डिवीजन के मैदानी अमले को प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया है। कान्हा नेशनल पार्क से आई एक्सपर्ट टीम मैदानी अमले को प्रशिक्षण दे रही है। टीम रेंजों में घूम रहे तीन बाघों की सतत निगरानी कर यह पता लगा रही है कि बाघ कहां घूम रहे हंै। वहीं, पांच जून को शिकार हुए बाघ के शिकार के लिए बनाई गई जांच कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी है। भोपाल से महज 20 किमी की दूरी पर घूम रहे तीन बाघों की कड़ी सुरक्षा की व्यवस्था कर दी गई है। भोपाल, सिहोर और रायसेन वन मंडल में गश्ती दल बनाए गए हंै। इसमें एक डिवीजन में तीन-तीन गश्ती दल का गठन किया गया है। यह दल सुबह दोपहर और रात को अलग-अलग समय पर गश्त करेंगे। एक गश्ती दल में एक चार की गार्ड होगी। दल का नेतृत्व डिप्टी रेंज रेंक का अधिकारी करेगा।
हर गश्ती दल को देना होगी रिपोर्ट: वन विभाग ने अब हर गश्ती दल की जिम्मेदारी तय कर दी है। हर दल को अपनी रिपोर्ट बनाकर डीएफओ को देना होगी। गश्ती दलों को एक रेंज से दूसरी रेंज में बाघ के आने-जाने की सूचना तुरंत एक-दूसरे को देनी होगी। इससे अब किसी भी रेंज के अधिकारी यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकेंगे कि बाघ का शिकार या हादसा उनके रेंज में नहीं हुआ है।
पांच जून को कठोतिया रेंज में हुए बाघ के शिकार की जांच रिपोर्ट मंगलवार को शासन को सौंप दी गई है। जांच में वहीं बिंदु डाले गए है जो प्रारंभिक रिपोर्ट में दिए गए थे। जांच में बताया गया है कि बाघ की मौत करंट लगने से हुई है। यह एक हादसा है। इस हादसे को अंजाम देने वाले सभी आरोपी जेल में हैं। शासन को सौंपी गई जांच रिपोर्ट के बारे में प्रयत्न संस्था के सदस्य अजय दुबे, वन्य प्राणी प्रेमी संजय दुबे और प्रलय बागची ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन को पत्र लिखकर मामले की फिर से जांच करने की मांग की है। उनका कहना है कि जिस वन मंडल में बाघ का शिकार हुआ है, उन्हें ही जांच कमेटी का सदस्य बना दिया गया है।
Tuesday, 25 September 2012
मप्र में कुत्तों की तरह दम तोड़ रहे हैं बाघ
मप्र में शिव के राज में बाघ और उसके परिवार के सदस्य कुत्तों की तरह दम तोड़ रहे हैं और सरकार खामोश है। हद है मुख्यमंत्री जी। वन मंडल भोपाल के कठोतिया रेंज में 19 सितंबर को गड्ढे में गंभीर रूप से घायल मिले बाघ शावक की सोमवार तड़के मौत हो गई। पोस्टमार्टम करने वाले डॉ. अतुल गुप्ता का कहना है कि शावक के शरीर के पिछले हिस्से में चोटें कैसे लगी, इसकी विस्तृत जांच के लिए विसरा जबलपुर, बरेली और देहरादून की फॉरेंसिक लैब भेज दिया गया है।
गौरतलब है कि कठोतिया के जंगल में ही पांच जून को एक बाघ का करंट लगाकर शिकार किया गया था। कहीं पकड़ न जाए इसलिए बाघ को दो भागों में काट दिया गया था। इस मामले को भी वन विभाग ने हादसा बताया था।
सरकारी रिपोर्ट में टोक्सिमिया वजह
पोस्टमार्टम से खुलासा हुआ है कि उसकी मौत टोक्सिमिया की वजह से हुई है। इसके साथ ही उसके शरीर के पिछले हिस्सों में लकवा लगने का कारण अंदरूनी चोटें हैं।
...लेकिन, आशंका शिकार की
वन विहार प्रबंधन और इलाज करने वाले डॉक्टर के अनुसार घायल शावक को जब गड्ढे से बाहर निकाला गया था तब उसके शरीर पर अंदरूनी चोटों के निशान भी थे। लंबी दूरी तक घिसटने के कारण उसके दोनों पैरों में गंभीर घाव भीहो गए थे। पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) पीके शुक्ला ने भी शावक की हालत को देखकर शिकार की आशंका जताई थी।
सवाल यह भी है
बाघ आठ दिन से घायल था तो गश्ती दल क्या कर रहा था? घायल अवस्था में शावक को वन विहार लाया गया तो राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण को सूचना क्यों नहीं दी गई? पोस्टमार्टम में फॉरेंसिक एक्सपर्ट एबी श्रीवास्तव और मेडिकोलीगल के विशेषज्ञ डॉ. सत्पथी को क्यों नहीं बुलाया गया?बाघ के संबंध में हादसे हर बार कठोतिया में ही क्यों हो रहे हैं?
दैनिक भास्कर के साभार से
Wednesday, 12 September 2012
अभयारण्य में जमीन, चार हजार युवा रह गए कुंवारे!
मप्र के शिवपुरी स्थित करैरा अभयारण्य के 32 गांवों की 36 हजार की आबादी अपनी ही जमीन पर मजदूरी करने को मजबूर है। जमीन गांवों के लोगों की है, लेकिन वे अपनी ही जमीन को न तो बेच सकते हैं और न ही इस पर सिंचाई के साधन लगवा सकते हैं। जब यह बात आसपास के गांव के लोगों को पता चली तो यहां रिश्ते आना ही बंद हो गए। इन गांवों के चार हजार से अधिक युवा कुंवारे हैं।
हाजीनगर के जंडेल सिंह गुर्जर बताते हैं कि गांव के आधे से अधिक युवा तीस से अधिक की उम्र पार कर चुके हैं। मेरी उम्र भी 33 पार हो चुकी है। लेकिन शादी नहीं हुई। मेरे दो छोटे भाई भी हैं, उनके लिए भी रिश्ते नहीं आ रहे हैं। गांव में वैसे भी शादी की उम्र 18 से 25 के बीच ही मानी जाती है। इसलिए इस क्षेत्र के ज्यादातर युवा अपनी शादी की आस छोड़ चुके हैं।
सरकार जमीन बता दे, जंगल हम तैयार कर देंगे : जून 2012 में सुप्रीम कोर्ट की एंपावर्ड कमेटी ने राज्य सरकार को पत्र भेजा कि करैरा अभयारण्य क्षेत्र में रजिस्ट्री पर लगी रोक हटाई जा सकती है। लेकिन इसमें एक शर्त जोड़ दी कि जितने क्षेत्र में अभयारण्य (दो सौ वर्ग किमी) है, उतने ही क्षेत्र में कहीं दूसरी जगह जंगल तैयार किया जाए। उधर लंगूरी गांव के लोगों का कहना है कि सरकार तो जमीन चिंहित कर दे, जंगल हम तैयार कर देंगे।
ऐसे गिर रहा सामाजिक स्तर
जमीन बेचने का अधिकार न होने से गांव के युवाओं की शादी नहीं हो पा रही है।
युवाओं पर परिवार की जिम्मेदारी न होने से वे अपराध व अवैध धंधे करने लगे हैं।
इसलिए नहीं हो रहीं शादियां
किसानों की जमीन करैरा अभयारण्य में है। अभयारण्य की जमीन को किसान खरीद और बेच नहीं सकते।
रिश्ते इसलिए नहीं आ रहे हैं, क्योंकि उन्हें यह जानकारी है कि सरकार जमीन मालिकों को कभी भी बेदखल कर अभयारण्य से बाहर कर सकती है।
दूसरी ओर, मप्र के ही सोनचिरैया अभयारण्य के कारण घाटीगांव क्षेत्र के 27 गांवों के लोगों को होने वाली परेशानी का मामला गुरुवार को भाजपा सांसद यशोधरा राजे सिंधिया ने लोकसभा में उठाया। उन्होंने मांग की कि अभयारण्य की सीमा का डी-नोटिफिकेशन (अधिसूचना) रद्द की जाए। अब तो इसमें सोनचिरैया भी नहीं है। अभयारण्य के कारण आसपास के गांवों का विकास रुक गया है। क्षेत्र के किसान अपनी जमीन के मालिक तो हैं लेकिन जरूरत पडऩे पर इसे न बेच सकते हैं और न ही खरीद सकते हैं। किसान गरीबी में जीने को मजबूर हैं। सांसद सिंधिया की मांग पर अब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जवाब देंगे।
सेमुअल दास की रिपोर्ट
Wednesday, 5 September 2012
बाघ क्यों करते हैं 'नाइट शिफ्ट'
एक ताज़ा शोध से पता चला है कि नेपाल में बाघ इंसानों से टकराव को टालने के लिए नाइट शिफ़्ट को तरजीह दे रहे हैं. यानी दिन में आराम और रात को काम. यहां काम से मतलब है शिकार करना. आमतौर पर बाघ दिन और रात का फ़र्क किए बैगर जंगलों में घूमते रहते हैं, मिलन करते हैं और शिकार करते हैं. साथ ही अपने इलाक़े की निगरानी भी करते हैं. लेकिन नेपाल के चितवन नेशनल पार्क में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि इंसानों से बचने के लिए बाघ अपने क्रियाकलापों को रात तक ही सीमित रख रहे हैं. अतंरराष्ट्रीय टीम का ये अध्ययन विज्ञान की एक पत्रिका ‘प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस जरनल’ में प्रकाशित हुआ है.
परंपरागत सोच तो यही है कि बाघों को इंसानों से दूर एक इलाक़ा चाहिए. इस सोच का मतलब है कि बाघ के इलाक़ों से लोगों का पुनर्वास करवाया जाए या फिर उस इलाक़े में मौजूद संसाधनों को बाघों के लिए त्यागा जाए. अमरीका की 'मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी' से आए और इस शोध के सह-लेखक नील कार्टर कहते हैं, “संसाधनों को लेकर ये एक बहुत मूलभूत टकराव है. बाघों को संसाधनों की ज़रूरत हैं और उन्हीं संसाधनों की ज़रूरत इंसानों को भी हैं. अगर हम परंपरागत सोच पर चलकर बाघों के लिए एक अलग जगह छोड़ने लगें तो बाघ और इंसानों में से एक ही बचा रह सकता हैं.” हिमालय की घाटी में बसा चितवन पार्क 121 बाघों का घर है और पार्क की सीमा सटे इलाक़े में मानव आबादी भी है. लेकिन ये लोग लकड़ी और घास के लिए पार्क पर निर्भर हैं शोधकर्ता नील कार्टर ने पार्क के अंदर और बाहर हलचल पहचानने वालें कैमरों की मदद से दो वर्षों तक अध्ययन किया.
इस अध्ययन के दौरान ली गई हज़ारों तस्वीरों के विश्लेशण में कार्टर ने पाया कि इंसान और बाघ एक ही पगडंडी या रास्तों का इस्तेमाल कर रहे हैं. बस फर्क ये हैं कि अलग-अलग समय में, यानी बाघों की गतिविधि रात को दिखाई देती है. इंसान आमतौर पर रात को जंगल में नहीं जाते और ये बाघों के लिए एक संकेत का काम करता है कि रात को बाघ जंगल में अपनी गतिविधियां कर सकते हैं. शोध से सामने आया कि नेपाल के चितवन पार्क में बाघों के हालात अच्छे हैं. उन्हें पेट भरने के लिए शिकार मिल जाता है. दुनिया भर में 20वीं सदी के दौरान जंगली बाघों की संख्या में 97 फ़ीसदी की कमी आई है और अब विश्व में लगभग तीन हज़ार बाघ ही बचे हैं.
Monday, 3 September 2012
रणथंभौर पर्यटन जगत में सन्नाटा
हर साल एक अक्टूबर से रणथंभौर अभयारण्य में पर्यटन शुरू हो जाता है। अगस्त के मध्य से ही यहां के होटलों एवं पर्यटन से जुड़े लोग नए सत्र के लिए तैयारियां शुरू कर देते हैं। इन तैयारियों के लिए बड़ी संख्या में लोग बाहर से आते हैं और यहां के श्रमिकों को साथ ले कर जरूरी काम को पूरा करते हैं, लेकिन इस बार न तो होटलों में तैयारियां दिखाई दे रही हैं और न ही देश विदेश के पर्यटकों के लिए वाहन एवं होटलों की एडवांस बुकिंग की जा रही है। इस बार रणथंभौर में पर्यटन होगा या नहीं, इस बारे में कोई नहीं जानता है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर निर्भर होने के कारण सभी मायूस हैं। जिस समय होटलों एवं पर्यटन से जुड़े लोगों की भाग दौड़ और तैयारियां तेज हो जाती थी उस समय यहां सन्नाटा दिखाई दे रहा है।
वापस लिया वाहनों का पैसा
रणथंभौर में नेचर गाइड के रूप में वर्षों से सेवा दे रहे यादवेंद्र सिंह का कहना है कि इस बार हालात खराब है। लोगों ने नए सत्र के लिए पहले से ही वाहन बुक करवा दिए थे। इनमें लगभग 60 जिप्सी और 50 से अधिक केंटरों के लिए विभिन्न कंपनियों में पैसा जमा हो चुका था, लेकिन ज्यों ही सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई की तारीख 27 सितंबर तय की, लोगों ने वाहनों के लिए दिया एडवांस पैसा वापस ले लिया। लोगों को डर है कि अगर 27 सितंबर को भी पर्यटन की इजाजत नहीं मिली तो वे लाखों रुपए के नए वाहन खरीदने के कारण बर्बाद हो जाएंगे।
कैंसिल हो रही है एडवांस बुकिंग
पर्यटन सत्र के लिए बुकिंग का काम महीनों से चल रहा था। अधिकांश होटल मालिक एवं ट्रेवल एजेंट अप्रैल 2013 तक की बुकिंग का काम पूरा कर चुके थे, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने एवं कोई सकारात्मक निर्णय नहीं आने का संदेश विदेशों में जाते ही पर्यटकों ने अपनी बुकिंग कैंसिल करवाना शुरू कर दी है। रणथंभौर एडवेंचर ट्यूर के अनुसार उनके द्वारा की गई बुकिंग में से अब तक 80 प्रतिशत से अधिक बुकिंग को निरस्त करने के आदेश मिल चुके हैं। अभी बुकिंग निरस्त होने का क्रम जारी है।
होटलों में खामोशी
होटल मालिक कैलाश मीणा के अनुसार यहां के किसी भी होटल में तैयारी तो दूर साफ सफाई का भी काम शुरू नहीं हुआ है। अब से पहले सितंबर शुरू होते ही रंग रोगन एवं फर्नीचर को ठीक करने का काम शुरू हो जाता था। बाजार में पेंट के व्यापारी के अनुसार इस बार होटलों से रंग की मांग नहीं आने के कारण वे परेशान हैं। एक करोड़ का रंग बिक जाता था। इस बार स्टाक पड़ा हुआ है।
मॉडल कंडीशन का अड़ंगा
रणथंभौर में चलने वाले वाहनों की माडल कंडीशन को लेकर हमेशा विवाद रहा है। कभी पांच साल तो कभी चार साल की माडल कंडीशन से यहां के सभी वाहन मालिक हमेशा परेशान रहे हैं। इस बार रणथंभौर में पर्यटन होगा या नहीं यह अभी कोई नहीं जातना है, लेकिन वन विभाग ने अडंग़ेबाजी अभी से शुरू कर दी है। वाहन मालिकों का कहना है कि गत वर्ष रणथंभौर में न्यायालय के आदेश से पांच साल की माडल कंडीशन रखी थी, लेकिन इस बार वन विभाग अपने टेंडर में वापस चार साल की मॉडल कंडीशन रख रहा है।
नेचर गाइडों पर भी लटकी तलवार
वन विभाग कब क्या करेगा इस बारे में कोई नहीं जानता, जो भी अधिकारी आता है वह कुछ भी कर जाता है और उसका खामियाजा भुगतते है यहां के लोग। नेचर गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष यादवेंद्र सिंह के अनुसार पिछले कई दशकों से यहां पर्यटक वाहनों के साथ जाने वाले पर्यटक गाइडों पर वन विभाग ने नया अड़ंगा लगा दिया है।विभाग ने तय किया है कि सभी पर्यटक गाइडों की परीक्षा होगी और परीक्षा पास करने वाले गाइडों का साक्षात्कार लिया जाएगा। जो इसे पास करेगा वह रणथंभौर में पर्यटक वाहनों के साथ जा सकेगा। इससे लोगों में भय है।
प्रशिक्षण का विरोध
रणथंभौर नेचर गाइड्स एसोसिएशन की बैठक रणथंभौर रोड स्थित अंकुर होटल में हुई। सचिव शकिर अली ने बताया कि दस सितंबर को होने वाली लिखित, मौखिक परीक्षा के बारे में चर्चा की गई। बैठक में सर्व सम्मति से सभी नेचर गाइड्स ने निर्णय लिया कि उक्त प्रक्रिया का बहिष्कार किया जाएगा। इस संबंध में एसोसिएशन अध्यक्ष शरद कुमार शर्मा ने बताया कि उक्त प्रक्रिया गाइड लाइन 2011-12 के अनुरूप नहीं है और न ही उक्त प्रक्रिया के बारे में नेचर गाइड्स से किसी प्रकार का विचार विमर्श किया गया।
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