कोटा. सुल्तानपुर के जंगलों में 30 माह से भटक रही टी-35 बाघिन की तलाश में रोचक तरीके इस्तेमाल किए जा रहे है। पुराने समय में राजा-महाराजा बकरी बांधकर उसे लुभाते थे लेकिन अब देहरादून से आई वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट की टीम उसे नर बाघ की आवाज टेप बजाकर सुना रही है।
टीम नर बाघ की यूरीन भी साथ लेकर आई है। रुई में लगाकर इसकी गंध (फेरोमोन) से बाघिन को आकर्षित करने का प्रयास हो रहा है। हालांकि इस टीम का यह तीसरा बड़ा अभियान भी निराशा की तरफ बढ़ चला है। दो दिन में टीम को केवल फुटप्रिंट ही मिले है। तय रणनीति के अनुसार शुक्रवार को अंतिम दिन तलाशी होगी। इसे बढ़ाया भी जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि रणथंभौर से भागकर आई टी-35 की तलाश में अब तक करीब 2 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके है। इस बाघिन को काबू में करने के लिए टीम दुनियाभर में इस्तेमाल किए जा रहे हर तरीके को इस्तेमाल कर रही है। पिछली बार की तरह चालाक बाघिन अंतिम समय में भाग न जाए इसलिए तलाशी में लगे वाहन पर जंगल के रंगों से मिलता-जुलता जाल भी लगाया गया है। इसी वाहन में टै्रंक्युलाइज करने वाली टीम छुपकर बैठी रहती है।
जंगली बबूल बना मुसीबत
सरिस्का के फील्ड डायरेक्टर आरएस शेखावत ने बताया कि बाघिन की टेरिटरी में जूलीफ्लोरा (जंगली बबूल)की तादाद अधिक है। बाघिन को हमारा मूवमेंट आसानी से पता चल जाता है और वह गायब हो जाती है। यहां नालों में पानी भरा है और जगह-जगह कंदराएं होने से भी तलाशी मुसीबत बनी हुई है।
50 से ज्यादा लोगों की टीम
इस बार तलाशी में लगी टीम में 50 से ज्यादा सदस्य शामिल है। इनमें प्रमुख रूप से वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून के वेटनरी साइंस हैड डॉ. पी मलिक, डॉ. शंकर, सरिस्का के फील्ड डायरेक्टर आरएस शेखावत, एसीएफ रंगलाल चौधरी, कोटा वाइल्ड लाइफ डीएफओ बीपी पारीक, डॉ. एके पांडे शामिल है। गुरुवार को इस टीम ने करीब 10 किमी का जंगल नापा।
टीम नर बाघ की यूरीन भी साथ लेकर आई है। रुई में लगाकर इसकी गंध (फेरोमोन) से बाघिन को आकर्षित करने का प्रयास हो रहा है। हालांकि इस टीम का यह तीसरा बड़ा अभियान भी निराशा की तरफ बढ़ चला है। दो दिन में टीम को केवल फुटप्रिंट ही मिले है। तय रणनीति के अनुसार शुक्रवार को अंतिम दिन तलाशी होगी। इसे बढ़ाया भी जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि रणथंभौर से भागकर आई टी-35 की तलाश में अब तक करीब 2 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके है। इस बाघिन को काबू में करने के लिए टीम दुनियाभर में इस्तेमाल किए जा रहे हर तरीके को इस्तेमाल कर रही है। पिछली बार की तरह चालाक बाघिन अंतिम समय में भाग न जाए इसलिए तलाशी में लगे वाहन पर जंगल के रंगों से मिलता-जुलता जाल भी लगाया गया है। इसी वाहन में टै्रंक्युलाइज करने वाली टीम छुपकर बैठी रहती है।
जंगली बबूल बना मुसीबत
सरिस्का के फील्ड डायरेक्टर आरएस शेखावत ने बताया कि बाघिन की टेरिटरी में जूलीफ्लोरा (जंगली बबूल)की तादाद अधिक है। बाघिन को हमारा मूवमेंट आसानी से पता चल जाता है और वह गायब हो जाती है। यहां नालों में पानी भरा है और जगह-जगह कंदराएं होने से भी तलाशी मुसीबत बनी हुई है।
50 से ज्यादा लोगों की टीम
इस बार तलाशी में लगी टीम में 50 से ज्यादा सदस्य शामिल है। इनमें प्रमुख रूप से वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून के वेटनरी साइंस हैड डॉ. पी मलिक, डॉ. शंकर, सरिस्का के फील्ड डायरेक्टर आरएस शेखावत, एसीएफ रंगलाल चौधरी, कोटा वाइल्ड लाइफ डीएफओ बीपी पारीक, डॉ. एके पांडे शामिल है। गुरुवार को इस टीम ने करीब 10 किमी का जंगल नापा।