Saturday, 27 October 2012

...और खूंखार हुआ रणथंभौर का बाघ


सवाई माधोपुर. शुक्रवार शाम अचानक बाघ टी 24 के स्वभाव में बदलाव देखा गया। विवेकानंदपुरम कॉलोनी के सामने से होटल झूमर बावड़ी तक के रोड पर इस बाघ ने दो वाहनों की ओर झपटने एवं एक पर्यटक वाहनों के पीछे दौड़कर हमला करने का प्रयास किया। रणथंभौर रोड पर एक शिक्षक की मोटरसाइकिल के पीछे भी दौड़ लगाने की बात सामने आई है।

रणथंभौर में मुंबई के एक पर्यटक को वन भ्रमण कराने के बाद वापस होटल झूमर बावड़ी जाते समय टी 24 ने जिप्सी के पीछे 20 मीटर से भी अधिक दूरी तक तेजी से दौड़ लगाई। जिप्सी चालक निसार अली ने बताया कि वह जिप्सी को झूमर बावड़ी रोड पर लेकर आगे जा रहा था। इसी दौरान ओबेराय होटल के आखिरी कोने के पास अचानक टी 24 उनकी गाड़ी की तरफ लपका। गाड़ी के पीछे 20 मीटर से भी अधिक दूरी तक तेजी से दौड़ा।

इसी प्रकार होटल झूमर बावड़ी पर ठहरे गुडग़ांव निवासी एक पर्यटक आर.के. गुप्ता ने होटल मैनेजमेंट को बताया कि वे स्कार्पियों से होटल से शहर की तरफ जा रहे थे। इसी दौरान बाघ ने उनकी गाड़ी की तरफ झपट्टा मारा। वे घबरा कर तेजी से वापस होटल आ गए। सवाई माधोपुर निवासी शिक्षक गुड्डू सोनी ने बताया कि रात साढ़े सात बजे के करीब आईओसी प्लांट के पास आईस फैक्ट्री में उनके मित्र से मिलने गए थे। वे फैक्ट्री के गेट पर चौकीदार को आवाज लगा रहे थे। तभी 20 फुट की दूरी पर बाघ फैक्ट्री की दीवार पर दिखाई दिया। 20 मिनट तक बाघ के घुर्राने की आवाज आती रही।

रेंज अधिकारी अरुण शर्मा का कहना है कि हमें इस प्रकार की घटना की सूचना मिली थी। सूचना के बाद से हम सर्च लाइटों से लगातार इस रोड पर बाघ को खोज रहे हैं। हमें अभी कहीं भी बाघ दिखाई नहीं दे रहा है। सड़क के पास सांभर एवं चीतल बैठे दिखाई दे रहे हैं। अगर बाघ इस जगह पर होता तो दूसरे जानवर यहां बैठे नहीं रह सकते। शाम को बाघ इस इलाके में था, लेकिन यह बाघ फायरिंग बट आलनपुर के आसपास था।

सबसे अलग स्वभाव

बाघ परियोजना के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के अनुसार टी 24 के बारे में मिल रही जानकारी के अनुसार यह बाघ अन्य बाघों की तुलना में कई प्रकार से अलग है। यह एक साथ कई किमी चलता है। एक ही रात में 40 से 50 किमी तक चलने की इसकी क्षमता काफी दुर्लभ है। इसी प्रकार दूसरे बाघों के इलाके में बिना किसी भय के इसका घूमना भी बाघों के स्वभाव के विपरीत है। सामान्य रूप से किसी इंसान को अकेला या झुंड में पैदल आता देख बाघ रास्ता छोड़ कर भाग जाते हैं, लेकिन यह बाघ ढीठ होकर सामने आने का प्रयास करता है।

यात्रियों को खतरा 

टी 24 का विचरण क्षेत्र 90 किमी से भी अधिक है। इस इलाके में रणथंभौर दुर्ग से गणेशधाम तक जंगल के बीच सड़क भी है। गणेशधाम से पूरा रणथंभौर रोड होते हुए आईओसी प्लांट एवं आलनपुर तक के सड़क मार्ग एवं इसके बाहरी आबादी वाले इलाके पर भी इसका राज है। ऐसे में हजारों लोग रोजाना गणेशधाम से रणथंभौर दुर्ग तक यात्रियों का आना-जाना गत दिवस की घटना के बाद यात्रियों की सुरक्षा एवं बाघ टी 24 द्वारा कोई अनहोनी करने का डर बढ़ गया है। माधोसिंहपुरा, आलनपुर, शहर, विवेकानंदपुरम एवं आसपास की ढाणियों के लोगों की भी चिंता बढ़ गई है।

Friday, 26 October 2012

रणथंभौर का यह खूंखार बाघ ले सकता है आपकी भी जान


रणथंभौर अभयारण्य में 25 अक्‍टूबर को को बाघ टी-24 ने सहायक वनपाल घीसू सिंह (58) को अपना शिकार बना लिया। वे जंगल में चल रहे कच्चे मार्ग के रिपेयरिंग को देखने के लिए गए थे। बाघ ने उनकी गर्दन व सिर पर हमला किया, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। घटनास्थल पर पहुंचे वन अधिकारियों व कर्मचारियों की टीम ने पटाखे चलाकर बाघ को भगाया और शव को उसके शिकंजे से छुड़ाया। घटना से वन विभाग सहमा हुआ है। घीसू सिंह के परिजनों को 3.20 लाख रु. की आर्थिक सहायता दिए जाने की घोषणा की गई है। 

प्रत्यक्षदर्शी फोरेस्टर सुदर्शन शर्मा ने बताया कि गुरुवार सुबह दस बजे वे जयपुर की चौमूं तहसील के अमरपुरा गांव निवासी सहायक वनपाल घीसू सिंह के साथ राजबाग वननाके से मोटरसाइकिल पर जंगल के लिए रवाना हुए थे। साढ़े दस बजे वे सोनकच्छ आंतरी नामक स्थान पर पहुंचे। यहां दो जगह पर्यटक वाहनों के लिए बने कच्चे रास्तों को ठीक करने का काम किया जा रहा था। शर्मा ने बताया कि वे पहले काम कर रहे श्रमिकों के पास रुक गए और घीसू सिंह 200 मीटर आगे काम देखने चले गए। वे काम देखकर पैदल वापस आ रहे थे तभी बाघ ने घीसू सिंह को बाघ ने दबोच लिया और खींचकर झाडिय़ों में ले गया। मजूदर व अन्य वनकर्मियों ने शोर मचाया और पत्थर फेंके, लेकिन वहां कुछ भी दिखाई नहीं दिया। सूचना मिलने के बाद उपवन संरक्षक एवं अन्य वन अधिकारी मौके पर पहुंचे। अधिकारियों ने झाडिय़ों में अपना वाहन घुसाया तो बाघ ने झपट्टा मारा। इसके बाद पटाखे चलाकर शव को मुक्त कराया गया। 

टी 24 का तीसरा इंसानी शिकार 

रणथंभौर अभयारण्य के सबसे बड़े इलाके में विचरण करने वाले खूंखार बाघ टी-24 ने अब तक तीन लोगों को शिकार बनाया है। इनमें एक खिरनी निवासी घमंडी माली, दूसरा शहर जुलाहा मोहल्ला निवासी अशफाक एवं तीसरा वनकर्मी घीसू सिंह है। हालांकि, इससे पहले भी इस बाघ द्वारा दो अन्य लोगों को भी शिकार बनाए जाने की आशंका है, लेकिन इनकी पुष्टि नहीं हुई। रणथंभौर के इतिहास में यह पहली घटना है जब किसी जानवर के हमले से वन विभाग के किसी कर्मचारी की मौत हुई है। 

सबसे खतरनाक बाघ

रणथंभौर से जुड़े लोगों के अनुसार इस समय इस जंगल में बाघ टी 24 का आतंक है। दिखने एवं स्वभाव में यह बाघ बहुत अधिक खूंखार है। यह पहला बाघ है जो अपने इलाके के अलावा दूसरे बाघों के इलाके में भी बे खोफ घूमता है। इसके विचरण का दायरा 90 वर्ग किमी से भी अधिक होने के कारण रणथंभौर के सबसे बड़े इलाके पर इसका राज है। यह बाघ बचपन से ही पर्यटक एवं वाहनों के पीछे दौडऩे का आदी रहा है।

बाघ परियोजना के दो जोन बंद

बाघ परियोजना में मानद वन्यजीव प्रतिपालक बालेंदूसिंह ने बताया कि इस घटना से रणथंभौर से जुड़े लोगही नहीं आम आदमी भी दुखी है। इस घटना को हम उसी प्रकार देखते हैं जिस प्रकार एक जवान देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की बाजी लगाता है। सिंह ने बताया कि घटना के बाद उप वन संरक्षक वाई.के. साहू ने अधिकारियों को निर्देश देते हुए इस बाघ के विचरण वाले जोन नं. 1 एवं 3 पर अगले आदेश तक के लिए पर्यटक वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी है। साथ ही इस बाघ पर निगरानी के लिए एक टीम का भी गठन कर दिया है। इसके इलाके में अतिरिक्त कैमरा लगाने के आदेश जारी कर दिए हैं।

Wednesday, 3 October 2012

रणथंभौर में हो रहा है बाघों का नामकरण


रणथंभौर अभयारण्य के बाघ अब नंबर की जगह नाम से जाने जाएंगे। वन विभाग पहली बार इन्हें नाम देने में जुटा है। हुस्नारा, सुंदरी, कृष्णा, रोमियो, जालिम और सुल्तान ऐसे कुछ नाम हैं, जो बाघों को दिए गए हैं। वन विभाग पहली बार इन नामों की स्थायी लिस्ट तैयार कर रिकॉर्ड में शामिल करने जा रहा है। इससे पहले बाघों को टी-1, टी-5 व टी-19 जैसे नंबरों से जाना जाता था। बाघों का नामकरण किए जाने के पीछे प्रमुख उद्देश्य पर्यटकों का उनसे भावनात्मक लगाव बढ़ाना और नर-मादा की पहचान साफ करना है।

विभाग का कहना है कि नंबरों से बाघ के मेल या फीमेल होने को लेकर भी टूरिस्ट भ्रमित रहते थे। इससे पर्यटकों के समक्ष बाघों के परिवार की जानकारी देने में भी आसानी होगी। अभयारण्य के डीएफओ वाईके साहू ने बताया कि कुछ बाघों को पहले ही नाम से जाना जाता था। अब सभी का पहली बार नामकरण हो रहा है। हालांकि नंबर भी रहेंगे।

बाघों को नाम उनके स्वभाव, शारीरिक लक्षण तथा अन्य रोचक बातों के आधार पर दिए जाएंगे। मानद वन्यजीव प्रतिपालक बालेंदु सिंह बताते हैं कि टी-6 बाघ अक्सर बाघिन टी-16 या टी-41 बाघिन लैला के साथ नजर आता है। कई बार तो यह बाघ टी-16 से मार भी खा चुका, लेकिन फिर उसके साथ हो लेता है। इस कारण इसका नाम रोमियो रखा गया है।

> टी-25 बाघ गुस्सैल है। वह टूरिस्ट की गाडिय़ों खासकर वनकर्मियों की मोटरसाइकिल को देखकर ज्यादा गुर्राता है, उसे स्टाफ ने ही जालिम नाम दे दिया।

> टी-3 बाघ ने बड़े भाई झुमरू को उसकी टेरेटरी से खदेड़कर बहादुरी दिखाई तो उसका नाम बहादुर रखा।

> टी-39 के शावक को चाल-ढाल के आधार पर 'सुल्तान' नाम मिला। टी-19 के तीन शावक आपस में अठखेलियां करते हैं उन्हें 'चंदा', 'सूरज' 'आकाश' नाम दिया।

अगर कोई हमें सिर्फ नंबर से पहचाने तो? बाघों के प्रति भावनात्मक रिश्ते बनाने के लिए नाम को स्थायी पहचान दी जा रही है। नाम के साथ नंबरिंग की व्यवस्था भी जस की तस रहेगी। -बीना काक, वन एवं पर्यटन मंत्री 

पहली बार बाघों के नाम की लिस्ट तैयार हो रही है। कुछ बाघों के पहले से ही प्रचलित नाम हैं। अन्य को उनके करेक्टर के हिसाब से नाम दे रहे हैं। -वाई के साहू, डीएफओ, रणथम्भौर नेशनल पार्क 

महेश शर्मा, दैनिक भास्‍कर के लिए 

भोपाल में बाघों पर संकट, शिफ्टिंग की तैयारी


भोपाल फॉरेस्ट सर्किल के कठोतिया रेंज में दो बाघों की मौत के बाद अब वन विभाग ने कलियासोत-केरवा में सक्रिय बाघों की सुरक्षा को लेकर अपनी असमर्थता जता दी है। वन विभाग ने यहां घूम रहे तीन बाघों को सतपुड़ा नेशनल पार्क में शिफ्ट करने का निर्णय लिया है।

विभाग के अफसरों ने स्वीकार किया है कि राजधानी के नजदीक बाघों की सुरक्षा करने में वे सक्षम नहीं हैं, इसलिए विभाग के अफसर, भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम), सेवानिवृत्त वाइल्ड लाइफ चीफ और कान्हा नेशनल पार्क से शिफ्टिंग की तैयारियों के बारे में सलाह ले रहे हैं। वन विभाग ने बाघों की शिफ्टिंग के बारे में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण(एनटीसीए) से अनुमति नहीं ली है। हालांकि नियमानुसार वन विभाग को शेड्यूल्ड-1 के प्राणी की शिफ्टिंग के लिए एनटीसीए से अनुमति लेना जरूरी है।

इससे पहले वन विहार नेशनल पार्क ने चीतलों को सतपुड़ा नेशनल पार्क में शिफ्ट करने के लिए एनटीसीए से अनुमति मांगी थी, लेकिन सतपुड़ा नेशनल पार्क के वन्य प्राणियों की सुरक्षा और उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उसने अनुमति नहीं दी थी। यही वजह है कि वन विभाग अब एनटीसीए से अनुमति लेने से कतरा रहा है। इधर, वन विभाग का कहना है कि इसमें अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

बाघों को पकडऩे के लिए वन विभाग ने सबसे पहले चार पिंजरे लगाए, लेकिन बाघ इसके झांसे में नहीं आए। इसके बाद बाघों को केरवा-कलियासोत क्षेत्र में आने से रोकने के लिए 50 लाख रुपए खर्च करके चैनलिंग फैंसिंग लगाई गई। चैनल फैंसिंग को तोड़कर एक बाघ केरवा क्षेत्र में आ गया। ये प्रयास सफल नहीं होने पर विभाग ने अब बाघों को बेहोश करके पकडऩे का निर्णय लिया है। इसके लिए हाथियों का हाका लगाया जाएगा। कान्हा नेशनल पार्क और बांधवगढ़ नेशनल पार्क से एक्सपर्ट हाथी और महावत बुलाए जाएंगे।

लगाया जाएगा रेडियो कॉलर 

वन विभाग ने कलियासोत, केरवा और कठोतिया के जंगल में घूमने वाले बाघों को पकडऩे के बाद उनमें रेडियो कॉलर लगने का निर्णय लिया है। विभाग का कहना है कि इससे उन पर नजर रखी जा सकेगी।

जोखिम नहीं ले सकते 

भोपाल के आसपास का जंगल बाघों के लिए उपयुक्त नहीं है। उनकी सुरक्षा को खतरा है। बाघ को लेकर हम कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। यही वजह है कि इन्हें शिफ्ट करने का निर्णय लिया गया है। बाघों को नेशनल पार्क में शिफ्ट कर दिया जाएगा। - पीके शुक्ला, पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ 

वंदना श्रोती, दैनिक भास्‍कर